पश्चिम बंगाल में एक गांव ऐसा भी है, जहां 18 अगस्त के मनाया जाता है स्वतंत्रता दिवस, जानिए इस अनोखी दास्तां को
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 19, 2022 09:13 PM2022-08-19T21:13:46+5:302022-08-19T21:19:47+5:30
पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के शिबनिबास गांव में 18 अगस्त को इसलिए स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है क्योंकि आजादी के समय हुए बंटवारे में यह गांव पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में चला गया था। इस गांव के भारत में वापस शामिल होने की घोषणा 17 अगस्त को हुई। इस कारण गांव वाले 18 अगस्त को आजादी का दिन मनाते हैं।
कोलकाता: पूरे देश जब 15 अगस्त को देश की आजादी का जश्न मना रहा था तो पश्चिम बंगाल के नादिया जिले का एक गांव बेहद खामोशी से 18 अगस्त का इंतजार कर रहा था। अब आप सोच रहे होंगे कि आजादी का दिन तो 15 अगस्त है, फिर 18 अगस्त का क्या मसला है तो हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों बंगाल के नदिया जिले में स्थित शिबनिबास गांव के लोग 15 अगस्त को नहीं बल्कि 18 अगस्त को आजादी का जश्न मनाते हैं।
चूर्णी नदी के तट पर बसे शिबनिबास गांव में 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने के पीछे एक गजब का किस्सा है। जी हां, इस गांव में 18 अगस्त को इसलिए तिरंगा फहराया जाता है क्योंकि साल 1947 में 15 अगस्त को जब पूरे देश आजादी का जश्न मना रहा था तो इस गांव के लोग अंग्रेजों के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
समाचार वेबसाइट 'द ट्रेलीग्राफ' के अनुसार इस गांव के साथ हुआ यह कि अगस्त 1947 में जब अंग्रेज इस देश को छोड़कर जा रहे थे तो वो देश का दो टुकड़ों में बंटवारा भी कर रहे थे और भारत-पाकिस्तान को बनाने वाले सर रेडक्लिफ को नक्शे पर पेंसिल से लकीर खिंचकर इस देश की जनता के भाग्य का फैसला करना था। इस कारण पाकिस्तान से सटे पंजाब और बंगाल के नागरिकों में भारी दहशत थी कि सर रेडक्लिफ के एक निशान से वो इधर से उधर हो सकते हैं।
पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश से बंगाल के बंटवारे के समय सर रेडक्लिफ ने नक्शे पर जो रेखा खिंची, उसमें नदिया और मुर्शिदाबाद जिलों के बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान में चला गया। जबकि आज के बांग्लादेश के जेसोर और खुलना भारत के हिस्से में आ गये थे।
सर रेड क्लिफ के इस बंटवारे के खिलाफ नादिया जिले में विद्रोह हो गया और जनता अंग्रेजी शासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करने लगी। नादिया जिले की जनता बहुसंख्यक हिंदू थी और वो भारत में रहना चाहती थी।
सर रेड क्लिफ द्वारा की गई नाइंसाफी की जानकारी फौरन वायसराय माउंटबेटन को दी गई। माउंटबेटन ने नादिया जिले की जनता की भावनाओं को समझते हुए फौरन आदेश दिया कि बंटवारे के नक्शे में तत्काल सुधार किया जाए। उसके बाद 17 अगस्त 1947 की शाम ऑल इंडिया रेडियो ने अपने न्यूज में प्रारित किया कि पूर्वी पाकिस्तान और भारत के बीच विवादित जिलों की अदला-बदली कर दी गई है। जिसके बाद अगले दिन यानी 18 अगस्त 1947 को शिबनिबास गांव के लोगों ने आजादी का जश्न मनाया।
हालांकि साल 1991 तक शिबनिबास गांव के लोगों को इस बात ख्याल नहीं था लेकिन गांव के ही अंजन सुकुल ने तय किया कि वो अपने गांव में 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। लेकिन चूंकि तिरंगा फहराने के लिए केवल 15 अगस्त या 26 जनवरी को ही अनुमति होती है। लिहाजा अंजन सुकुल ने 18 अगस्त को ध्वजारोहरण के लिए बाकायदा सूचना और प्रसारण मंत्रालय से अनुमति पत्र प्राप्त किया और 18 अगस्त 1991 से अब तक लगातार शिबनिबास में 'स्वतंत्रता दिवस' मनाया जा रहा है।