LGBT पर धर्मों का क्या है मानना, जानें रामायण, महाभारत, कुरआन और बाइबिल से जुड़े अनजाने तथ्य
By गुलनीत कौर | Published: September 6, 2018 05:59 PM2018-09-06T17:59:05+5:302018-09-06T17:59:05+5:30
धारा-377 पर सभी जजों की सहमति से फैसला लिया गया है और एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) को समानता का अधिकार प्रदान किया गया।
नई दिल्ली, 06 सितम्बर: सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की खण्डपीठ ने गुरुवार को समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा-377 के तहत समलैंगिकता अपराध माना जाता था। अदालत ने इस धारा को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना जिसमें सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पाँच जजों ने यह फैसला एक राय से दिया। खैर फैसले के बाद देश और समाज पर इसका क्या प्रभाव होगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन धर्म इस मुद्दे पर क्या कहते हैं, किस धर्म में क्या लिखा है, जानते हैं।
#Section377 in Supreme Court: CJI Dipak Misra observes, "No one can escape from their individualism. Society is now better for individualism. In the present case, our deliberations will be on various spectrums."
— ANI (@ANI) September 6, 2018
साल 2001 में पहली बार नाज फाउंडेशन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में धारा-377 के खिलाफ दर्ज की गई याचिका सत्रह सालों बाद रंग लायी और समलैंगिक जोड़ों ने यह जंग जीत ली। फैसला आते ही इसके पक्ष में खड़े सभी खुशी से भर गए और हर ओर जश्न होने लगा। लेकिन इसी बीच ये सवाल उठते हैं कि आखिर समलैंगिकता जैसा यह शब्द भारत में, उससे पहले विदेशों में या फिर वास्तविकता में आया कहां से?
हिन्दू इतिहास में समलैंगिकता की जड़ें
धर्म के जानकार देवदत्त पटनायक द्वारा लिखे गए एक ब्लॉग के अनुसार छठी शताब्दी से हिन्दू मंदिरों, प्रतिमाओं और मूर्तियों का निर्माण आरम्भ हो गया। उत्तर से लेकर दक्षिण तक विशाल मंदिरों का निर्माण कराया गया। 14वीं शताब्दी के अंत तक पुरी और तंजोर जैसी विशाल प्रतिमाएं बनकर तैयार हो गईं। इनकी दीवारों पर देवी-देवताओं, शूरवीरों, ऋषि-मुनियों, दैत्यों, जानवरों, पेड़-पौधों आदि की नक्काशीगिरी की गई।
जहां पुरी, तंजोर जैसे धार्मिक प्रतिमाओं से भरपूर स्थल थे, वहीं खजुराहो जैसी इमारतों का भी निर्माण किया गया। इसपर महिला-पुरुष के प्रेम-प्रसंगों, संभोग को दर्शाती तस्वीरों-मूर्तियों को दर्शाया गया। महिला-पुरुष के कामुक सबंधो को खुलेआम दीवारों पर दिया गया है। इतना ही नहीं, पुरुषों का जानवरों के साथ संसर्ग भी यहां की दीवारों पर है। खजुराहो की इन्हीं दीवारों पर समलैंगिकता की छाप छोड़ी गई, जहां दो परूष एक दूसरे को अपने जननांग दिखा रहे हैं। दूसरी ओर महिला का रत्यात्मक भाव से दूसरी महिला को देखना, यह भी इन्हीं दीवारों पर मौजूद है।
गोरखपुर से ज्योतिष एक्सपर्ट राम कुमार पाण्डेय के अनुसार धार्मिक ग्रंथों एवं शास्त्रों के अलावा हिन्दू स्मृतियों में भी समलैंगिकता के कुछ साक्ष्य मिलते हैं। मिताक्षरा, प्लीनी, नारद एवं पराशर स्मृति में समलैंगिकता के बारे में बताया गया है और इसे 'अप्राकृतिक' करार दिया गया है।
रामायण और महाभारत
इतिहास में और पीछे जाएं, त्रेता और द्वापर युग की बात करें तो यहां भी समलैंगिकता की निशानी मिल ही जाती है। वाल्मीकि रामायण में दर्ज एक कथा के अनुसार स्वयं हनुमानजी ने लंका में राक्षसी को उस राक्षसी के साथ संबंध बनाते हुए देखा जिसे रावण द्वारा भी पसंद किया गया था। पद्म पुराण में एक राजा की कहानी दर्ज है जिसने मरने से पहले अपनी दोनों रानियों को एक खास अमृत दिया था। राजा निःसंतान था लेकिन मरने वाला था इसलिए जाने से पहले उसने अपनी रानियों को वह अमृत दिया, जिसे पीने के बाद दोनों रानियों को एक दूसरे की ओर मोहित हो गईं और संबंध बनाने के पश्चात गर्भवती भी हो गईं। लेकिन जो संतान पैदा हुई उसके शरीर में हड्डियां और दिमाग, दोनों ही नहीं था।
महाभारात में द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद ने शिखंडी (जो कि उनके पुत्री थी), उसका एक पुत्र की तरह लालन-पोषण किया और बड़े होने पर उसकी शादी कर उसे पत्नी भी दी। लेकिन शादी की रात जब शिखंडी की पत्नी को उसके नामर्द होने की असलियत पता चली तो वह गुस्से की ज्वाला में भड़क उठी और उसके पिता ने राजा द्रुपद का साम्राज्य नष्ट कर देने की ठान ली। तभी 'यक्ष' ने एक रात के लिए शिखंडी को मर्दाना हक प्रदान किए और उस रात उसने एक पति की तरह अपना फर्ज़ निभाया।
महाभारत की एक और कथा के अनुसार पांडवों से यह कहा गया कि वे कुरुक्षेत्र का युद्ध तभी जीत पाएंगे जब वे अर्जुन पुत्र अरावन का बलिदान करेंगे। लेकिन अरावन ने कृष्ण से यह मांग की कि वह 'कुंवारा' नहीं मरना चाहता है। तभी कृष्ण ने महिला रूप लिया, अरावन के साथ एक रात बिताई और इसके बाद पांडवों ने अरावन की त्याग किया। उसकी मृत्यु पर कृष्ण के महिला रूप ने अरावन की चिता पर बैठकर जोर-जोर से विलाप भी किया।
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बाइबिल में समलैंगिकता की बात
ये कुछ ऐसी कहानियां हैं जो हिन्दू धर्म में प्रचलित हैं और दावा करती हैं कि समलैंगिकता हजारों वर्षों पुरानी है। हिन्दू धर्म के अलावा ईसाई धर्म की बात करें तो देवदत्त पटनायक के उसी ब्लॉग में बाइबिल का जिक्र किया गया है जिसके अनुसार बाइबिल में सेक्स को 'सिन' यानी पाप माना गया है। लेकिन यीशु ने सेक्स के बारे में जो कहा उसके मुताबिक भगवान ने प्रकृति को इस प्रकार से बनाया है, मनुष्य को उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए। गॉड ने पुरुष और महिला को एक दूसरे के लिए बनाया है। यह प्रकृति की देन है।
समलैंगिकता के बारे में इस्लाम धर्म का क्या मानना है?
theconversation.com नाम की एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार इस्लाम धर्म में समलैंगिकता का कोई ठोस प्रमाण या कोई तर्क-वितर्क नहीं मिलता है लेकिन एक जगह केवल एक वाक्या को शामिल किया गया है जिसके अनुसार एक महिला को दूसरी महिला को नग्न देखने या नग्न अवस्था में ही उसके बदन को छूने की मनाही है। ऐसा करना अपराध है।
दिल्ली के मौलवी इरशाद के अनुसार इस्लाम में पराई औरत तक को देखना गुनाह है, तो फिर समलैंगिक संबंध तो बहुत बड़ी बात है। इस विषय पर हजरत मोहम्मद ने भी यह कहा है कि व्यक्ति को ताउम्र अपनी पत्नी से ही प्रेम करना चाहिए और उसी से संबंध रखने चाहिए। खुदा ने महिला-परूष को इस प्रकार बनाया है कि वह औलाद का सुख पा सके, लेकिन समलैंगिक संबंध के मामले में ये बात कहीं भी फिट नहीं होती है। जहां तक समानता और अन्य अधिकारों की बात है, तो कोर्ट के इस फैसले को सही ठहराया जा सकता है।