ये है भारत की सबसे मशहूर जेल, यहां की हवाओं में है क्रांतिकारियों की सांसें
By मेघना वर्मा | Published: April 25, 2018 01:53 PM2018-04-25T13:53:46+5:302018-04-25T13:53:46+5:30
इस जेल का निर्माण जिस जगह हुआ था, वह स्थान चारों ओर से समुद्र के गहरे पानी से घिरा हुआ था। ऐसे में किसी भी कैदी का भाग पाना नामुमकिन था।
अक्सर लोग अपने परिवार वालों या दोस्तों के साथ देश की सैर पर निकलते हैं। कभी कोई शिमला जाता है तो कोई दक्षिण भारत की सैर करता है, कोई राजस्थान जाता है तो कोई कश्मीर। लेकिन कभी सुना है कि छुट्टियां मनाने के लिए लोग जेल की सैर करते हैं? सुनने में बेहद अटपटा लगता है लेकिन यह वाकई हो रहा है। अगर आपको भी भारतीय इतिहास और स्वतंत्रता से जुड़ी चीजों को देखने और जानने का शौक है तो आप अंडमान-निकोबार में बने सेल्युलर जेल की सैर कर सकते हैं। ये ना सिर्फ आपको सालों पहले के इतिहास की झलक दिखाएंगी बल्कि आप यहां अपने परिवार के साथ घूम भी सकते हैं।
कैसा है यहां का आर्किटेक्चर
सेल्युलर जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ और 10 साल बाद 1906 में पूरा हुआ। सेल्युलर जेल के नाम से प्रसिद्ध इस कारागार में कुल 698 बैरक तथा 7 खंड थे, जो सात दिशाओ में फैलकर पंखुड़ीदार फुल की आकृति का एहसास कराते थे। इसके बीच में एक बुर्जयुक्त मीनार थी और हर खंड में तीन मंजिले थी। यह आज भी विवाद का ही विषय है कि इसे अंग्रेजो ने क्यों बनवाया था। इतिहास में तो केवल इतना ही लिखा गया है की भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के मद्देनजर अंग्रेज सरकार सकते में आगयी थी, जिसके कारण उन्हें शायद ऐसा कदम उठाना पड़ा था।
क्या है सेलुलर जेल का इतिहास
जेल परिसर का निर्माण 1896 से 1906 के बीच किया गया था, और 1857 में सेपॉय विद्रोह के बाद से ही अंडमान द्वीप का उपयोग ब्रिटिशो द्वारा कैदियों को कैद करने के लिए किया जाने लगा था। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी सरकार को चौकन्ना कर दिया। व्यापार के बहाने भारत आये अंग्रेजो को भारतीय जनमानस द्वारा यह पहली कड़ी चुनौती थी, जिसमे समाज के लगभग सभी वर्ग शामिल थे। दिल्ली में हुए युद्ध के बाद अंग्रेजो को आभास हो चूका था की उन्होंने युद्ध अपनी बहादुरी और रणकौशलता के बल पर नही बल्कि षड्यंत्रों, जासूसों, गद्दारी से जीता था। अपनी इन कमजोरियों को छुपाने के लिए जहाँ अंग्रेजी इतिहासकारों ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम को सैनिक ग़दर मात्र कहकर इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की, वही इस संग्राम को कुचलने के लिए भारतीयों को असहनीय व अस्मरणीय यातनाये भी दी।
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नामुमकिन होता था कैद से भागना
वैसे तो भारतीय कैदी आम जेलों से भाग निकलते थे, बावजूद इसके ब्रिटिश सरकार ने कालापानी के लिए बनाई गई जेल की चार दीवारी बहुत छोटी बनवाई थी, क्योंकि इस जेल का निर्माण जिस जगह हुआ था, वह स्थान चारों ओर से समुद्र के गहरे पानी में घिरा हुआ था।ऐसे में किसी भी कैदी का भाग पाना नामुमकिन था। 238 कैदियों ने एक साथ अग्रजों को चकमा देकर वहां से भाग निकलने की कोशिश कर डाली। हालांकि अपनी इस कोशिश में वह कामयाब नहीं हुए और पकड़े गए।फिर क्या होना था, उन्हें अंग्रेजों के कहर का सामना करना पड़ा था.
विदेशों से भी लाए जाते थे कैदी
जानकारी के अनुसार कालापानी की इस जेल का प्रयोग अंग्रेज सिर्फ भारतीय कैदियों के लिए नहीं करते थे।यहां वर्मा और दूसरी जगहों से भी सेनानियों को कैद करके लाया जाता था। ब्रिटिश अधिकारियों के लिए यह जगह पंसदीदा थी, क्योंकि यह द्वीप एकांत और दूर था। इस कारण आसानी से कोई आ नहीं सकता था और न ही जा सकता था। अंग्रेज यहां कैदियों को लाकर उनसे विभिन तरह के काम भी करवाते थे। बताते चलें कि 200 विद्रोहियों को यहां सबसे पहले अंग्रेज अधिकारी डेविड बेरी के देख रेख में सबसे पहले लाया गया था।
आजादी के बाद जेल
1969 में इसे राष्ट्रिय स्मारक में परिवर्तित कर दिया गया। 1963 में सेलुलर जेल के परिसर में गोविंद बल्लभ पन्त हॉस्पिटल की स्थापना की गयी। वर्तमान में यह 500-पलंगो का एक विशाल अस्पताल है जहाँ 40 से भी ज्यादा डॉक्टर मरीजो की सेवा करते है। 10 मार्च 2006 को जेल ने अपने निर्माण की शताब्दी पूरी की। इस अवसर पर बहुत से प्रसिद्ध कैद्यो को भारत सरकार ने सम्मानित किया था।