जब गरीब ब्राह्मण को मिला पारस पत्थर, छूते ही बन गया सोना! आज भी इस किले में है चमत्कारिक पत्थर?

By मेघना वर्मा | Published: May 2, 2020 12:17 PM2020-05-02T12:17:16+5:302020-05-02T12:17:16+5:30

पारस पत्थर को लेकर ये मान्यता है कि ये चमत्कारिक पत्थर लोहे से भी छू जाए तो उसे स्वर्ण में बदल देता है। इसे लेकर बहुत सारी कहानियां सुनने को मिलती है।

story about paras patthar in hindi paras patthar connection with raisen fort | जब गरीब ब्राह्मण को मिला पारस पत्थर, छूते ही बन गया सोना! आज भी इस किले में है चमत्कारिक पत्थर?

जब गरीब ब्राह्मण को मिला पारस पत्थर, छूते ही बन गया सोना! आज भी इस किले में है चमत्कारिक पत्थर?

Highlightsसनातन धर्म में पारस पत्थर को चमत्कारिक पत्थर माना जाता है।पारस पत्थर से जुड़ी बहुत सारी लोक कथाएं सुनने को मिलती हैं।

हिन्दू धर्म में अलग-अलग रत्नों और पत्थरों का अपना अलग-अलग महत्व है। इन्हीं पत्थरों में से एक है पारस पत्थर। पारस पत्थर को लेकर ये मान्यता है कि ये चमत्कारिक पत्थर लोहे से भी छू जाए तो उसे स्वर्ण में बदल देता है। इसे लेकर बहुत सारी कहानियां सुनने को मिलती है। ऐसी ही एक कहानी पुराणों में मिलती है। 

पारस पत्थर का जिक्र कई जगह मिलता है। कई किताबों में इसके बारे में बताया गया है साथ ही कई फिल्में भी पारस पत्थर पर बनी हुई हैं। आइए आपको बताते हैं पारस पत्थर से जुड़ी कहानी-

पुरानी कथा के अनुसार एक बार अपनी गरीबी से तंग आकर एक ब्राह्मण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगा। शंकरजी ने उसे सपने में दर्शन देकर बताय कि वृंदावन के में एक सनातन गोस्वामी हैं उनके पास जाकर पारस पत्थर मांगो उससे तुम्हारी निर्धनता दूर होगी। 

जब ब्राह्मण गोस्वामी से मिला तो उन्हें देखकर हैरान हो गया। उनके पास पारस पत्थर मिलने पर उसे शक हुआ क्योंकि उनके पास सिर्फ एक जीर्ण धोती और दुपट्टा था। फिर भी उनसे गोस्वामीजी को अपनी निर्धनता के बारे में बताते हुए पारस पत्थर मांगा।

गोस्वामी जी बोले जब एक दिन यमुना स्नास करके वे लोट रहे थे तभी किसी पत्थर से उनका पैर टकराया। उसकी आभा देखकर उन्हें अद्भुत लगा और उन्होंने उसे वहीं जमीन की मिट्टी के नीचे गाढ़ दिया। ब्राह्मण से कहा कि जाकर वहां से पत्थर निकाल लो। 

जब ब्राह्मण को उस जगह का पता चला तो वह वहां गया और उनके पारस पत्थर निकाल लिया। साथ लाए लोहे के टुकड़े पर जब उसने स्पर्स कराया वो स्वर्ण में बदल गया। ब्राह्मण के मन में आया कि उस पत्थर के मालिक गोस्वामी जी हैं मगर वे इससे दूर रहना चाहते हैं। 

ब्राह्मण ने सोचा कि जरूर गोस्वामी जी के पास पारस पत्थर से भी ज्यादा मूल्यवान वस्तु है जो भगवद्गीता की भक्ति से मिलती है। उसी पल ब्राह्मइ ने पारस पत्थर को वहीं दबाया और स्वर्ण नदीं में फेंककर गोस्वामी जी के पास दीक्षा ली।  उसके साफ मन ने उसके सभी कष्ट हर लिए उसने भगवद्ग गीता का असीम सुख मिला। 

रायसेन के किले से जुड़े हैं सोने के पत्थर का राज

बताया जाता है कि भोपाल से 50 किलोमीटर दूर रायसेन के किले में पारस पत्थर आज भी मौजूद है। लोक कथाओं की मानें तो इस किले में पारस पत्थर को लेकर कई बार युद्ध हुए। जब राजा को लगा कि वह युद्ध हार जाएंगे तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में मौजूद तालाब में फेंक दिया। 

राजा ने किसी को नहीं बताया कि वो पत्थर कहां छिपाया है। मगर मान्यता है कि पारस पत्थर आज भी यही मौजूद है। हालांकि, आपको बता दें कि पुरातत्व विभाग के हाथ ऐसे कोई सबूत नहीं लगे हैं, लेकिन कही सुनी कहानियों की वजह से लोग चोरी छिपे यहां पारस पत्थर की तलाश में पहुंचते हैं। 

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