Sheetla Ashtami 2020: पूरा गांव जल गया पर माता को बासी खाना चढ़ाने वाली बूढ़ी मां का घर कैसे बचा, पढ़िए शीतला अष्टमी व्रत कथा
By विनीत कुमार | Published: March 12, 2020 10:10 AM2020-03-12T10:10:59+5:302020-03-12T10:19:06+5:30
Sheetla Ashtami 2020: शीतला अष्टमी की त्योहार आम तौर पर होली के आठवें दिन आता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की परंपरा है।
Sheetla Ashtami 2020: शीतला अष्टमी का त्योहार इस बार 16 मार्च को मनाया जा रहा है। हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाये जाने वाले शीतला अष्टमी को ही कई जगहों पर बसौड़ या बसोरा भी कहा जाता है। आम तौर पर ये होली के आठवें दिन आता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की परंपरा है। शीतला माता को चेचक जैसे रोगों की देवी माना गया है। जैसा कि नाम से ही साफ है कि शीतला माता को शीतलता पसंद है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। गर्दभ की सवारी किए वे अभय मुद्रा में विराजमान नजर आती हैं। ऐसी मान्यता है कि ये व्रत करने से परिवार के सदस्यों को त्वचा रोग संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं।
Sheetla Ashtami: शीतला अष्टमी व्रत कथा
शीतला अष्टमी की व्रत कथा इस प्रकार है। एक समय की बात है। एक गांव में एक बूढ़ी माता रहती थी। उसी गांव में एक बार चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन शीतला माता के पूजन का आयोजन हुआ। गांव वालों ने शीतला माता की पूजा-अर्चना करते हुए गरिष्ठ का प्रसाद माता शीतला को प्रसाद रूप में चढ़ाया। गरिष्ठ प्रसाद से माता शीतला का मुंह जल गया।
माता शीतला इससे नाराज हो गई और अपने कोप से पूरे गांव में आग लगा दी। इस वजह से पूरा गांव जलकर रख हो गया।
हालांकि केवल उस बुढ़िया का घर बचा रह गया। गांव वालों ने जाकर उस बूढ़ी माता से घर ने जलने का कारण पूछा तब उन्होंने माता शीतला को प्रसाद खिलाने की बात कही। बूढ़ी माता ने बताया कि उन्होंने रात को ही प्रसाद बनाकर रख लिया था और माता को ठंडा और बासी प्रसाद खिलाया।
बुढ़ी माता की बात सुनकर गांव वालों को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने उसी क्षण माता शीतला से क्षमा याचना की तथा अगले पक्ष में सप्तमी/अष्टमी के दिन उन्हें बासी प्रसाद खिलाकर माता शीतला का पूजन किया।
Sheetla Ashtami: शीतला माता को पसंद है ठंडी चीज, चढ़ाते हैं बासी प्रसाद
ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा भी नहीं जलाना चाहिए। शीतला माता का आशीर्वाद पाने के लिए सप्तमी और अष्टमी दोनों दिन व्रत किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि शीतला माता को ठंडी चीजें बहुत प्रिय हैं। उनके लिए चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है। ये दिन ऋतु परिवर्तिन का भी संकेत देता है। ऐसा कहते हैं कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाना चाहिए।