ब्लॉग: देश में ही शादियों की अपील के निहितार्थ
By अवधेश कुमार | Updated: November 29, 2023 13:59 IST2023-11-29T13:49:52+5:302023-11-29T13:59:25+5:30
देश में शादियां करने के आग्रह के निहितार्थ काफी गहरे हैं, इस बात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "हम देश में शादियां करेंगे तो बाहर व्यय होने वाला धन अपने देश में रहेगा, लोगों को उसमें रोजगार मिलेगा"।

फाइल फोटो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मन की बात में संपन्न भारतीयों से विदेश की बजाय देश में शादियां करने के आग्रह के निहितार्थ काफी गहरे हैं। प्रधानमंत्री ने इसके लिए सामान्य सरल तर्क दिए हैं। यानी हम देश में शादियां करेंगे तो बाहर व्यय होने वाला धन अपने देश में रहेगा, लोगों को उसमें रोजगार मिलेगा।
हम यहां तक पहुंचे हैं कि अब जी-20 का सम्मेलन कर सकते हैं और विश्व में सबसे ज्यादा संख्या वाले सम्मेलन करने का स्थल भी हम निर्मित कर चुके हैं। इसलिए यह मानना उचित नहीं होगा कि हमारे देश में उस तरह की व्यवस्थाएं और सुविधाएं विकसित नहीं होंगी, जैसी विदेशों में हैं।
इस तरह प्रधानमंत्री की अपील का एक महत्वपूर्ण पहलू अर्थव्यवस्था है, पर यह यहीं तक सीमित नहीं है। भारतीय दृष्टि से इसके आयाम व्यापक और गहरे हैं। हर समाज अपने संस्कार, सोच और प्रकृति के अनुसार सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था विकसित करता है। भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था में जीवन से जुड़े सारे संस्कारों और उत्सवों के साथ मूल चार पहलू निहित रहे हैं।
इसमें सबसे पहला है, जन्म से मृत्यु के पहले तक व्यक्ति के अंदर सतत् मानवता का समग्र संस्कार सशक्त करते रहना। दूसरा, भावनात्मक रूप से समाज और परिवार के बीच एकता का सेतु बनाए रखना।
तीसरा, समाज के सभी वर्गों के लिए इसी के साथ जीविकोपार्जन का स्थायी और निश्चित आधार और चौथा, इसी से राष्ट्रीय एकता भी सुनिश्चित होती थी। आप देखेंगे कि भारत में जीवन का ऐसा कोई संस्कार नहीं, जिनमें ये सारे पहलू समाहित नहीं हों।
हमारे यहां विवाह के पीछे की सोच भारत के बाहर के विवाह से बिल्कुल अलग थी। पूरे कर्मकांड में पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता का जो संकल्प लेते हैं, उसमें जन्म-जन्मांतर के संबंधों का भाव है। केवल परिवार ही नहीं, निकट और दूर के सारे रिश्तेदार, गांव, समाज की बड़ी संख्या शादी का भाग होती रही है।
शादियों में दूर-दूर के रिश्तेदारों, गांव के लोगों की उपस्थिति से भावनात्मक लगाव और परस्पर सहकार, सहयोग का कैसा माहौल बनता था, इसे अलग से बताने की जरूरत नहीं क्योंकि समाज के टूटने और संयुक्त परिवार की व्यवस्था खत्म होने के बावजूद उसकी झलक आज भी मिलती है।
अगर हम विदेशों में विवाह या दूसरे संस्कार करते हैं, तो उनमें इन सबका शत-प्रतिशत पालन संभव नहीं और न हम अपने से जुड़े सभी लोगों को वहां ले जा सकते हैं। इस सोच को ध्यान में रखें, तो विदेशों में संस्कार, उत्सव या जीवन से जुड़े प्रमुख दिवस मनाने की भावना पर प्रश्नचिह्न स्वयं ही खड़ा होगा।