Arvind Kejriwal Arrest: लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान से ही बचेगा लोकतंत्र
By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 28, 2024 10:38 AM2024-03-28T10:38:38+5:302024-03-28T10:39:52+5:30
Arvind Kejriwal Arrest: निर्वाचित मुख्यमंत्री का गिरफ्तार होना एक कथित आरोपी मात्र का गिरफ्तार होना नहीं होता. यदि किसी ने कोई अपराध किया है तो उसे अपने किए की सजा मिलनी ही चाहिए.
Arvind Kejriwal Arrest: दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार होंगे, यह सब जानते थे. सवाल सिर्फ कब गिरफ्तार होंगे का था. अब उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया है. यह शब्द लिखे जाने तक उन्हें जमानत नहीं मिली है, और इसी तरह की पहली गिरफ्तारियों को देखते हुए यही लग रहा है कि जमानत आसान नहीं है. जनतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव का होना या चुनाव में जीतना ही पर्याप्त नहीं होता. चुनावों का सही तरीके से होना, चुनाव में भाग लेने के लिए सबको समान और उचित अवसर मिलना जनतंत्र के औचित्य की एक महत्वपूर्ण शर्त है. आज जो स्थितियां देश में बनती जा रही हैं, वे दुर्भाग्य से इस आशय का कोई आश्वासन नहीं दे रही हैं.
किसी निर्वाचित मुख्यमंत्री का गिरफ्तार होना एक कथित आरोपी मात्र का गिरफ्तार होना नहीं होता. यदि किसी ने कोई अपराध किया है तो उसे अपने किए की सजा मिलनी ही चाहिए. लेकिन यदि सजा देने के नाम पर किसी प्रकार का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की जाती है तो उसे उचित नहीं माना जा सकता. यहां सवाल जनतांत्रिक मूल्यों और आदर्शों का भी है.
यह कहना तो गलत होगा कि देश में जनतंत्र की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन जनतंत्र को नए अर्थ देने की कोशिशों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता. समय पर चुनाव होने अथवा किसी नेता की लोकप्रियता के आधार पर जनतंत्र की सफलता अथवा औचित्य को नहीं नापा-परखा जा सकता. जनतंत्र का अर्थ होता है नागरिक के अधिकारों, और कर्तव्यों का भी, संरक्षण.
जनतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता के मानकों पर व्यवस्था कितनी खरी उतरती है. असहमति का स्वीकार और सम्मान जनतंत्र को गरिमा और ताकत, दोनों देता है. क्या यह सब हम आज अपने देश में होता देख रहे हैं? इसके साथ ही मजबूत विपक्ष की महत्ता को समझा जाना भी जरूरी है.
जनतंत्र में विपक्ष का काम मात्र आलोचना करना नहीं होता, विपक्ष को ईमानदार, सजग चौकीदार की भूमिका भी निभानी होती है. विपक्ष की सतत जागरूकता जनतंत्र के सफल और सार्थक होने की पहली और जरूरी कसौटी है. लेकिन दुर्भाग्य से हम अपने देश में विपक्ष को लगातार कमजोर किए जाने की कोशिशों को देख रहे हैं.
स्वस्थ जनतंत्र का तकाजा है कि जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो. जैसे न्याय होना ही नहीं, होते हुए दिखना भी चाहिए, वैसे ही जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान का भाव भी सम्मान किए जाने की प्रक्रिया के होते हुए दिखने की भी अपेक्षा करता है. आज जो कुछ हो रहा है उसे देखते हुए इस खतरे की आशंका स्वाभाविक है कि कहीं हम चुनावी एकाधिकारवाद की तरफ तो नहीं बढ़ रहे? यह सवाल उन सबके लिए महत्वपूर्ण है जो जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं.