जानिए कौन हैं कात्सुको सारुहाशी, गूगल ने डूडल बनाकर विश किया हैप्पी बर्थडे
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: March 22, 2018 09:15 AM2018-03-22T09:15:02+5:302018-03-22T09:24:39+5:30
कात्सुको सारुहाशी केमिस्ट्री में पीएचडी करने वाली पहली जापानी महिला थीं। उन्होंने 1957 में यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो से केमिस्ट्री में पीएचडी की थी।
गूगल ने जापानी जियोकेमिस्ट कात्सुको सारुहाशी के जन्मदिन (22 मार्च) पर डूडल बनाया है। 22 मार्च 1920 को टोक्यो में जन्मीं कात्सुको को कॉर्बन डाइऑक्साइड (सीओटू) की सर्वप्रथम मापन करने वालों में एक मानी जाती हैं। कात्सुको ने सीओटू से समुद्री जल और पर्यावरण में रेडियोएक्टिव खतरों के प्रति भी आगाह किया। कात्सुको ने इम्पीरियल वुमन्स कॉलेज ऑफ साइंस (अब तोहो यूनिवर्सिटी) से विज्ञान की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने जापान के सेंट्रल मेटेओरोलॉजिक ऑब्जरवेटरी के लैब में काम शुरू किया। उन्होंने 1950 में समुद्री जल के सीओटू के स्तर का अध्ययन शुरू किया था। उस समय तक सीओटू स्तर का अध्ययन नहीं होता था। इसलिए कात्सुको को इसके लिए अपनी पद्धति विकसित करनी पड़ी।
साल 1954 के बिकिनी एटॉल न्यूक्लियर टेस्ट के बाद जापान सरकार ने जियोकेमिकल लैब्रोटरी को समुद्री जल और बारिश जल में सीओटू का स्तर और रेडियोएक्टिविटी के अध्ययन के लिए अनुमोदित किया। कात्सुको ने 1957 में यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो से केमिस्ट्री में पीएचडी की। वो केमिस्ट्री में पीएचडी करने वाली पहली जापानी महिला थीं। कात्सुको के अध्ययन से सामने आया कि जापानी समुद्री जल में रेडियोएक्टिविटी पहुँचने में डेढ़ साल लगते हैं। 1964 में कात्सुको ने अध्ययन में दिखाया कि प्रशांत महासागर के पश्चिमी और पूर्वी जल मिल चुके हैं। 1969 में पता चला कि पूरे प्रशांत महासागर में रेडियोएक्टिविटी फैल चुकी थी। कात्सुको के अध्ययन से साफ हुआ कि ये परिघटना पूरे विश्व को प्रभावित करती है। 1970 और 1980 के दशक में कात्सुको ने एसिड रेन और उसके प्रभावों का अध्ययन किया। कात्सुको का 87 वर्ष की उम्र में 29 सितंबर 2007 को उनके टोक्यो स्थित घर पर निधन हो गया।