नासा बना रहा है सांप जैसा अनोखा रोबोट, शनि ग्रह के चंद्रमा पर जीवन की तलाश की कोशिश, जानें पूरी डिटेल
By विनीत कुमार | Published: May 8, 2023 09:37 AM2023-05-08T09:37:03+5:302023-05-08T09:43:31+5:30
पृथ्वी से इतर अंतरिक्ष में किसी और ग्रह या आकाशीय पिंड पर जीवन तलाशने की कोशिश के तहत नासा अब एक सांप जैसा रोबोट बना रहा है। इसे शनि ग्रह के छठे सबसे बड़े चंद्रमा एन्सेलेडस पर भेजने की तैयारी हो रही है।
न्यू यॉर्क: नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) अंतरिक्ष अन्वेषण को बढ़ावा देने और पृथ्वी से दूर जीवन की मौजूदगी की संभावनाओं को तलाशने में मदद के लिए सांप जैसा एक रोबोट विकसित कर रहा है। विशेष रूप से इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है ताकि यह 'एन्सेलेडस' (Enceladus) की सतह तक पहुंच सके। एन्सेलेडस शनि के 83 चंद्रमाओं में से एक है। इस रोबोट की मदद से एन्सेलेडस की बर्फीली सतह की जांच करने में मदद मिलेगी।
इस रोबोट को ईईएलएस (एक्सोबायोलॉजी एक्सटेंट लाइफ सर्वेयर) नाम दिया गया है। यह शनि ग्रह के छठे सबसे बड़े चंद्रमा एन्सेलेडस की सतह पर पानी और जीवन के लिए जरूरी तत्वों के साक्ष्य की तलाश करेगा।
नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के अनुसार, 'ईईएलएस सिस्टम एक मोबाइल इंस्ट्रूमेंट प्लेटफॉर्म है, जिसकी कल्पना आंतरिक इलाके की संरचनाओं का पता लगाने, रहने की क्षमता का आकलन करने और जीवन के साक्ष्य की खोज के लिए की गई है। इसे समुद्री दुनिया से प्रेरित इलाके, भूलभुलैया वाले वातावरण और तरल पदार्थों के अनुकूल होने के लिए डिज़ाइन किया गया है।'
ऐसा माना जाता है कि एन्सेलेडस की बर्फीली सतह अपेक्षाकृत चिकनी है और तापमान शून्य से नीचे 300 डिग्री फ़ारेनहाइट से भी अधिक है। वैज्ञानिक यह भी आशंका जताते रहे हैं कि इसकी बर्फीली सतह के नीचे भारी मात्रा में पानी जमा हो सकता है। कैसिनी अंतरिक्ष यान के आंकड़ों के अनुसार इसकी सतह से निकलने वाले प्लम (एक तरह का धुंआ) सीधे तरल पानी में जाते हैं, जो इसे संभावित रूप से रहने योग्य तरल महासागर जैसा बनाते हैं।
बहरहाल, नासा ने ईईएलएस प्रोजेक्ट लॉन्च के लिए कोई तारीख अभी निर्धारित नहीं की है। इसके मायने ये हैं इससे जुड़ा किसी भी मिशन में अभी काफी समय लगने वाला है। यदि इस 16 फुट लंबे रोबोट का प्रक्षेपण सफल होता है, तो इससे अन्य आकाशीय ग्रहों और अन्य संरचनाओं आदि की गहन खोज आसान हो सकती है, जहां पहुंचना और शोध करना अब तक मुश्किल माना जाता रहा है।