आखिर भगवान किसे और कब देते हैं दर्शन, जान लीजिए ये सबसे जरूरी और काम की बात
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 17, 2020 01:14 PM2020-01-17T13:14:15+5:302020-01-17T13:14:15+5:30
भगवान हमेशा मन की सरलता से ही मिलते हैं। अगर हम सभी ने लाख धर्म-कर्म, पूजा-पाठ के कार्य किए लेकिन मन को सरल नहीं बना सके तो भगवान का दर्शन असंभव है।
हम अक्सर इस बात पर संदेह करते हैं कि भगवान हैं भी या नहीं! क्या वह कोई शक्ति है जो अलग-अलग रूपों में हमारे पास मौजूद है। अगर वह है तो हम उसे देख क्यों नहीं पाते या दूसरे शब्दों में तमाम पूजा-पाठ और दान आदि के बाद भी भगवान हमें दर्शन क्यों नहीं देते हैं? इस संबंध में एक बेहद रोचक कथा है। आप भी पढ़ें। इसके बाद आपको भी इस सवाल का उत्तर मिल जाएगा कि आखिर भगवान किसे और कब दर्शन देते हैं?
भगवान किसे देते हैं दर्शन?
कई हजारों साल पहले आनंद नाम का एक आलसी लेकिन बेहद भोलाभाला युवक था। उसे दिन भर कोई काम करने में मन नहीं लगता। इसलिए वह बस खाता और सोता रहता। घरवालों ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उसमें बदलाव नहीं आया। आखिरकार हार कर घरवालों ने उसे निकाल दिया और कुछ काम करने को कहा।
आनंद घर से निकलकर इधर-उधर भटकने लगा। ऐसे ही भटकते हुए वह एक आश्रम में पहुंच गया। आनंद ने देखा कि एक गुरुजी हैं। वहां उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर में पूजा करते हैं और समय-समय पर भोजन करते हैं। आनंद ने सोचा ये उसके लिए अच्छी जगह है। कोई काम-धाम नहीं है बस पूजा ही तो करनी है। इसके बाद उसने गुरुजी से बात की और उनसे आज्ञा लेकर वहां आराम से रहने लगा।
अभी कुछ ही दिन हुए थे और आनंद को काफी मजा भी आ रहा था। इसी दौरान एकादशी आ गई। आनंद ने देखा कि रसोई में तो खाना तैयार नहीं था। उसने गुरुजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि आश्रम में सभी का एकादशी का उपवास है। ये सुन आनंद सोच में पड़ गया और उसने गुरुजी से कहा कि बिना खाना खाए तो वह मर जाएगा।
ये सुन गुरुजी बोले उपवास रखना तो मन पर है कोई जरूरी नहीं है। इसलिए वह खुद अपना भोजन पका ले। साथ ही गुरुजी ने ये भी हिदायत दी कि उसे इस काम को करने के लिए नदी के पार जाना होगा। गुरुजी ने साथ ही कहा कि तुम जब खाना बना लो तो पहले प्रभु राम जी को भोग जरूर लगा देना। आनंद मान गया। उसने लकड़ी और खाना बनाने का सामान लिया और नदी के पार पहुंच गया।
जब आनंद के सामने राम प्रकट हुए
आनंद को खाना बनाना ठीक से नहीं आता था। फिर भी उसने जैसे-तैसे खाना बना लिया। इसी बीच उसे गुरुजी की कही बात याद आ गई कि राम जी को भोग लगाना है। राम जी को बुलाने के लिए वह भजन गाने लगा। वह इतना भोला था कि उसे मालूम ही नहीं था कि प्रभु साक्षात नहीं आएंगे। अब उसके सामने दुविधा थी क्योंकि गुरुजी का आदेश भी मानना था।
बहुत प्रयास के बाद भी जब भगवान उसके सामने नहीं आये तो बोला कि देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मैंने रूखा-सूखा खाना बनाया है और आपको मिष्ठान खाने की आदत है। फिर उसने कहा कि एक बात और बता दूं भगवान कि आज आश्रम में भी कुछ नहीं बना है, इसलिए खाना हो तो यही भोग लगा लो नहीं तो भूखे रह जाओगे।
श्रीराम अपने भक्त की इस सरलता पर मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए। अब आनंद असमंजस में पड़ गया कि क्योंकि गुरुजी ने तो राम जी की बात कही थी लेकिन यहां तो सीता माता भी थीं। आनंद बोला प्रभु मैंने भोजन तो दो लोगों का ही बनाया था। आप खा लो। राम और सीता जी को खिलाने के चक्कर में आनंद भूख रह गया। बहरहाल दिन बीत गया और समय के साथ आनंद भी सबकुछ भूल गया।
फिर आई एकादशी
एक बार फिर एकादशी आई। उसने गुरुजी से कहा कि मैं इस बार भी अपना खाना नदी के पार बना लूंगा लेकिन अनाज ज्यादा लगेगा क्योंकि वहां केवल राम नहीं बल्कि दो लोग आ जाते हैं। गुरुजी मुस्कुराए और सोचा कि लगता है कि उसे ज्यादा भूख लगी हो, इसलिए बहाने बना रहा है। गुरु जी ने ज्यादा अन्न ले जाने की अनुमति आनंद को दे दी।
आनंद गया और इस बार उसने तीन लोगों के लिए खाना बनाया। इस बार जब उसने भगवान राम क बुलाया तो माता लक्ष्मी सहित लक्ष्मण भी आ गए। आनंद एक बार फिर दुविधा में पड़ गया। आनंद ने फिर तीनों को खाना खिलाया और खुद भूखा रह गया। इस तरह अनजाने में उसका भी दूसरा एकादशी का उपवास हो गया।
अगली एकादशी आने पर उसने गुरुजी से पूछा कि ये आपके प्रभु राम अकेले क्यों नहीं आते, हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं? इस बार आप मुझे अनाज थोड़ा और ज्यादा देना। गुरुजी को आनंद की बात सुनकर लगा कि कहीं ये झूठ तो नहीं बोल रहा और बाहर जाकर अनाज बेचता तो नहीं? इसलिए उन्होंने सोचा कि इस बार वे आनंद को छुप कर देंखेंगे कि आखिर वह करता क्या है।
आनंद जब इस बार नदी के पार पहुंचा तो उसने सोचा कि अबकी बार पहले खाना पहले नहीं बनाऊंगा। क्या पता फिर ज्यादा लोग आ जाएं। आनंद ने सोचा कि पहले प्रभु को बुला लेता हूं फिर खाना बनाता हूं। आनंद ने अपने भोलेपन के साथ प्रभु को फिर याद किया तो इस बार राम जी अपने दरबार के साथ प्रकट हो गए। भगवान प्रकट होते ही बोले ये क्या आनंद, इस बार प्रसाद तो तैयार ही नहीं है।
आनंद ठहरा भोला-भाला, उसने तपाक से जवाब दिया- 'मैंने सोचा पता नहीं कितने लोग आएंगे तो पहले बनाने से क्या फायदा। ऐसा करो आप खुद ही बना लो और मुझे भी खिला दो।'
शिष्य का सरल भाव देख भगवान राम मुस्कुराए और सोचने लगे कि भक्त की इच्छा है पूरी तो उसे करनी पड़ेगी। फिर क्या था राम जी खुद काम पर लग गए। लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा गूंथने लगीं। वहीं, आनंद भक्त एक तरफ बैठकर ये सब देखता रहा।
इधर गुरुजी ने देखा कि आनंद तो खाना बना नहीं रहा है बस चुपचाप बैठा है। वे आनंद के पास पहुंच गये और खाना नहीं बनाने का कारण पूछ लिया। आनंद बोला- बन तो रहा है गुरुजी। आप ही देखिए कितने लोग प्रभु के साथ आए हैं। अब वे खुद ही खाना बना रहे हैं। गुरुजी को ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था तो उन्होंने कहा कि मुझे तो अनाज और तुम्हारे सिवा कुछ दिख नहीं रहा फिर खाना कहां बन रहा है।
यह सुनकर आनंद ने भगवान राम से बोला से प्रभु आप मेरे से हर बार इतनी मेहनत करवाते हैं, मुझे भूखा रखते हो और अब गुरुजी को दिख भी नहीं रहे। ये सुन प्रभु बोले- मैं उन्हें नहीं दिख सकता।
इस पर शिष्य बोला कि वे तो मेरे गुरुजी है, बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं, विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप? प्रभु बोले, माना कि तुम्हारे गुरुजी को सब आता है पर वे तुम्हारी तरह सरल नहीं हैं, इसलिए उनको नहीं दिख सकता। आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे।
गुरुजी बात समझ गये और रोने लगे और कहने लगे- मैंने सब कुछ हासिल किया लेकिन सरलता नहीं पा सका। जबकि हम सभी जानते हैं कि प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं। यह सुन भगवान राम प्रकट हुए और गुरुजी को भी दर्शन दिए। यह कथा दरअसल लोकश्रुति पर आधारित है।