कालसर्प योग क्या होता है? ये संकेत मिलते ही हो जाएं सतर्क

By गुणातीत ओझा | Published: October 26, 2020 06:40 PM2020-10-26T18:40:09+5:302020-10-26T18:40:09+5:30

ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों में कालसर्प योग अथवा सर्प योग के विषय में विस्तार से उल्लेख मिलता है। भारतीय संस्कृति में नागों का विशेष महत्व है।

What is Kaal sarpa Yoga Be cautious as soon as these signs are received | कालसर्प योग क्या होता है? ये संकेत मिलते ही हो जाएं सतर्क

जानें क्या होता है कालसर्प योग।

Highlightsज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों में कालसर्प योग अथवा सर्प योग के विषय में विस्तार से उल्लेख मिलता है।भारतीय संस्कृति में नागों का विशेष महत्व है।

ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों में कालसर्प योग अथवा सर्प योग के विषय में विस्तार से उल्लेख मिलता है। भारतीय संस्कृति में नागों का विशेष महत्व है। प्राचीन काल से ही नाग पूजा की जाती रही है यहां तक कि इनके लिए निर्धारित 'नाग पंचमी' का पर्व पूरे देश में पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह योग तब बनता है जब राहु और केतु के 180 अंश के मध्य सभी ग्रह आ जाते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषविद् एवं कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि फलित ज्योतिष में कहा गया है कि ‘शनिवत राहु, कुजवत केतु’अर्थात राहु का प्रभाव शनि के जैसा और केतु का प्रभाव मंगल के जैसा होता है। राहु के शरीर के दो भागों में सिर को राहु तथा धड़ को केतु माना गया है। ये छाया ग्रह हैं और जिस भाव में होते हैं अथवा जहां दृष्टि डालते हैं उस राशि एवं भाव में स्थित ग्रह को अपनी विचार शक्ति से प्रभावित कर क्रिया करने को प्रेरित करता है। केतु जिस भाव में बैठता है उस राशि, उसके भावेश, केतु पर दृष्टिपात करने वाले ग्रह के प्रभाव में क्रिया करता है। केतु को मंगल के समान विध्वंसकारी माना जाता है ये अपनी महादशा एवं अंतर्दशा में व्यक्ति की बुद्धि को भ्रमित कर सुख समृद्धि का ह्रास करता है।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार राहु जिस ग्रह के साथ बैठे होते हैं यदि वह ग्रह हो अंशात्मक रूप से राहु से कमजोर है राहू अपना प्रभाव स्वयं देने लगते हैं और साथ में बैठे ग्रह को निस्तेज कर देते हैं। इस योग का विवेचन करते समय राहु का बाया भाग काल संज्ञक है तभी राहु से केतु की ओर की राशियां ही कालसर्प योग की श्रेणी में आती हैं। यह योग आपकी जन्मकुंडली में ऊर्जा शक्ति का वो अद्भुत-अक्षुण भण्डार है जिसे जप-तप, श्रीरुद्राभिषेक अथवा शांति द्वारा सही दिशा देने पर इसके दोष को योग में बदला जा सकता है, क्योंकि यह योग हमेशा कष्ट कारक नहीं होते, कभी-कभी तो यह इतने अनुकूल फल देते हैं कि व्यक्ति को विश्वस्तर पर न केवल प्रसिद्ध बनाते हैं अपितु संपत्ति वैभव, नाम और सिद्धि के देने वाले भी बन जाते हैं। जन्म कुंडली में 12 प्रकार के प्रबलतम कालसर्प योग कहे गए हैं जो इस प्रकार हैं।

अनंत कालसर्प योग- लग्न से सप्तम भाव तक बनने वाले इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक मानसिक अशांति जीवन में अस्थिरता भारी संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इस योग की शांति के लिए बहते जल में चांदी के नाग नागिन का जोड़ा प्रवाहित करें।

कुलिक कालसर्प योग- द्वितीय से अष्टम स्थान तक पड़ने वाले इस योग के कारण जातक कटु भाषी होता है कहीं ना कहीं उसे पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है किंतु राहु बलवान हो तो आकस्मिक धन प्राप्ति के योग भी बनते हैं।

वासुकी कालसर्प योग- यह योग तृतीय से नवम भाव के मध्य बनता है। जिसके प्रभाव स्वरूप भाई बहनों से मनमुटाव साहस पराक्रम में वृद्धि और कार्य व्यापार में बड़ी सफलता के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ता है।

शंखपाल कालसर्प योग- यह योग चतुर्थ से दशम भाव के मध्य निर्मित होता है। इसके प्रभाव से मानसिक अशांति एवं मित्रों तथा संबंधियों से धोखा मिलने का योग रहता है। शिक्षा प्रतियोगिता में कठोर संघर्ष करना पड़ता है।

पद्म कालसर्प योग- पंचम से एकादश भाव में राहु केतु होने से यह योग बनता है इसके कारण संतान सुख में कमी और मित्रता संबंधियों से विश्वासघात की संभावना रहती है। जातक को अच्छी शिक्षा के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है।

महापदम कालसर्प योग- छठें से लेकर बारहवें भाव तक पड़ने वाले योग में जातक ऋण, रोग और शत्रुओं से परेशान रहता है। कार्यक्षेत्र में शत्रु हमेशा षड्यंत्र करने में लगे रहते हैं, उसे अपने ही लोग नीचा दिखाने में लगे रहते हैं।

तक्षक कालसर्प योग- सप्तम से लग्न तक राहु-केतु के मध्य पड़ने वाले इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक का दांपत्य जीवन कष्ट कारक करता है काफी परिश्रम के बाद सफलता मिलती है। स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

कर्कोटक कालसर्प योग- अष्टम भाव से द्वितीय भाव तक के योग में जातक आर्थिक हानि अधिकारियों से मनमुटाव एवं प्रेत बाधाओं का सामना करता है। उसके अपने ही लोग हमेशा षड्यंत्र करने में लगे रहते हैं।

शंखनाद कालसर्प योग- यह योग नवम से तृतीय भाव तक निर्मित होता है। इस योग के प्रभावस्वरूप कार्य बाधा, अधिकारियों से मनमुटाव, कोर्ट कचहरी के मामलों में उलझाने एवं अधिकाधिक विदेश प्रवास और यात्राएं कराता है।

पातक कालसर्प योग- दशम से चतुर्थ भाव तक बनने वाले इस योग में माता पिता के स्वास्थ्य एवं रोजगार के क्षेत्र में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन और अस्थिरता की अधिकता रहती है।

विषधर कालसर्प योग- ग्यारहवें भाव से लेकर पंचम भाव तक के मध्य राहु-केतु के अंदर पड़ने वाले ग्रहों के द्वारा यह योग निर्मित होता है। इसमें नेत्र पीड़ा हृदय रोग और बड़े भाइयों से संबंध की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता।

शेषनाग कालसर्प योग- द्वादश से लेकर छठे भावतक के मध्य पड़ने वाले इस योग के प्रभावस्वरूप जातक को बाएँनेत्र विकार और कोर्ट कचहरी के मामलों में चक्कर लगाने पड़ते हैं जिसके प्रभाव स्वरूप आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ता है।

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