सऊदी अरब के हवाई हमले के कारण भूखमरी के कगार पहुंचा यमन, सामने आया दिल दहला देने वाला वीडियो
By विकास कुमार | Published: February 19, 2019 01:39 PM2019-02-19T13:39:21+5:302019-02-19T13:39:21+5:30
यमन एक छोटा सा देश आज सऊदी कट्टरता का सबसे नया शिकार बना है। जहां अपनी कठपुतली सरकार को बचाने के लिए सऊदी और सहयोगी गठबंधन सेनाएं लगातार आसमान से आग उगल रही हैं।
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद-बिन-सलमान आज देर रात भारत दौरे पर पहुंच रहे हैं। इसके पहले वो पाकिस्तान गए और इससे साफ अंदाजा लगता है कि सऊदी अरब की प्राथमिकता की सूचि में पाकिस्तान ही अभी सबसे आगे हैं। सऊदी अरब और पाकिस्तान परंपरागत सहयोगी रहे हैं। सऊदी अरब इस वक्त दो मोर्चों पर फंसा हुआ है। ईरान को ठिकाने लगाने के मोर्चे पर उसे पाकिस्तान का सहयोग मिल रहा है तो वही मध्य-पूर्व में यमन पर सऊदी अरब और उसके सहयोगी हवाई बमबारी कर रहे हैं।
यमन एक छोटा सा देश आज सऊदी कट्टरता का सबसे नया शिकार बना है। जहां अपनी कठपुतली सरकार को बचाने के लिए सऊदी और सहयोगी गठबंधन सेनाएं लगातार आसमान से आग उगल रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक यमन इस सदी के सबसे बड़े मानवीय त्रासदी के कगार पर खड़ा है, जहां कभी भी 1.5 करोड़ लोगों की मौत भूख के कारण हो सकती है। हौती विद्रोहियों और सऊदी प्रायोजित सरकार के बीच के इस संघर्ष में अभी तक 50 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सऊदी अरब ने मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे आतंकवादियों को समर्थन देने के नाम पर कतर पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाये, लेकिन कतर अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था के दम पर सऊदी अरब को चुनौती देता रहा और आज भी सऊदी और उसके सहयोगियों के सामने मजबूती से खड़ा है।
कतर पर सऊदी प्रतिबन्ध
कतर ने यमन में सऊदी अरब की मदद नहीं की और इसके साथ ईरान से अच्छे रिश्ते होने के कारण ही सऊदी अरब और बाकी के खाड़ी देशों ने कतर से सारे रिश्ते तोड़ लिए और उस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए। लेकिन कतर ने तुर्की और ईरान की मदद से इन प्रतिबंधों को बेअसर कर दिया। शिया मुल्कों की अस्थिरता ही सऊदी अरब का प्राथमिक उद्देश्य रहा है। ईरान और अमेरिका के परमाणु डील को तोड़ने में भी सऊदी अरब ने बड़ी भूमिका निभायी है। लॉबिंग पर करोड़ों डॉलर खर्च किया गया और इसके लिए बाकायदा अमेरिकी कंपनियों की मदद ली गई।
यमन पर सऊदी अरब को अमेरिका का साथ
दरअसल यमन में एक बड़ी शिया आबादी होने के बावजूद वहां की सत्ता में उन्हें कोई स्थान प्राप्त नहीं है। ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना इस्लामिक जगत के मुखिया बने रहने के प्रोजेक्ट का ही हिस्सा है जिसके लिए सऊदी हुकूमत किसी भी हद तक जाने को तैयार है। अमेरिका ने हाल ही में ईरान से हुए न्यूक्लिअर डील को रद्द कर दिया है और भारी प्रतिबन्ध लगाने की तैयारी कर रहा है। पहले से ही ईरान की खोखली अर्थव्यवस्था अब दम तोड़ने के कगार पर पहुँच चुकी है। इतना सब होने के बाद कोई भी अंदाज़ा लगा सकता है ये किसके इशारे पर हो रहा है और क्यों हो रहा है?