मध्य-पूर्व के तीन जानी दुश्मनों के साथ चीन की दोस्ती का ये हो सकता है कारण
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 20, 2018 05:32 PM2018-11-20T17:32:24+5:302018-11-20T17:32:24+5:30
चीन और सऊदी अरब एक कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक और दूसरा कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक। चीन को मालूम है कि सऊदी अरब की सरकार के पास बिलियन डॉलर का भारी रिजर्व है और सऊदी अरब 'वन बेल्ट वन रोड' प्रोजेक्ट का मध्य-पूर्व में सबसे बड़ा सहभागी हो सकता है।
कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन एक साथ तीन कट्टर दुश्मनों से दोस्ती रखता है। ईरान, इजराइल और सऊदी अरब के दुश्मनी के किस्से पूरी दुनिया में मशहूर हैं और दुनिया के बाकी देश जहां मध्य-पूर्व के इन तीनो देशों से एक साथ दोस्ती करने में संकोच करते हैं वहीं चीन तीनों देशों के साथ एकसमान मित्रता रखता है। ईरान शिया देशों का नेतृत्व करता है वहीं सऊदी अरब खुद को सुन्नी इस्लामिक देशों का झंडाबरदार मानता है। दोनों देश इजराइल से उतना ही नफरत करते हैं जितना एक-दूसरे से करते हैं। ईरान और सऊदी अरब दोनों के इजराइल से आधिकारिक राजनयिक सम्बन्ध नहीं हैं। सऊदी अरब और इजराइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर समान रूप से चिंतित रहते हैं। सऊदी अरब और इजराइल अमेरिका के लाडले हैं। वहीं, ईरान रूस और चीन के ज्यादा नजदीक है।
चीन और ईरान की मित्रता परंपरागत रही है, वहीं हाल के वर्षों में सऊदी अरब और इजराइल के साथ भी चीन ने अपनी घनिष्ठता बढ़ाई है। साल 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद जब इराक और ईरान के बीच भयंकर युद्ध छिड़ता है तब अमेरिका और सऊदी अरब खुलकर इराक के पक्ष में आ जाते हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के दम पर इराक युद्ध के शुरुआती दौर में ईरान पर भारी पड़ता है। इस पूरे युद्ध के दौरान चीन ईरान का एक मात्र मददगार साबित होता है और उसका मुख्य आपूर्तिकर्ता भी। अंतरराष्ट्रीय अलगाव के दौर में चीन और ईरान की दोस्ती परवान चढ़ती है।
चीन के बारे में कहा जाता है कि बिना किसी फायदे के चीन किसी से घनिष्ठता नहीं बढ़ाता। दरअसल, खाड़ी युद्ध के दौर में चीन आर्थिक क्रांति से गुजर रहा था और उसने ईरान से दोस्ती सस्ते कच्चे तेल के आयात के लिए की थी। ईरान भौगोलिक रूप से भी चीन के लिए महत्वपूर्ण है, ईरान मध्य-पूर्व, एशिया और यूरोप के बीचोबीच स्थित है। चीन की रणनीति एशिया और यूरोप को जोड़कर अपने उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार तैयार करना है और ईरान इसलिए भी चीन के 'वन बेल्ट वन रोड' का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर जब अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने ईरान के ऊपर तमाम आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए उस दौर में भी चीन ईरान का सबसे बड़ा सहयोगी साबित हुआ।
चीन और इजराइल के सम्बन्ध हाल के वर्षों में मजबूत हुए हैं। चीनी लोगों के लिए इजराइल एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है। उसको मालूम है कि इजराइल तकनीक के क्षेत्र में मध्य-पूर्व का इकलौता बादशाह है और वह इजराइल के तकनीकी हुनर का कायल है। चीन ने इसराइल के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लगभग 16 अरब डॉलर का निवेश किया है। चीन और इजराइल के बीच बढ़ती दोस्ती ने अमेरिका की चिंताएं बढ़ा दी हैं। लेकिन, इस बीच जब भी संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के खिलाफ कोई प्रस्ताव आया है तो चीन ने हमेशा उन प्रस्तावों का खुलकर समर्थन किया है।
चीन और सऊदी अरब दोनों देशों में एक कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक और दूसरा कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। चीन को मालूम है कि सऊदी अरब की सरकार के पास बिलियन डॉलर का भारी रिजर्व है और सऊदी अरब 'वन बेल्ट वन रोड' प्रोजेक्ट का मध्य-पूर्व में सबसे बड़ा सहभागी हो सकता है। हाल के वर्षों में दोनों देशों की नजदीकियां और बढ़ी हैं। दोनों देशों ने बीते साल ही 4 लाख करोड़ रुपये के भारी-भरकम बिज़नेस डील पर हस्ताक्षर किये थे। दरअसल, चीन की विदेश नीति का बुनियाद ही आर्थिक मोर्चे पर तय किया जाता है। धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों से चीन अक्सर दूरी बनाये रखता है या संतुलन की नीति पर आगे बढ़ता है। तभी तो यमन के मुद्दे पर चीन सऊदी अरब के साथ है और सीरिया के मुद्दे पर ईरान के साथ।
पूरी दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति के मुहाने पर खड़ी है और चीन 21वीं शताब्दी का विश्व नेता बनना चाहता है। चीन पूरी दुनिया में चीनी सड़कों और रेलवे का विशाल नेटवर्क तैयार कर रहा है और इसके लिए उसे क्षेत्रीय शक्तियों की जरूरत का महत्व भी पता है इसीलिए चीन दुनिया के तीन कट्टर दुश्मन देशों के साथ दोस्ती करने में कोई संकोच नहीं कर रहा है क्योंकि उसे तो अमेरिका को पछाड़कर दुनिया का नेतृत्व करने की जल्दबाज़ी है।