Vivah Panchmi 2019: कल है विवाह पंचमी, पढ़िए राम विवाह की पौराणिक कथा
By मेघना वर्मा | Published: November 30, 2019 02:01 PM2019-11-30T14:01:50+5:302019-11-30T15:52:08+5:30
धार्मिक नजरिए से विवाह पंचमी का काफी महत्व होता है मगर इस दिन को विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है। भारत समेत नेपाल के कुछ इलाकों में इस दिन शादी करने को निषेध माना जाता है।
एक दिसम्बर को पूरे भारत देश में विवाह पंचमी मनाया जाएगा। भगवान राम को पूजने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। लोगों की आस्था भगवान राम और सीता के प्रति सबसे ज्यादा है। भगवान राम और सीता के विवाह के दिन देशभर में विवाह पंचमी मनाई जाती है। माना जाता है कि मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान राम और माता सीता की शादी हुई थी।
धार्मिक नजरिए से विवाह पंचमी का काफी महत्व होता है मगर इस दिन को विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है। भारत समेत नेपाल के कुछ इलाकों में इस दिन शादी करने को निषेध माना जाता है। इस दिन लोग रामायण के बालकांड का पाठ करते हैं।
राजा जनक ने लिया था निर्णय
माना जाता है कि सीता माता के पिता राजा जनक ने ये फैसला लिया था कि जो भी शिव का धनुष जिसे पिनाक कहते हैं उठा पाएगा उसी से सीता का विवाह होगा। सीता स्वयंवर में कई राजकुमार आए थे। जिनमें से अयोध्या के राजकुमार राम भी थे। मर्हषि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा।
विवाह पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
विवाह पंचमी की तिथि: 1 दिसंबर 2019
पंचमी तिथि प्रारंभ: 30 नवंबर 2019 को शाम 6 बजकर 5 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त: 1 दिसंबर 2019 को शाम 7 बजकर 13 मिनट तक
विवाह पंचमी की कथा
पुरानी कहानियों की मानें तो सीता मां का जन्म धरती से हुआ था। बताया जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे तब उन्हें एक बच्ची मिली और उसे वे अपने महल में लाए व पुत्री की तरह पालने लगे। उस बच्ची का नाम राजा जनक ने सीता रखा था। मान्यता है कि माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था। उस धनुष को परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था। उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वो अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो इस धनुष को उठा पाएगा।
कुछ समय बाद माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा गया। स्वयंमर के लिए कई बड़े-बड़े महारथियों, राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजा गया। उस स्वयंवर में महर्षि वशिष्ठ के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे। जब शिव के धनुष को कोई हिला भी ना सकता तो राजा जनक बहुत दुखी हुए। तभी महर्षि वशिष्ठ ने राम से स्वयंवर में हिस्सा लेकर धनुष उठाने के लिए कहा।
राम ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और एक बार में ही धनुष को उठाकर उसमें प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन तभी धनुष टूट गया। इसी के साथ राम स्वयंवर जीत गए और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी। तीनों लोक खुशी से झूम उठे। यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम और माता सीता का गठबंधन किया जाता है।