समंदर में डूबने वाला है यह देश, विदेश मंत्री ने कहा- नहीं चेते तो दुनिया के दूसरे देशों का भी हो सकता है यही हाल, देखें वीडियो

By सतीश कुमार सिंह | Published: December 2, 2021 07:48 PM2021-12-02T19:48:55+5:302021-12-02T19:50:04+5:30

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सदी में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने से रोकने के लक्ष्य को पूरा करने की संभावना धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

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दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस की वार्मिंग से दूर है जिसका लक्ष्य 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में तय किया गया। पृथ्वी पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गयी है।

Highlights2010 के बाद से करीब 14 प्रतिशत बढ़ा है।मामूली बदलाव ही देखने को मिले।जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हम पर दशकों तक रहेगा।

संयुक्त राष्ट्रः ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को लेकर दुनिया के कई देश चिंतिंत हैं। धरती पर कई द्वीप इस सच्चाई से रोज रूबरू हो रहे हैं। कल्पना कीजिए कोई देश समुद्र में समा जाए। लोग कहां जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों को पानी पीने को नहीं मिल रहा है।

पेरिस में दो लक्ष्यों के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये थे, एक तो वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) तक सीमित रखना और दूसरा 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य स्तर तक लाना। प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटे से द्वीप राष्ट्र तुवालु का हाल भी यही है।

तुवालु के विदेश मंत्री साइमन कोफे ने समुद्री जल में घुटने के बल खड़े होकर विकसित देश को एक शक्तिशाली संदेश दिया। द्वीप राष्ट्र तुवालु हवाई और ऑस्ट्रेलिया के बीच आधे रास्ते में स्थित है। विदेश मंत्री ने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन की वास्तविकताओं को जी रहे है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। विसकित देश ग्रीन उत्सर्जन को कम करे।

साइमन कोफे ने कहा कि हम डूब रहे हैं। हम डूब रहे लेकिन बाकी के साथ भी हो सकता है। ये ग्लोबल वार्मिंग किसी को नहीं छोड़ेगा। कोफे उस जगह खड़े थे, जहां कभी सूखा हुआ करता था। तुवालु आज जहां है वह जलवायु संकट के गंभीर परिणामों की आहट भर है। पूरा 26 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जहां करीब 12000 लोग रहते हैं।

तुवालू के निकटतम पड़ोसी किरीबाती, सामोआ और फीजी हैं। किरीबाती और मालदीव की तरह तुवालू प्रवाल भित्तियों से बना है। यहां पर ग्लोबल का काफी प्रभाव है। जमीन की परत काफी पतली है। दोनों ओर की समुद्र देख सकते हैं। चक्रवात और सूखा यहां पर आम बात है।

पृथ्वी तापमान दो डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है। अमेरिका स्थित ‘प्रिंसटन यूनिवर्सिटी’ के जलवायु वैज्ञानिक माइकल ओप्पेनहीम ने ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ (एपी) से ईमेल के जरिए रविवार को कहा, ‘‘1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य ग्लासगो सम्मेलन से पहले ही खत्म होने की कगार पर है और अब इसे मृत घोषित करने का समय आ गया है।’’

एस्पिनोसा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की गणना के अनुसार, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए उत्सर्जन को 2030 तक आधा करने की आवश्यकता है, लेकिन यह जर्मन अनुसंधानकर्ता हैन्स ओट्टो पोर्टनर ने कहा कि ग्लासगो सम्मेलन में ‘‘ काम किया गया, लेकिन पर्याप्त प्रगति नहीं हुई। वार्मिंग दो डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी। यह प्रकृति, मानव जीवन, आजीविका, निवास और समृद्धि के लिए खतरा पैदा करने वाली बात है।’’

(इनपुट एजेंसी)

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