शिक्षक दिवस 2019: जानिए, पौराणिक कहानियों में वर्णित 7 गुरु और उनके महान शिष्यों की गाथा के बारे में
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 4, 2019 02:32 PM2019-09-04T14:32:28+5:302019-09-04T15:25:55+5:30
शिक्षक दिवस 2019: हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव आदि गुरू हैं। शिव ने गुरु बनकर अपने शिष्यों को कई मौकों पर परम ज्ञान दिया। शिक्षक दिवस के मौके पर आईए जानते हैं पौरणिक कथाओं में वर्णित 7 गुरुओ के बारे में
भारत में गुरु-शिष्य परंपरा की कहानी काफी पुरानी रही है। दौर कोई भी रहा हो भारत में एक से बढ़कर एक ऐसे गुरू हुए हैं जिनके शिष्यों ने नये आयाम और कीर्तिमान स्थापित किये। भारत के राष्ट्रपति रहे और महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन (5 सितंबर) पर हर साल मनाये जाने वाले शिक्षक दिवस के मौके पर आईए जानते हैं ऐसे ही कुछ पौराणिक गुरुओं की कहानी जिनका दर्जा संभवत: भगवान से भी ऊपर है...
भगवान शिव
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव आदि गुरू हैं। पौराणिक कथाओ के अनुसार कई ऐसे मौके आये हैं जब भगवान शिव ने गुरु बनकर अपने शिष्यों को परम ज्ञान दिया। मान्यता है कि भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा भगवान शिव ने ही दी थी। यही नहीं, शिव के दिए परशु (फरसे) से ही परशुराम ने अनेक बार धरती को क्षत्रीय विहीन कर दिया था।
महर्षि वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास का पूरा नाम कृष्णदै्पायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास को हिंदू धर्म से जुड़े कई वेदों, पुराणों और ग्रंथों का रचनाकार माना जाता है। महाकाव्य महाभारत की भी रचना वेदव्यास ने ही की थी। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि शामिल थे।
ऋषि वशिष्ठ
ऋषि वशिष्ठ को भगवान श्रीराम के सूर्यवंश का भी कुलगुरु कहा जाता है। त्रेतायुग में भगवान राम सहित लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने सारी वेद-वेदांगों की शिक्षा वशिष्ठ ऋषि से ही प्राप्त की थी। श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद इन्हीं के द्वारा उनका राज्याभिषेक हुआ और रामराज्य की स्थापना संभव हो सकी। ऋषि वशिष्ठ ने वशिष्ठ पुराण, वशिष्ठ श्राद्धकल्प, वशिष्ठ शिक्षा आदि ग्रंथों की भी रचना की थी। वशिष्ठ की गिनती सप्तऋषियों में होती है।
गुरु संदीपनि
द्वापरयुग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने कंस वध के बाद गुरु सांदीपनि से ही शिक्षा-दीक्षा हासिल की थी। इस दौरान उन्होंने अपने गुरू से 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान मिला। कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने 64 कलाओं का ज्ञान केवल 64 दिनों में हासिल कर लिया था। सुदामा से भी मुलाकात श्रीकृष्ण को गुरु संदीपनि के गुरुकुल में ही हुई थी।
गुरु शुक्राचार्य
शुक्राचार्य को दैत्यों का गुरु कहा जाता है। ये भृगु ऋषि और हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या के पुत्र थे। इनके जन्म का नाम शुक्र उशनस है। इन्हें भगवान शिव ने मृत संजीवन विद्या का ज्ञान दिया था, जिसके बल पर यह मृत दैत्यों को पुन: जीवित कर देते थे।
गुरु द्रोणाचार्य
कौरव और पांडव के गुरु रहे द्रोणाचार्य को महान धनुर्धर कहा जाता है। द्रोणाचार्य के पिता का नाम महर्षि भारद्वाज था और ये देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। द्रोणाचार्य की वह कथा सबसे प्रचलित है जिसमें उन्होंने एकलव्य से उसका अंगूठा गुरु दक्षिणा के तौर पर मांग लिया था। गुरु द्रोण के सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में अर्जुन, दुर्योधन, दु:शासन, भीम, युधिष्ठिर आदि शामिल हैं।
देवगुरु बृहस्पति
बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा जाता है। महाभारत के अनुसार बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। इन्हें बहुत पराक्रमी कहा गया है। इन्हें 'तीक्ष्णशृंग' भी कहा जाता है। तारा और शुभा इनकी दो पत्नियां थीं। पद्मपुराण के अनुसार एक बार देवों और दानवों के युद्ध में जब देव पराजित हो गए और दानव देवों को कष्ट देने लगे तो बृहस्पति ने शुक्राचार्य का रूप धारणकर दानवों का मर्दन किया।