ईरान के साथ परमाणु समझौता बचाने के लिए वियना में महाशक्तियों ने की बैठक, होगा अहम फैसला
By भाषा | Published: December 7, 2019 06:14 AM2019-12-07T06:14:04+5:302019-12-07T06:14:04+5:30
ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, रूस और ईरान के राजदूत इस बैठक में शामिल होंगे। इस साल जुलाई के बाद यह पहला मौका है जब छह देश इस तरह की बैठक करेंगे।
वर्ष 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने के बाद इस करार को बचाने के लिए शेष बची महाशक्तियों की बैठक शुक्रवार को वियना में शुरू हुई। यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब ईरान ने घोषणा की है कि वह भी करार की शर्तों का पालन नहीं करेगा। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, रूस और ईरान के राजदूत इस बैठक में शामिल होंगे।
इस साल जुलाई के बाद यह पहला मौका है जब छह देश इस तरह की बैठक करेंगे। मई से लेकर अबतक ईरान ने ऐसे अनेक कदम उठाए हैं जो 2015 के समझौते की शर्तों उल्लंघन करते हैं। इन कदमों में यूरेनियम को संवर्धित करने का कार्य भी शामिल है और जनवरी की शुरुआत में और ऐसे ही कदम उठाने की उम्मीद है। ईरान का कहना है कि अमेरिका 2018 में इस करार से हट गया और उसने तेहरान पर नए सिरे से प्रतिबंध लगा दिए जिसके बाद समझौते के तहत उसे अधिकार है कि वह जवाबी कार्रवाई करे।
यूरोपीय सदस्यों ने पिछले महीने से विवाद समाधान प्रकिया की संभावना को टटोलने की कोशिश शुरू की जिसका उल्लेख समझौते में है। इसकी परिणति ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की बहाली हो सकती है। तनावपूर्ण माहौल में होने वाली बैठक की पूर्व संध्या पर गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र को लिखी चिट्ठी में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने ईरान पर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करने का आरोप लगाया। ईरान के विदेशमंत्री जावेद जरीफ ने आरोपों को खारिज करते हुए इसे एक ‘हताश झूठ’ करार दिया। पर्यवेक्षकों का कहना है कि तनाव के बावजूद ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की ओर से शुक्रवार को होने वाली बैठक में विवाद समाधान प्रक्रिया शुरू करने की संभावना कम है।
इस बैठक की अध्यक्षता यूरोपीय संघ की वरिष्ठ अधिकारी हेलगा-मारिया श्मिड ने करेंगी। विश्लेषकों का कहना है कि अगर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध दोबारा लगाए जाते हैं और समझौता भंग होता है तो ईरान परमाणु हथियार अप्रसार समझौता (एनपीटी) से अलग हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय आपदा समूह से जुडे अली वाइज ने कहा, ‘‘ यह स्पष्ट नहीं है कि इससे कोई फायदा होगा या नहीं, लेकिन चेतावनी दी समझौते के नाकाम होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।’’