केंचुआ जैसा दिखने वाला ये जीव सांप से भी ज्यादा हो सकता है जहरीला, वैज्ञानिकों ने सालों के रिसर्च के बाद किया ये खुलासा
By पल्लवी कुमारी | Published: July 4, 2020 12:58 PM2020-07-04T12:58:21+5:302020-07-04T12:58:21+5:30
ब्राजील में बुटानन इंस्टीट्यूट (Butantan Institute in São Paulo) कई सालों से सेसिलियन (Caecilians) पर रिसर्च कर रहे थे। जिसकी फाइलन रिपोर्ट उन्होंने 3 जुलाई को iScience सौंपी है।
नई दिल्ली: ब्राजील के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे सेसिलियन (Caecilians) पर रिसर्च किया है, जिसमें बहुत अधीक सांप जैसे जहर की मात्रा पाई जाती है। सेसिलियन एक प्रकार का उभयचर (Amphibians) जीव है। जो मेंढक और केंचुओं की तरह पानी में रहता है लेकिन दिखने में सांप जैसा होता है। इसके भी सांपों के तरह पैर नहीं होते हैं। सांप और सेसिलियन दिखने में तो एक जैसे होते हैं लेकिन अब रिसर्च में पाया गया है कि इनके बीत इससे भी ज्यादा समानताए हैं। रिसर्चरों को सेसिलियन की एक ऐसी प्रजाति मिली है जो सांप जितना जहरीला हो सकता है।
माइक्रोस्कोप और रासायनिक रिसर्च के माध्यम से पता चला है कि सांपों की तरह, सेसिलियन के दांतों के पास ग्रंथियां होती हैं जो जहरीले पदार्थों का स्राव करती हैं। रिसर्च में पाया गया है कि सेसिलियन पहले ऐसे उभयचर हो सकते हैं जिनमें जहरीले बाइट देने की क्षमता है। यानी अगर ये किसी को काटे को उनके जान पर भी बन सकती है। आमतौर पर सेसिलियन जैसे पानी में रहने वाले जीव जहरीले नहीं होते हैं।
ब्राजील में बुटानन इंस्टीट्यूट (Butantan Institute in São Paulo) कई सालों से सेसिलियन पर रिसर्च कर रहे हैं। उनकी रिसर्च का फोकस पूरी तरह से उनकी त्वचा और ग्रंथियों पर आधारित है। रिसर्च के द्वारा उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि इस तरह के उभयचर जीव में भी सिर पर बलगम के स्राव के लिए अलग ग्रंथियां होती हैं और उनकी पूंछ पर जहर होता है।
रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक बलगम ग्रंथियों को देखने के लिए धीरे-धीरे मरे हुए सेसिलियन के की खोपड़ी से त्वचा को मिटा रहा था तो उन्होंने पाया कि इस जीव के ऊपरी और निचले जबड़े में ग्रंथियां हैं। जिनमें नुकीली दांत होती है।
वैज्ञानिकों ने अपनी फाइल रिसर्च 3 जुलाई 20202 को iScience सौंपी है। जिसमें उन्होंने साफ-साफ बताया है कि सेसिलियन की प्रजातियों पर किए जा रहे रिसर्च में हमने पाया है कि इसमें जहर ग्रंथियां सांपों की तरह ही होती। लेकिन उभयचरों जैसे जीवों में यह पहली बार देखा जा रहा है।