क्या तृतीय विश्वयुद्ध का कारण एक बार फिर से 'कट्टर राष्ट्रवाद' की विचारधारा बनेगी?

By विकास कुमार | Published: January 28, 2019 03:08 PM2019-01-28T15:08:06+5:302019-01-28T15:11:02+5:30

20 वीं शताब्दी में पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद की जंग हो रही थी और इसके जनक आज मानवता की दुहाई देने वाले पश्चिम के राष्ट्रवादी ही थे. राष्ट्रवाद की कट्टर पाठशाला ने जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलनी और रूस में स्टालिन को पैदा किया.

Donald Trump, putin, Jinping nationalism would be reason of third world war | क्या तृतीय विश्वयुद्ध का कारण एक बार फिर से 'कट्टर राष्ट्रवाद' की विचारधारा बनेगी?

क्या तृतीय विश्वयुद्ध का कारण एक बार फिर से 'कट्टर राष्ट्रवाद' की विचारधारा बनेगी?

Highlightsअमेरिका आज भी पश्चिम के राष्ट्रवाद का नेतृत्व कर रहा है तो पूर्व में चीन की साम्राज्यवादी नीतियां भी खुल कर सामने आ गई हैं.भारत का राष्ट्रवाद आज भी बाकी देशों के मुकाबले उदारवादी दिखता है, क्योंकि इसका मकसद दूसरे देशों को जीतना नहीं बल्कि चुनाव जीतना है.अमेरिका बनाम आल की स्थिति बनती हुई दिख रही है.

पूरी दुनिया में राष्ट्रवाद इस वक्त उफान पर है. भारत से लेकर अमेरिका और चीन से लेकर रूस तक राष्ट्रवादी सरकारें सत्ता में हैं. जाहिर सी बात है कि जब सत्ता में राष्ट्रवाद का बोलबाला है तो किसी भी देश का आर्थिक मॉडल भी इसी के इर्द-गिर्द घूमेगा. डोनाल्ड ट्रंप का चीन के साथ जारी ट्रेड वॉर और चीन का साउथ चाइना सी से लेकर 'वन बेल्ट वन रोड' के जरिये अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना उसी राष्ट्रवाद की धधकती अग्नि में प्रज्जवलित होने का एक मात्र उदाहरण भर है.

रूस में पुतिन की सरकार और यूक्रेन को फिर से अपना बनाने का दीवानापन राष्ट्रवाद की दीवानगी का ही हैंगओवर है. ये तो बात हुई अंतरराष्ट्रीय मॉडल की जिसे प्रायः पश्चिम का राष्ट्रवाद कहा जाता है. लेकिन आज राष्ट्रवाद के मामले में पूर्व का मॉडल भी पश्चिम को जबरदस्त टक्कर दे रहा है. 

भारत का उदारवादी राष्ट्रवाद  

भारत में राष्ट्रवाद का पेटेंट हमेशा से एक ही पार्टी के पास रहा है. अन्य पार्टियां इस पर दावा करने की हिमाकत कभा नहीं जुटा पायीं. समय-समय पर बीजेपी के इस राजनीतिक और सांस्कृतिक हथियार को क्षद्म राष्ट्रवाद का नाम देकर कमजोर करने का प्रयास जरूर किया गया लेकिन जब से मोदी सरकार ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक किया है, विपक्ष अब और भी सावधान हो गया है. क्योंकि बीजेपी के पास जो पेटेंट था अब वो प्राकृतिक रूप से शाश्वत हो गया है. राष्ट्रवाद के उफान के लिए सेना का प्रदर्शन जरूरी हो जाता है. पिछले पांच सालों में भारतीय सेना को अपने सिविलियन और सरकार से जितना प्यार और सम्मान मिला है वो पिछले 70 सालों के बराबर है. इस मामले में मोदी जी का 5 साल कांग्रेस के 70 साल पर बहुत ज्यादा भारी पड़ता है.   

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भी राष्ट्रवाद के नतीजों से उत्साहित दिख रहे हैं, तभी तो राम मंदिर के जगह NRC को हवा दिया जा रहा है. हाँ इसे कुछ लोग संघ के हिन्दू राष्ट्रवाद से भी जोड़कर देख रहे हैं. लेकिन ये एक मात्र संयोग भर है. अमित शाह एनआरसी को देश की आंतरिक सुरक्षा का प्रयायवाची बता चुके हैं. मोहन भागवत भले ही इसे हिन्दू राष्ट्रवाद के चश्मे से देखकर मोदी-शाह को शाबासी दे सकते हैं लेकिन बीजेपी का मकसद इस मुद्दे को संपूर्ण हिन्दुस्तान के राष्ट्रवाद से जोड़ना है. 

नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रवाद 

लोकसभा चुनाव से पूर्व मोदी सरकार पर राम मंदिर को लेकर जबरदस्त दबाव बढ़ रहा है लेकिन सरकार कन्हैया कुमार और उमर खालिद को ठिकाने लगाने में व्यस्त है. उमर खालिद पर आरोप है कि उसने भारत के टुकड़े होने के नारे लगाये थे और अफजल गुरु के कातिलों को ठिकाने लगाने की कसमें खा चुका है. मामला देशद्रोह का था और बात हमारे राष्ट्र की थी इसलिए राम मंदिर के जगह टुकड़े-टुकड़े गैंग को प्राथमिकता देना मोदी सरकार का समझदारी भरा फैसला माना जाना चाहिए.  

पाकिस्तान का इस्लामिक राष्ट्रवाद 

पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार सत्ता में हैं. 1992 में पाकिस्तान को क्रिकेट का विश्व चैंपियन बनाने के कारण उनके लिए राष्ट्रवाद का कार्ड खेलना ज्यादा आसान साबित हुआ. देश को 100 दिनों में सबकुछ देने का वादा कर सत्ता में आये इमरान आजकल बड़े पैमाने पर मुर्गियां बांट रहे हैं ताकि देश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बनाया जा सके. पूर्व पीएम नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं इसलिए इमरान का राष्ट्रवाद मजबूत नजर आ रहा है. प्रधानमंत्री बनते ही ISI मुख्यालय जाना पाकिस्तानी राष्ट्रवाद के सबसे विशाल स्वरुप को सलाम करने का प्रतीक बन कर उभरा. बार-बार कश्मीर समस्या को हल करने का राग अलापना और बॉर्डर पर प्रॉक्सी वॉर को जारी रखना उनके राष्ट्रवादी एजेंडे का ही एक हारा हुआ प्रयास है.

दरअसल पाकिस्तान के इस्लामिक राष्ट्रवाद का सबसे मजबूत स्तम्भ मोहम्मद अली जिन्ना के बाद कोई भी राजनेता उनके स्तर का राष्ट्रवादी तो छोड़िए उनके इर्द-गिर्द भी भटक नहीं पाया. और इस पूरी विरासत को वहां की सेना और ISI ने मिलकर संभाला. लेकिन पाकिस्तानी सेना के हारे और बुरी तरह पिटे राष्ट्रवाद का नतीजा 1971 में बांग्लादेश के रूप में सामने आया. पाकिस्तान के कुत्सित राष्ट्रवाद से पैदा हुआ बांग्लादेश भी आज उसी के रास्ते पर चल पड़ा है. विकास की बयार तो बह रही है लेकिन देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है. विपक्ष की नेता भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं और शेख हसीना बिना किसी रोक-टोक के चुनाव जीत रही हैं. 

विश्व युद्ध का कारण बना था राष्ट्रवाद 

20 वीं शताब्दी में पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद की जंग हो रही थी और इसके जनक आज मानवता की दुहाई देने वाले पश्चिम के राष्ट्रवादी ही थे. राष्ट्रवाद की कट्टर पाठशाला ने जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलनी और रूस में स्टालिन को पैदा किया. राष्ट्रवाद के नाम पर पूरी दुनिया को जीत लेने की महत्वाकांक्षा ने प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध जैसे मानवीय त्रासदियों को जन्म दिया, जिसमें कम से कम 10 करोड़ लोग की जान गई. आज दुनिया उसी रास्ते पर आगे बढ़ती हुई दिख रही है.

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अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता जारी है और जिसका असर साउथ चाइना सी से लेकर अफ्रीकी देशों में विस्तार के रूप में दिख रहा है. अमेरिकी, चीन और रूस के बीच हथियारों की होड़ एक बार फिर से शुरू हो चुकी है. चीन ने हाल ही में अमेरिकी तर्ज पर ही मदर ऑफ आल बम' का परिक्षण किया है. रूस और अमेरिका शीत युद्ध के दौर से बहुत आगे निकल चुके हैं और अमेरिकी सामरिक नीतियों को सीरिया में रूस से जबरदस्त चुनौती मिल रही है.

राष्ट्रवाद का फायदा राजनीतिक या आर्थिक 

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी रैलियों में ही यह साफ कह दिया था कि उनकी सरकार 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति को अपनाएगी. सत्ता में आने के बाद अपने बातों पर अडिग रहते हुए उन्होंने कारनामे दिखाने शुरू कर दिए. पेरिस जलवायु समझौते को तोड़कर उन्होंने प्रयावरण में बढ़ते ग्रीन हाउस गैसों की वैश्विक चिंता को अपने राष्ट्रवादी बन्दूक से ऐसा निशाना साधा कि आज पूरी दुनिया एक बार फिर जलवायु परिवर्तन के विनाशक परिणामों से दो चार होने को विवश हो गई है.

चीन के साथ ट्रेड वॉर जारी है अभी तक कूल 250 बिलियन डॉलर के चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाया गया है. हाल ही में पूरे विश्व की सबसे धनी कंपनी एप्पल के शेयर 10 फीसदी गिरे और कंपनी का 75 बिलियन डॉलर एक ही दिन में डूब गया. एप्पल के सीईओ टीम कुक ने अपने निवेशकों को लिखे डिजिटल खत में इस बात की जानकारी दी कि अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर का असर दिखना शुरू हो गया है और यह व्यापरिक युद्ध अगर आगे भी जारी रहता है तो कंपनी को और भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

चीन का साम्राज्यवाद 

चीन जो 21 वीं शताब्दी में अमेरिका की बादशाहत को चुनौती देने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहा है, हाल के दिनों में कई आक्रामक फैसले लिए है. शी जिनपिंग ने पीपल लिबरेशन आर्मी को एक बड़े युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है. साउथ चाइना सी में पहले से ही कृत्रिम टापू का निर्माण कर रहे चीन अपनी 'वन बेल्ट वन रोड परियोजना' के जरिये पूरी दुनिया में आधुनिक साम्राज्यवाद की नई मिसाल पेश करना चाहता है. अमेरिका हो या चीन, इन दोनों के राष्ट्रवाद का एक ही मकसद दिखता है. वैश्विक वर्चस्व को कायम रखने के लिए आज दुनिया के कई देश किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. लेकिन इस बीच उन्हें भारत और इंडोनेशिया जैसे उभरती अर्थव्यवस्थाओं से जबरदस्त टक्कर मिल रहा है. 

सरंक्षणवादी रवैया अपनाकर कभी भी ग्लोबल विलेज की कल्पना को साकार नहीं किया जा सकता. आज दुनिया के सामने ऐसी कई चुनौतियां हैं जिसका सामना बिना आपसी सहभागिता के संभव नहीं है. 2050 तक पूरे विश्व की जनसंख्या 10 अरब को पार कर जाएगी. इतने लोगों के खाने की व्यवस्था ऐसे वक्त में जब लगातार ग्लोबल वार्मिंग के कारण कृषि क्षेत्र का दायरा सिमटता जा रहा है, करना मुश्किल लग रहा है. विश्व नेताओं को राष्ट्रवाद और नेशन की थ्योरी से बाहर निकलकर मानवता को बचाने का प्रण लेना होगा तब जाकर ग्लोबल विलेज की परिकल्पना को सही मायनो में प्राप्त किया जा सकता है.

Web Title: Donald Trump, putin, Jinping nationalism would be reason of third world war

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