1100 साल पुराने इस मंदिर में नहीं है एक भी भगवान की प्रतिमा, जानें क्या है इसका इतिहास
By मेघना वर्मा | Published: November 15, 2019 04:40 PM2019-11-15T16:40:40+5:302019-11-15T16:40:40+5:30
वास्तुकला के बेजोड़ नमूने को पेश करती हुई ये मंदिर बेहद खूबसूरत है। बताया जाता है कि इस मंदिर के आस-पास कभी मेवाड़ राजवंश की स्थापना हुई थी।
भारत का इतिहास जितना पुराना है उतनी ही पौराणिक इस देश की संस्कृति है। भारतवर्ष के आध्यात्मिक नजरिए की बात करें तो यहां हर धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं और यही वजह है कि यहां पूजा स्थलों की भरमार हैं। कुछ तो इतने पुराने हैं जिनकी कल्पना भी आप नहीं कर सकते। इन्हीं मंदिरों में से एक है राजस्थान के उदयपुर में स्थित सहस्त्रबाहु का मंदिर। जिसे लोग सास-बहु मंदिर के नाम से भी जानते हैं।
वास्तुकला के बेजोड़ नमूने को पेश करती हुई ये मंदिर बेहद खूबसूरत है। बताया जाता है कि इस मंदिर के आस-पास कभी मेवाड़ राजवंश की स्थापना हुई थी। जिसकी राजधानी नागदा थी। इसी के वैभव की याद दिलाता है ये सास-बहू का मंदिर।
सास-बहू का ये खूबसूरत मंदिर 1100 साल पुरानी बतायी जाती है। मान्यताओं की मानें तो इस मंदिर का निर्माण राजा महिपाल और रत्नपाल ने बनवाया था। इस मंदिर को रानी मां और छोटे मंदिर को छोटी रानी के लिए बनवाया था।
इस देवता को है समर्पित
कहते हैं सास-बहू मंदिर में त्रिमू्र्ति यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की छवियां एक मंच पर खुदी हुई हैं। साथ ही दूसरे मंच पर राम, बलराम और परशुराम के चित्र भी लगे हुए हैं। मेवाड़ राजघराने की राजमाता ने मंदिर भगवान विष्णु को और बहू ने शेषनाग को समर्पित कराया गया था। कहते हैं यहां कभी मंदिर में भगवान श्रीविष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी प्रतिमा थी। मगर अब इस मंदिर में एक भी मूर्ति नहीं है। ये अपने आप में ही अचम्भे वाली बात है कि मंदिर के परिसर में एक भी प्रतिमा नहीं है।
अंग्रेजों ने फिर खुलवाया था ये मंदिर
बताया जाता है कि एक दौर ऐसा भी था जब सास-बहु का ये मंदिर बंद करवा दिया गया था। कहा जाता है कि दुर्ग पर मुगलों ने जब इस पर कब्जा किया था तो सास-बहु के मंदिर को चूने और रेत से भरवाकर बंद करवा दिया था। इसके बाद मंदिर किसी रेत का टापू लगने लगा था। जब अंग्रेजों ने दुर्ग पर कब्जा कर लिया था तब मंदिर को दुबारा से खुलवाया गया।
सहस्त्रबाहू से बना सास-बहू
बताया जाता है कि मंदिर में सबसे पहले भगवान विष्णु की स्थापना हुई थी इसलिए इसका नाम सहस्त्रबाहू पड़ा था। जिसका मतलब होता है 'हजार भुजाओं वाले'। बाद में सही तरीके से न बोल पाने की वजह से प्राचीन सहस्त्रबाहू मंदिर सास-बहू मंदिर हो गया।
रामायण की घटनाओं से सजा है मंदिर
मंदिर बेहद खूबसूरत है। बहू की मंदिर की छत को अष्टकोणीय आठ नक्काशीदार महिलाओं से सजाया गया है। ये मंदिर सास के आकार में कुछ छोटा है। इसकी दिवारों को रामायण की अनेक घटनाओं से सजाया गया है। मंदिर के एक मंच पर भगवान ब्रह्मा, शिव और और विष्णु की छवियां खूदी हुई हैं और दूसरे मंच पर भगवान राम, बलराम और परशुराम के चित्र खुदे हुए हैं।