Vivah Panchami 2021: विवाह पंचमी कल, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और कथा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 7, 2021 02:32 PM2021-12-07T14:32:38+5:302021-12-07T14:32:38+5:30
इस वर्ष 8 दिसंबर, बुधवार के दिन विवाह पंचमी का उत्सव मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी उत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष 8 दिसंबर, बुधवार के दिन विवाह पंचमी का उत्सव मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था। इस कारण धार्मिक दृष्टि से विवाह पंचमी का महत्व अधिक है। एक प्रकार से विवाह पंचमी उत्सव राम और सीता की शादी की सालगिरह है। हालाँकि इस दिन को विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है। भारत समेत नेपाल के कुछ इलाकों में इस दिन शादी करने को निषेध माना जाता है। इस दिन लोग रामायण के बालकांड का पाठ करते हैं।
विवाह पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
पचंमी तिथि प्रारंभ - 07 दिसंबर, 2021 को रात 11 बजकर 40 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त - 08 दिसंबर, 2021 को रात 09 बजकर 25 मिनट पर
विवाह पंचमी का महत्व
हिन्दू धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन राम नगरी अयोध्या और जनकपुर में विशेष आयोजन किया जाता है। कई स्थलों पर सीता स्वंयवर और राम विवाह का नाट्य रूपांतरण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि विवाह-पंचमी के दिन सच्ची श्रद्धाभाव से माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा उपासना करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विवाहितों के सौभाग्य में वृद्धि होती है और अविवाहितों को मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।
विवाह पंचमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सीता मां का जन्म धरती से हुआ था। बताया जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे तब उन्हें एक बच्ची मिली और उसे वे अपने महल में लाए व पुत्री की तरह पालने लगे। उस बच्ची का नाम राजा जनक ने सीता रखा था। मान्यता है कि माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था। उस धनुष को परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था। उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वो अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो इस धनुष को उठा पाएगा।
कुछ समय बाद माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा गया। स्वयंमर के लिए कई बड़े-बड़े महारथियों, राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजा गया। उस स्वयंवर में महर्षि वशिष्ठ के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे। जब शिव के धनुष को कोई हिला भी ना सकता तो राजा जनक बहुत दुखी हुए। तभी महर्षि वशिष्ठ ने राम से स्वयंवर में हिस्सा लेकर धनुष उठाने के लिए कहा।
राम ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और एक बार में ही धनुष को उठाकर उसमें प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन तभी धनुष टूट गया। इसी के साथ राम स्वयंवर जीत गए और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी। तीनों लोक खुशी से झूम उठे। यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम-माता सीता का वैवाहिक गठबंधन किया जाता है।