Eid Milad-un-Nabi 2020: कब है ईद-ए-मिलाद, जानें क्यों मनाते हैं और इस दिन का महत्व
By गुणातीत ओझा | Published: October 28, 2020 07:58 PM2020-10-28T19:58:54+5:302020-10-29T11:03:04+5:30
आलमे-इस्लाम के लिए यह बहुत मुबारक दिन माना जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख 571ई में पैगंबर साहब का जन्म हुआ था।
Eid Milad-un-Nabi 2020: दुनिया भर में पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब (Paigambar Hazrat Muhammad) के जन्मदिन की खुशी में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मनाया जाता है। आलमे-इस्लाम के लिए यह बहुत मुबारक दिन माना जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख 571ई में पैगंबर साहब का जन्म हुआ था। कहते हैं कि रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही मोम्मद साहब का निधन भी हुआ था। इस दिन रात भर इबादत की जाती है, जुलूस निकाले जाते हैं। वहीं इस दिन मुसलमान अपने पैगंबर के पवित्र वचनों को पढ़ते हैं और इन पर अमल करने का अहद करते हैं। इस साल ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अनुसार, भारत में रबी-उल-अव्वल का महीना 19 अक्टूबर से शुरू हो चुका है। जबकि ईद मिलाद उन-नबी 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन ईद मिलाद उन नबी की दावत का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही मोहम्मद साहब की याद में जुलूस भी निकाले जाते हैं। हालांकि इस साल कोरोना महामारी के कारण बड़े जुलूस या समारोह के आयोजन की संभावना कम है।
इस तरह मनाते हैं ईद-ए-मिलाद
पैगंबरे-इस्लाम की पैदाइश के इस दिन को लोग बेहद खुशी से मनाते आ रहे हैं। इस दिन घरों और मस्जिदों में रोशनी की जाती है, उन्हें सजाया जाता है। लोग रात रात भर मस्जिद में इबादत करते हैं, क़ुरान की तिलावत करते हैं। लोगों को मिठाइयां बांटते हैं और गरीबों को दान देते हैं।
क्यों मनाते हैं ईद-ए-मिलाद-उन-नबी
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख, 571 ईं. के दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद (Paigambar Hazrat Muhammad) साहब का जन्म हुआ था। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को दुनिया भर के मुसलमान बेहद खुशी के साथ मनाते हैं। इस दिन रात भर इबादत, दुआओं का सिलसिला जारी रहता है और जुलूस निकाले जाते हैं।
इस्लाम के आखिरी पैगंबर थे हज़रत मुहम्मद
इस्लाम के आखिरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था। मक्का शहर में उनका जन्म हुआ था। हजरत मुहम्मद साहब ने 25 साल की उम्र में खदीजा नाम की एक विधवा महिला से विवाह किया था। उनके कई बच्चे हुए, जिनमें बेटों की मृत्यु हो गई। उनकी बेटी बीबी फ़ातिमा का निकाह हज़रत अली से हुआ था। मान्यता है कि 610 ईसवी में मक्का के पास हिरा नामक गुफा में हज़रत मुहम्मद को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद पैगंबरे-इस्लाम ने दुनिया को इस्लाम धर्म की पवित्र किताब क़ुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया। हज़रत मुहम्मद साहब ने तालीम पर जोर दिया और सबके साथ समानता का व्यवहार करने पर बल दिया।