चीन का 'वन बेल्ट वन रोड' दम तोड़ रहा है, कई देशों ने मिलकर सिखाया सबक

By विकास कुमार | Published: January 20, 2019 06:52 PM2019-01-20T18:52:24+5:302019-01-20T18:52:24+5:30

हाल के दिनों में चीन की इस असलियत का खुलासा दुनिया के कई 'थिंक टैंक' ने किया है और इसी का नतीजा है कि कई देशों ने राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के इस महत्‍वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है. मलेशिया ने चीन समर्थित चार परियोजनाओं को रद्द कर दिया.

China one belt one road is now rejected by many countries | चीन का 'वन बेल्ट वन रोड' दम तोड़ रहा है, कई देशों ने मिलकर सिखाया सबक

चीन का 'वन बेल्ट वन रोड' दम तोड़ रहा है, कई देशों ने मिलकर सिखाया सबक

चीन ने 2013 में जिस 'वन बेल्ट वन रोड' (ONE BELT ONE ROAD) परियोजना की शुरुआत की थी, अब वह कठघरे में खड़ी हो रही है. चीन ने OBOR काे एशिया, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने वाली परियोजना के रूप में प्रचारित किया. तीन ख़रब अमरीकी डॉलर इस पर झोंक दिए. वह सेंट्रल एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया और मध्य-पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. चीन दुनिया का बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब है और उसे अपने उत्‍पाद बेचने के लिए बड़े बाजार की तलाश है. लेकिन, जिस आधार पर OBOR का विरोध शुरू हुआ है, उसका आधार कुछ और ही है. चीन ने अपने पड़ोसी देशों से आधारभूत ढांचा खड़ा करने के नाम पर समझौता किया, लेकिन उसने इसके एवज में इतना महंगा कर्ज उन देशों पर थोप दिया कि OBOR उन्‍हें बोझ लगने लगी.

जब ये देश क़र्ज़ चुकाने में नाकाम हो गए तो उनके प्राकृतिक संसाधनों का ज़बरदस्त दोहन किया. एशिया का एक छोटा सा देश लाओस जिसकी अर्थव्यवस्था 9000 करोड़ रुपये के आसपास है. चीन ने यहां पर रेलवे और हाईवे के निर्माण के लिए 5000 करोड़ का निवेश किया है. इसी के साथ अब इस देश की कुल अर्थव्यवस्था के 52 फीसदी हिस्से पर चीन का कब्ज़ा हो चुका है. 

मलेशिया ने भी रद्द किया चीनी परियोजनाएं 

हाल के दिनों में चीन की इस असलियत का खुलासा दुनिया के कई 'थिंक टैंक' ने किया है और इसी का नतीजा है कि कई देशों ने राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के इस महत्‍वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है. मलेशिया ने चीन समर्थित चार परियोजनाओं को रद्द कर दिया. ये चारों परियोजनाएं 23 अरब डॉलर की थीं. महातिर मोहम्मद को चीन विरोधी कहा जाता है. जानकार चीन के इन प्रोजेक्टों के रद्द होने के पीछे मलेशिया में सत्ता परिवर्तन बता रहे है. चीन के बैंकों के उच्च दर वाला ब्याज वहां की नै सरकार को रास नहीं आ रहा है और उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा महसूस हो रहा है.

चीनी कर्ज़ का डर म्यांमार को भी सता रहा है. हाल ही में म्यांमार के वित्तमंत्री ने चीनी परियोजनाओं के आकार को बहुत हद तक सीमित करने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों से उन्हें सबक मिला है कि ज़्यादा कर्ज़ कई बार अच्छा नहीं होता है. म्यांमार के क्याऊकप्यु में चीन विशेष आर्थिक क्षेत्र बानाने वाला है. यह हिन्द महासागर में है और 10 अरब डॉलर का प्रोजेक्ट है. यह प्रोजेक्ट चीन के वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा है. थाईलैंड 3000 करोड़ के प्रोजेक्ट को स्थगित कर चुका है. रेलवे और हाईवे की योजनाओं में निवेश के रास्ते चीनी क़र्ज़ इस छोटे से देश में गहरी पैठ बना चुका था.

कई देशों ने बंद किया प्रोजेक्ट 

थाईलैंड की सबसे बड़ी दिक्कत चीनी क़र्ज़ की अपारदर्शी शर्तें थीं, जिसका डर उसे लगातार सता रहा था. एक और एशियाई देश उज़्बेकिस्तान ने चीनी क़र्ज़ को अपनी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बता डाला. दरअसल इस देश के ऊपर कुल विदेशी क़र्ज़ का 74% हिस्सा चीन का है जो इनकी परेशानियों को बढ़ाने के लिए काफी था. पाइपलाइन और रेलवे प्रोजेक्ट को स्थगित करने में उज़्बेकिस्तान ने ज़रा भी देर नहीं लगायी और साथ में चीनी सरकार को एक कड़ा सन्देश भी दिया.

श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह चीनी क़र्ज़ की भेट चढ़ चुका है. चीन के 6000 करोड़ रुपये की भारी भरकम क़र्ज़ को न चुका पाने की स्थिति में श्रीलंका को ये बंदरगाह 99 साल की लीज़ पर चीन को सौपना पड़ा और औ इसके साथ -साथ इस क्षेत्र की 15000 एकड़ ज़मीन भी चीन को देना पड़ा जिसका इस्तेमाल आर्थिक गलियारे को विकसित करने के लिए किया जायेगा. दरअसल चीन की नज़र हमेशा से ही इस बंदरगाह पर थी क्योंकि ये पूरा क्षेत्र सामरिक लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है. दक्षिण एशिया में भारत को घेरने के किये चीन इसका इस्तेमाल कर सकता है.

पाकिस्तान चीनी क़र्ज़ में गिरफ्तार हो चुका है

हाल के दिनों में पाकिस्तान और चीन का लव अफेयर पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत चीन 55 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है जिसमें ग्वादर पोर्ट को भी विकसित किया जाना है.चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी मिलेगा. ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से अमेरिकी राहत पैकेज पर टिकी हुई थी, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका की सख्ती ने चीन को उसके करीब लाने का काम किया है. लेकिन जानकार इस डील को चीन के पक्ष में एकतरफा जाते हुए देख रहे हैं.

दरअसल चीन का मुख्य मकसद बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और भारत की दक्षिण एशिया में घेरेबंदी है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सरकार कैश रिज़र्व के मामले में आज पूरी दुनिया में सबसे ऊपर है. जिसके पास लगभग 800 लाख करोड़ की नगद राशि है. चीन ने लगातार चार दशकों तक 10 % से ज्यादा की रफ़्तार से विकास करने के बाद इस मुकाम को हासिल किया है. चीन की अर्थव्यवस्था आज पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है और इसने चीनी अर्थव्यवस्था की महत्वाकांक्षाओं को कई गुना बढ़ा दिया है.

चीन का आधुनिक साम्राज्यवाद 

अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना अब चीन की फितरत बन चुका है. चीन ने पूरी दुनिया में आधुनिक साम्राज्यवाद की एक नयी तस्वीर पेश की है जिसका शिकार एशिया और अफ्रीका के छोटे देश बन रहे हैं. चीनी महत्वाकांक्षा को देखते हुए उसे आधुनिक युग का ब्रिटेन कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए. OBOR को लेकर भारत पहले ही ऐतराज जता चुका है. शुरुआत चीन और पाकिस्‍तान के बीच बन रहे चीन-पाकिस्‍तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को लेकर हुई. यह सड़क पाक-अधिकृत कश्‍मीर से होकर बनाई जा रही है. भारत इसे विवादित क्षेत्र मानता है, और यहां सड़क बनाए जाने का विरोध कर रहा है. भारत की आपत्तियों को चीन नजरअंदाज करता आया है.

हाल के दिनों में जिस तरह से कई देशों ने चीन के OBOR प्रोजेक्ट को रद्द किया है उसने चीनी महत्वाकांक्षाओं के ऊपर एक गहरा प्रश्न चिन्ह लगाया है. अगर चीन और उसके क़र्ज़ की हक़ीक़त इसी तरह दुनिया के सामने आती रही तो 'वन बेल्ट वन रोड' के तहत आने वाले प्रोजेक्ट और उनके उद्देश्यों का हिन्द महासागर में डूबना तय है.
 

Web Title: China one belt one road is now rejected by many countries

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