कोरोना महामारी के बीच तेज हुई स्वतंत्र इंटरेट की चर्चा, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने बताया महत्व
By रजनीश | Published: June 4, 2020 04:27 PM2020-06-04T16:27:21+5:302020-06-04T16:27:21+5:30
दुनिया भर में इंटरनेट की स्वतंत्रा पर लंबे समय से चर्चा हो रही है। अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट अधिकार समूह, ‘द फ्रीडम हाउस’ की 2019 की ‘फ्रीडम ऑन द नेट’ रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक इंटरनेट स्वतंत्रता में गिरावट दर्ज की गई थी। इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘सोशल मीडिया का संकट’ था। जिसमें जून 2018 से मई 2019 के बीच वैश्विक इंटरनेट स्वतंत्रता में गिरावट दर्ज होने की बात कही गई थी।
ट्विटर इंडिया और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (@orfonline) की तरफ से एक एक पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। इसमें कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में इंटरनेट की स्वतंत्रता को मजबूत बनाने पर चर्चा हुई।
इस पैनल का संचालन महिमा कौल (डायरेक्टर पब्लिक पॉलिसी, ट्विटर साउथ एशिया) ने किया। इस कार्यक्रम में सांसद शशि थरूर, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के समीर सरण, बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर भास्कर राव ने हिस्सा लिया।
शशि थरूर ने कहा कि " हम प्रत्येक भारतीय के इंटरनेट तक पहुंच के अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं जिससे वो इंटरनेट की मदद से सही जानकारी प्राप्त कर सकें। उनको इंटरनेट का इस्तेमाल करने से वंचित नहीं होना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि महामारी के दौरान इंटरनेट ने महत्वपूर्ण और प्रासंगिक भूमिका अदा किया। इस महामारी के दौरान जागरूकता सबसे बड़ी औऱ प्रमुख चीज थी जिसका श्रेय इंटरनेट को दिया जाता है। इसके साथ ही इसने वायरस को फैलने से रोकने के लिए भी लोगों को शिक्षित किया।
कोरोना से बचाव के उपाय, लोगों के बीच नियमित साफ-सफाई की आदत को प्रचारित करने, इम्यूनिटी और वैक्सीन के बारे में इंटरनेट पर सभी चीजें उपलब्ध थीं।
कोरोना में जब लोग घरों के भीतर आइसोलेशन में रह रहे हैं तो कई लोगों के लिए यह इंटरनेट तनाव कम करने का एक माध्यम बना। इंटरनेट उन लोगों के लिए उपयोगी रहा जो घरों के अंदर रहने के दौरान सामाजिक गतिविधि में कमी महसूस कर रहे थे।
शशि थरूर ने कहा कि वो हमेशा मानते हैं कि गलत सूचनाओं के लिए सबसे अच्छी औषधि या उपाय सही जानकारी है। इसके साथ ही थरूर ने कहा कि उन्हें लगता है कि इंटरनेट की अर्थव्यवस्था ने आर्थिक गतिविधियों को धीरे-धीरे ऑनलाइन किया है।
इस महामारी ने डिजिटल बंटवारे को पूरी तरह से उजागर किया है। इससे हमें यह अनुभव मिला कि हम उन विशेषाधिकार प्राप्त लोगों में से हैं जिनके पास पर्याप्त रूप से वेब और इंटरनेट की उपलब्धता है। वहीं लगभग 3.7 बिलियन (लगभग 400 करोड़) लोग ऐसे हैं जिनके पास इंटरनेट की उपलब्धता नहीं है।
वहीं ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के समीर सरण कहते हैं कि महामारी हमें बताती है कि डिजिटल अब सिर्फ एक लग्जरी नहीं है, अब डिजिटल जीवन बन गया है। जीवन का अधिकार, आजिविका का अधिकार और विचारों को व्यक्त करने का अधिकार सभी हमारे डिजिटल पहुंच पर भी निर्भर करते हैं। इसलिए भारत में सभी के लिए खुला इंटरनेट उपलब्ध होना चाहिए।
बेंगलुरू के पुलिस कमिश्नर भास्कर राव का कहना है कि रोटी, कपड़ा, मकान के बाद अब कनेक्टिविटी एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। जब रोटी, कपड़ा और मकान नहीं होता तो ये कानून और व्यवस्था का मामला होता है। ये कानून और व्यवस्था की परेशानी तब भी बनी हुई है जब यहां कोई कनेक्टिविटी भी नहीं हैं।
राव ने यह भी कहा कि इंटरनेट हमारी लाइफलाइन है औऱ किसी भी तरह से यह प्रयास करना चाहिए कि हमारे पास एक स्वतंत्र और बिना किसी के नियंत्रण वाला इंटरनेट हो। हालांकि इस पर स्थानीय नियंत्रण की आवश्यकता होती है लेकिन यह नियंत्रण किसी बुरे इरादे से नहीं बल्कि बड़े हित में शांति बनाए रखने के उद्देशय से होना चाहिए।
कश्मीर में लागू इंटरनेट पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी सरकार को फटकार
कश्मीर में इंटरनेट पर लागू प्रतिबंधों पर सरकार को फटकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंटरनेट का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। पांच महीने से भी लंबे समय से नागरिकों को इससे महरूम रखने को "शक्ति का दुरुपयोग" बताया था।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए इंटरनेट के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा भी बताया था।