क्या है 'फाइव आईज इंटेलिजेंस अलायंस', भारत-कनाडा विवाद के बाद से है चर्चा में
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: September 23, 2023 01:10 PM2023-09-23T13:10:46+5:302023-09-23T13:12:09+5:30
फाइव आईज पांच देशों का एक खुफिया नेटवर्क है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इन देशों का खुफिया एजेंसियां गोपनीय जानकारी एक दूसरे से साझा करती हैं।

(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली: खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले को लेकर भारत और कनाडा के बीच बढ़े तनाव के बीच एक नाम बार-बार चर्चा में आ रहा है। ये है 'फाइव आइज़ इंटेलिजेंस अलायंस'। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि निज्जर की हत्या से जुड़े मामले में इस अलायंस ने भी भारत के खिलाफ आरोपों में कनाडा की मदद की थी।
क्या है 'फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायंस'
फाइव आईज पांच देशों का एक खुफिया नेटवर्क है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इन देशों का खुफिया एजेंसियां गोपनीय जानकारी एक दूसरे से साझा करती हैं। यह गठबंधन मूल रूप से 1946 में अमेरिका और ब्रिटेन के बीच बनाया गया था और बाद में इसका विस्तार करके कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को जोड़ा गया।
दूसरे विश्वयुद्ध के समय जब अमेरिका और यूके की खुफिया एजेंसियों ने आपसी सहयोग शुरू किया तो फिर ये सिलसिला चलता ही रहा। दरअसल दोनों देशों ने महसूस किया कि खुफिया सूचनाएं एक दूसरे से साझा करना काम की चीज है और इसे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भी चलता रहना चाहिए। दोनों देशों ने मिलकर साल 1946 में एक UKUSA अग्रीमेंट पर साइन किया। फिर साल 1948 में कनाडा और कुछ ही सालों बाद ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी इस संगठन में शामिल हो गए।
साल 2017 में एक 'फाइव आइज़ इंटेलिजेंस ओवरसाइट एंड रिव्यू काउंसिल' बनाया गया था। इसमें तय किया गया कि वे साझा हितों और चिंताओं पर अपनी राय साझा करेंगे। ये संगठन तब भी चर्चा में आया था जब अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के लिए काम कर चुके एडवर्ड स्नोडेन ने कहा था कि ये संगठन नागरिकों की निजी जानकारी भी जुटा रहा है और इसे दूसरे देशों के साथ साझा भी करता है।
बता दें कि ट्रूडो ने पहले सोमवार को निज्जर की हत्या को भारत से जोड़ा था, जिसके बाद भारत ने तुरंत और सख्ती से इसका खंडन किया था। भारत ने अपने आंतरिक मामलों में "कनाडाई राजनयिक हस्तक्षेप" का भी आरोप लगाया और देश में काम करने वाले कनाडाई राजनयिकों की संख्या कम करने की मांग की।