नेपाल में घरेलू राजनीति, चीनी समर्थन व भारतीय शिथिलता ने राष्ट्रपति ओली को सीमा विवाद के लिये उकसाया: विशेषज्ञ

By भाषा | Published: June 15, 2020 04:40 AM2020-06-15T04:40:17+5:302020-06-15T04:40:17+5:30

नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाली भू-भाग प्रदर्शित करने वाले एक नये नक्शे के संबंध में देश की संसद से आमसहमति से मंजूरी लेने में सफल रही है।

Domestic politics, Chinese support and Indian laxity in Nepali provoked Oli for border dispute | नेपाल में घरेलू राजनीति, चीनी समर्थन व भारतीय शिथिलता ने राष्ट्रपति ओली को सीमा विवाद के लिये उकसाया: विशेषज्ञ

केपी शर्मा ओली (फाइल फोटो)

Highlightsभारत को यह कहना पड़ा कि इस तरह का कृत्रिम क्षेत्र विस्तार का दावा स्वीकार्य नहीं है।नेपाली संसद में इस पर मतदान कराया जाना, दोनों देशों के बीच सात दशक पुराने सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों के अनुरूप नहीं हैं। नेपाल भारत के पांच राज्यों--सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ सीमा साझा करता है।

नयी दिल्ली: विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि नेपाली घरेलू राजनीति में उथल-पुथल, उसकी बढ़ती आकांक्षाएं, चीन से मजबूत आर्थिक सहयोग के कारण बढ़ रही हठधर्मिता और इस पड़ोसी देश से बातचीत करने में भारतीय शिथिलता के चलते नेपाल ने दोनों देशों के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद को नये स्तर पर पहुंचा दिया है।

नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाली भू-भाग प्रदर्शित करने वाले एक नये नक्शे के संबंध में देश की संसद के निचले सदन से आमसहमति से मंजूरी लेने में सफल रही है। इस पर भारत को यह कहना पड़ा कि इस तरह का कृत्रिम क्षेत्र विस्तार का दावा स्वीकार्य नहीं है। नेपाली संसद में इस पर मतदान कराया जाना, दोनों देशों के बीच सात दशक पुराने सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों के अनुरूप नहीं हैं।

यह क्षेत्रीय महाशक्ति भारत से टकराव मोल लेने की नेपाल की तैयारियों को प्रदर्शित करता है और यह संकेत देता है कि उसे दोनों देशों के बीच पुराने संबंधों की परवाह नहीं है। वर्ष 2008 से 2011 के बीच नेपाल में भारत के राजदूत रहे राकेश सूद ने कहा कि दोनों पक्षों ने संबंधों को ‘‘बहुत ही खतरनाक बिंदु’’ पर पहुंचा दिया है और भारत को काठमांडू से बात करने के लिये समय देना चाहिए था क्योंकि वह नवंबर से ही इस मुद्दे पर वार्ता के लिये जोर दे रहा है।

नेपाल भारत के 5 राज्यों के साथ 1850 किमी सीमा साझा करता है

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हमने संवेदनशीलता की कमी प्रदर्शित की है और अब नेपाली खुद को (हमसे) उतनी दूर ले जाएंगे, जहां से उन्हें वापस (वार्ता की मेज पर) लाना मुश्किल होगा।’’ नेपाल भारत के पांच राज्यों--सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड-- के साथ 1850 किमी लंबी सीमा साझा करता है।

अनूठे मैत्री संबंधों के अनुरूप लोगों की मुक्त आवाजाही की दोनों देशों की लंबी परंपरा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 80 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं। दोनों देशों के बीच मजबूत रक्षा संबंध हैं। भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। नेपाल से आये करीब 32,000 गोरखा सैनिक भारतीय सेना में हैं।

नेपाल में 2013 से 2017 तक भारत के राजदूत रहे रंजीत राय ने कहा कि प्रधानमंत्री ओली ने घरेलू राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिये ही नये नक्शे पर कदम बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि ओली अपने इस कदम से आगे निकल गये हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘भारत विरोधी भावनाएं भड़काने से उन्हें चुनाव जीतने में मदद मिली और उन्हें लगता है कि अब फिर से उन्हें इस कदम से मदद मिलेगी क्योंकि घरेलू राजनीति को लेकर वह काफी दबाव में हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह घरेलू राजनीति में ओली के अंदर असुरक्षा की भावना और नेपाल की राजनीति में उनकी स्थिति कमजोर होने से संबद्ध है। आर्थिक मोर्चे पर सरकार की नाकामी को लेकर नेपाल में काफी प्रदर्शन हुए हैं। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में यह अफवाह है कि नेतृत्व परिर्वतन हो सकता है। मुझे लगता है कि यह ओली के लिये एक संजीवनी है।’’ नेपाल के खिलाफ 2015 की कथित आर्थिक नाकेबंदी के बाद से चीन के साथ भारत के संबंधों में काफी तनाव आया है।

तब से चीन ने नेपाल में भारी मात्रा में वित्तीय निवेश किया है, जिससे इस भू-आबद्ध देश को पेट्रोलियम ओर अन्य उत्पादों के परिवहन सहित अन्य चीजों के लिये नयी सड़क बनाने में मदद मिली। चीन ने काठमांडू को तिब्बत के शिगस्ते से जोड़ने वाले एक महत्वाकांक्षी रेल मार्ग की भी योजना बनाई है। वहां यह ल्हासा के लिये मौजूदा रेल मार्ग से जुड़ेगा। चीन ने नेपाल को माल के नौवहन के लिये चार बंदरगाहों की भी पेशकश की है। नेपाल को समुद्री मार्ग से मंगाये गये माल को भारत के रास्ते अपने यहां लाने पर काफी निर्भर रहना पड़ा था।

नेपाल खुद को आश्वस्त और मजबूत प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा है

रणनीतिक मामलों के प्रख्यात विशेषज्ञ प्रो. एस डी मुनि ने कहा कि नेपाल की ताजा गतिविधि से एक बड़ा संदेश यह है कि नेपाली खुद को आश्वस्त और मजबूत प्रदर्शित कर रहे हैं तथा विशेष संबंधों का पुराना ढांचा पूरी तरह से समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा, ‘‘वे लोग इसकी परवाह नहीं करते हैं। आपको नेपाल से अलग तरह से पेश आना होगा, थोड़ा और संवेदनशीलता के साथ और थोड़ी और युक्ति और समझबूझ के साथ । यह नया नेपाल है। नेपाल के 65 प्रतिशत लोग युवा हैं। वे अतीत की परवाह नहीं करते। उनकी अपनी आकांक्षाएं हैं। जब तक भारत उनकी आकांक्षाओं के प्रति प्रासंगिक नहीं होगा, वे परवाह नहीं करेंगे।’’

सूद ने कहा, ‘‘चीन के साथ हमारा विवाद भू-भाग को लेकर है ; दोनों सेनाएं वहां से हटने के बारे में बातचीत कर रही हैं। भू-भाग को लेकर हमारा पाकिस्तान के साथ विवाद है, दोनों सेनाएं आमने-सामने हैं और नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी होती रहती है।’’ उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या इसी तरीके से हम इसे विवाद का रूप देकर नेपाल के साथ अपनी सीमा को देखना चाहते हैं, जबकि इस पड़ोसी देश के साथ लोगों की मुक्त आवाजाही के लिये ब्रिटिश शासन के समय से ही खुली सीमा है और जो 1947 के बाद भी है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या नेपाल के इस कदम के पीछे चीन खड़ा है, सूद ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि काठमांडू ने यह मुद्दा चीन के इशारे पर उठाया है। हालांकि, वह इस बात से सहमत हैं कि नेपाल में हाल के वर्षों में चीनी प्रभाव बढ़ा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिटस मुनि ने यह भी कहा कि भारत की ‘‘पड़ोसी पहले की नीति’’ पटरी से उतर गई है क्योंकि इसका क्रियान्वयन ‘‘मनमाने तरीके से’’ करने की अनुमति दे दी गई है। वहीं, यह पूछे जाने पर कि क्या भारत ने नेपाल द्वारा की गई वार्ता की अपील का जवाब नहीं देकर गलती की, प्रो. मुनि ने कहा, ‘‘ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां भारत ने छोटे पड़ोसी देशों से पेश आने में शिथिलता और अति आत्मविश्वास दिखाया है।

दिल्ली को पड़ोसी देश से बात करने के लिये निकालना चाहिए था वक्त 

नेपाल इसका अपवाद नहीं है।’’ हालांकि, प्रो. सूद ने कहा कि नयी दिल्ली को पड़ोसी देश से बात करने के लिये वक्त निकालना चाहिए था। उन्होंने तंज करते हुए कहा, ‘‘प्रत्येक दिन हम (समाचारपत्रों) में पढ़ते हैं कि प्रधानमंत्री अपने 50 समकक्षों के साथ वीडियो कांफ्रेंस के जरिये बैठक कर रहे हैं, हमारे विदेश मंत्री ने अपने 70 समकक्षों के साथ वीडियो कांफ्रेंस के जरिये बैठक की है ; निश्चित रूप से किसी न किसी स्तर पर नेपाली अधिकारियों के साथ या अन्य--विदेश मंत्री, विदेश सचिव या प्रधानमंत्री के स्तर पर बैठक संभव रही होगी।’’

सूद ने कहा, ‘‘हम कहते रहे हैं कि नेपाल के साथ हमारा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक जुड़ाव है। तो फिर क्यों इतने असंवेदनशील हैं कि हम पांच-छह महीनों से उनसे बात करने का समय नहीं निकाल पाये। उन्होंने नवंबर में यह मुद्दा उठाया था और तब कोविड-19 संकट नहीं था।’’ राय ने कहा कि संविधान संशोधन के लिये नेपाल का फैसला करना इस मुद्दे को और उलझा देगा।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह संबंधों को बेहतर करने के बजाय और उलझाने जा रहा है। यह इस मुद्दे को बातचीत के दायरे से बाहर कर देगा। राय ने कहा, ‘‘लेकिन हमने कहा था कि हम कोरोना वायरस संकट खत्म होने के बाद बातचीत करेंगे। इसलिए, संविधान संशोधन के लिये बढ़ने की कोई तात्कालिकता नहीं थी। यह मुद्दा 1997 से लंबित है, इसलिए कुछ और महीनों से कोई बड़ा अंतर नहीं आ जाता।’’ 

Web Title: Domestic politics, Chinese support and Indian laxity in Nepali provoked Oli for border dispute

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