डोनाल्ड ट्रंप की बातें सुनते हैं रूस और चीन, अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं मान रहे खुफिया एजेंसियों की सलाह
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 26, 2018 09:09 AM2018-10-26T09:09:43+5:302018-10-26T09:09:43+5:30
वॉशिंगटन 25 अक्तूबर: अमेरिका की खुफिया एजेंसियों का कहना है कि चीन और रूस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की फोन पर होने वाली बातचीत सुनते हैं।
अखबार ने अमेरिका के मौजूदा और पूर्व अधिकारियों के नाम का खुलासा किए बगैर कहा, चीन के जासूस अक्सर फोन पर होने वाली इन बातचीत को सुनते हैं और इसका इस्तेमाल ट्रम्प के कामकाज को बेहतर तरीके से समझने और प्रशासन की नीतियों को प्रभावित करने के लिए करते हैं।
ट्रम्प अपने दोस्तों से बातचीत करने के लिए आईफोन का इस्तेमाल करते हैं। बार-बार अधिकारियों के आग्रह के बाद भी वह आईफोन का इस्तेमाल बंद नहीं कर रहे। राष्ट्रपति से कई बार कहा जा चुका है कि वह ज्यादा सुरक्षित लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करें।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को पता चला था कि चीन और रूस विदेशी सरकारों में अपने इंसानी सूत्रों के जरिए राष्ट्रपति की फोन पर होने वाली बातचीत को सुन रहे थे और विदेशी अधिकारियों के बीच होने वाली बातचीत को भी सुन रहे थे।
व्हाइट हाउस ने इस रिपोर्ट पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है।
अमेरिका रक्षा एक्सपर्ट ने दी थी चीन से युद्ध की चेतावनी
यूरोप में अमेरिकी सेना के पूर्व कमांडर ने बुधवार को कहा कि इस बात की आशंका है कि अगले 15 वर्षों में अमेरिका का चीन के साथ युद्ध होगा।
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल बेन होजेज ने बताया कि यूरोपीय सहयोगियों को रूस से मिल रही चुनौतियों को देखते हुए अपनी रक्षा खुद सुनिश्चित करनी होगी क्योंकि अमेरिका, प्रशांत में अपने हितों की रक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा।
होजेज ने वारसॉ सुरक्षा फोरम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ अमेरिका को मजबूत यूरोपीय स्तंभ की जरूरत है। मैं मानता हूं कि अगले 15 वर्षों में हम चीन के साथ युद्ध में होंगे, हालांकि जरूरी नहीं है कि ऐसा ही हो लेकिन इसकी आशंका पूरी-पूरी है।'
वारसॉ सुरक्षा फोरम की दो दिवसीय बैठक में मध्य यूरोप के नेता, सैन्य अधिकारी और राजनेता मौजूद थे।
होजेज ने कहा, ‘‘ चीन के खतरों से निपटने के लिए प्रशांत और यूरोप में जो कुछ किए जाने की जरूरत है, उसे करने के लिए अमेरिका के पास उतनी क्षमता नहीं है।'
वर्ष 2014 से पिछले वर्ष तक होज यूरोप में अमेरिकी सेना के कमांडर थे।
वह अभी सेंटर फॉर यूरोपीयन पॉलिसी एनालिसिस में रणनीतिक विशेषज्ञ हैं।
यह वॉशिंगटन का एक शोध संस्थान हैं।
उन्होंने कहा कि भूराजनीतिक प्राथमिकताएं बदलने के बाद भी नाटो के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता ‘ स्थिर’ है।