मर्द को दर्द नहीं होता की सोच से उबरने का समय, चौंकाते हैं पुरुषों में आत्महत्या के आंकड़े
By भाषा | Published: September 10, 2018 03:53 AM2018-09-10T03:53:21+5:302018-09-10T03:53:21+5:30
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े के अनुसार 2015 में आत्महत्या की कुल 1,33,623 घटनाएं हुईं जिनमें 68 प्रतिशत (91,528) पुरूषों से जुड़ी थीं।
नई दिल्ली, नौ सितंबरः चौदह साल के विकास अग्रवाल ने स्कूल में अपने एक सीनियर के हाथों यौन शोषण का शिकार बनने के बाद जब अपने मां बाप को इसके बारे में बताया तो उससे सहानुभूति जताने की बजाए उसके पिता ने उसे ही पीट दिया। इन घटनाओं से दुखी विकास ने इसके बाद घर के पास एक झील में छलांग लगा दी लेकिन समय रहते उसे बचा लिया गया। इसके बावजूद उसके घरवालों ने कभी भी स्कूल प्रशासन के सामने मामला नहीं उठाया और उसका दूसरे स्कूल में दाखिला करा दिया।
विकास ने घटना के सालों बाद विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस से एक दिन पहले पीटीआई से कहा, ‘‘मेरे माता पिता के लिए बेटे के साथ इस तरह की घटना शर्म का विषय जैसी थी। उन्होंने मुझसे यह सब भूल जाने को कहा। तब मुझे लगा कि मेरे पास बात करने के लिए कोई नहीं है और लगा कि आत्महत्या करना ही अकेला विकल्प है।’’
मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करने वाले मुंबई के एक गैर सरकारी संगठन ‘‘आसरा’’ के निदेशक जॉनसन थॉमस ने कहा कि भारतीय लड़कों को घरों में सिखाया जाता है कि उन्हें बिल्कुल ‘‘मर्दाना’’ दिखना चाहिए। यानि लड़कों को मजबूत लगना चाहिए वे कहीं से भी कमजोर नहीं लगने चाहिए क्योंकि मर्द की पहचान कमजोर होने, आंसू बहाने वाले की नहीं होनी चाहिए। थॉमस ने कहा, ‘‘भारतीय लड़कों को इस तरह बड़ा किया जाता है। घरों में उन्हें सिखाया जाता है कि उन्हें अपनी भावनाएं बयां नहीं करनी चाहिए, मर्दाना-कठोर रवैया होना चाहिए।’’
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े के अनुसार 2015 में आत्महत्या की कुल 1,33,623 घटनाएं हुईं जिनमें 68 प्रतिशत (91,528) पुरूषों से जुड़ी थीं। इसी तरह नाकाम प्रेम संबंध को लेकर व्योम शर्मा ने 2010 में आत्महत्या करने का फैसला किया।
तब इंजीनियरिंग के तृतीय वर्ष के छात्र रहे शर्मा ने अपने छात्रावास की छत से कूदकर आत्महत्या करने की सोची। उसे लगा कि इससे उसके दुखों का अंत हो जाएगा। व्योम को उसके एक दोस्त ने बचा लिया। उसने कहा, ‘‘मैं खुद को असहाय महसूस कर रहा था। मेरे कई दोस्त थे लेकिन मुझे लगा कि मैं जिस चीज से गुजर रहा हूं, उसे कोई समझ नहीं सकता और लगा कि आत्महत्या एकमात्र उपाय है।’’
दिल्ली के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा . निमेष देसाई ने कहा कि आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले विचार जैसे तनाव, दुख और अवसाद - पुरूष और महिलाओं में एक जैसे ही होते हैं। थॉमस और देसाई ने कहा कि पीड़ितों के साथ हमदर्दी जताना, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से उनकी मदद करना और सबसे अहम है कि पुरूष महिला जो भी हो, उसे भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए प्रोत्साहित करना, इन सबसे ही समस्या का हल होगा।
मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएसबीएएस) के डायरेक्टर डा . देसाई ने कहा, ‘‘लड़के और लड़कियों को सिखाना चाहिए कि वह अपना दुख बयां करने में संकोच महसूस ना करें। और आप जब भी किसी को परेशान देखें, उसका मजाक ना उड़ाएं। इसकी बजाए पूरी सहानुभूति के साथ उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाएं।’’