Sawan Somvar 2019: आज है सावन का आखिरी सोमवार, जानें पूजा, व्रत विधि और महत्व
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 12, 2019 07:05 AM2019-08-12T07:05:16+5:302019-08-12T07:05:16+5:30
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार नारद मुनि ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें सावन मास ही इतना प्रिय क्यों है। यह सुन भगवान शंकर बताते हैं कि हैं कि देवी सती ने हर जन्म में उन्हें पति रूप में पाने का प्रण लिया था...
आज (12 अगस्त) को सावन का आखिरी सोमवार है। इस दिन भगवान शिव की लोग पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही मान्यता है कि सावन के आखिरी सोमवार के दिन रुद्राभिषेक करने से मनोकामनाएं जरूर पूर्ण होती हैं। यही नहीं, इस दिन भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना करने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है।
Sawan 2019: आखिरी सोमवार के दिन प्रदोष व्रत भी
सावन का आखिरी सोमवार होने के कारण 12 अगस्त का महत्व ऐसे भी काफी बढ़ गया है। साथ ही प्रदोष व्रत ने इस दिन को और शुभ बना दिया है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की ही पूजा की जाती है। यह पूजा शाम में की जाती है। प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। इसे शुक्ल और कृष्ण दोनों ही पक्षों की त्रयोदशी के दिन किया जाता है। इसलिए इसे तेरस भी कहा जाता है।
प्रदोष व्रत पर इस बार क्या है पूजा का समय
प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की पूजा शाम को ही शुरू करने की मान्यता है। यह शाम का वो समय होता है जब पूरी तरह से अंधेरा भी नहीं रहता है तो दिन की हल्की रोशनी भी बाकी रहती है। इसलिए प्रदोष व्रत में पूजा का शुभ समय हमेशा शाम को ही रहता है। इस बार यानी 12 अगस्तो को प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6.59 बजे से रा 9.10 बजे के बीच का है।
कैसे करें व्रत
सावन सोमवार का व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होकर शाम तक रहता है। इस पूरे दिन आप भगवान शिव और माता गौरी की पूजा कर सकते हैं। इस दिन तड़के स्नान आदि कर आप श्वेत या हो सके तो हरे रंग के वस्त्र पहनें और भगवान शिव की पूजा करें। इसके लिए आप पास के किसी मंदिर में भी जा सकते हैं या फिर घर पर भी भगवान शिव की अराधना कर सकते हैं। इसके बाद संध्या काल में प्रदोष बेला में शिवजी के परिवार की 16 प्रकार से पूजन के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री जैसे पुष्प, दूवी, बेलपत्र, धतूरा आदि से पूजन करें। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में सोमवार व्रत करने से सभी सोमवार व्रतों का फल मिलता है।
बेलपत्र, धतूरा है भगवान शिव को पसंद
भगवान शिव की पूजा में बेल के पत्ते और धतुरा का इस्तेमाल जरूर करें। मान्यता है कि शिव को ये बहुत पसंद है। इसके अलावा उन्हें गंगा जल अर्पित करें। इस दिन उपवास रखने की मान्यता है। वैसे, अगर आप उपवास नहीं रख पाते हैं तो एक समय भोजन या फिर फल ग्रहण कर सकते हैं। भगवान शिव की पूजा के बाद व्रत कथा जरूर सुनें या पढ़ें। इसके बाद आप फल ग्रहण करें। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सभी दुर्गुणों से दूरी बनाकर रखें और सच्चे मन से शिव की पूरे दिन अराधना करें तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सावन 2019: सोमवार व्रत कथा क्या है और इसका महत्व
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार नारद मुनि ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें सावन मास ही इतना प्रिय क्यों है। यह सुन भगवान शंकर बताते हैं कि हैं कि देवी सती ने हर जन्म में उन्हें पति रूप में पाने का प्रण लिया था और इसके लिए उन्होंने अपने पिता की नाराजगी को भी सहा। एक बार पिता द्वारा शिव को अपमानित करने पर देवी सती ने शरीर त्याग दिया।
इसके पश्चात देवी ने हिमालय और नैना पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी शिव से विवाह के लिए देवी ने सावन माह में निराहार रहते हुए कठोर व्रत से भगवान शिवशंकर को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसलिये सावन मास से ही भगवान शिव की कृपा के लिये सोलह सोमवार के उपवास आरंभ किये जाते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा और मिलती है। बहुत समय पहले की बात है कि क्षिप्रा किनारे बसे एक नगर में भगवान शिव की अर्चना के लिए बहुत साधु और सन्यासी एकत्र हुए। समस्त ऋषिगण क्षिप्रा में स्नान कर सामुहिक रूप से तपस्या आरंभ करने लगे। उसी नगरी में एक गणिका भी रहती थी जिसे अपनी सुंदरता पर बहुत अधिक गुमान था। वह किसी को भी अपने रूप सौंदर्य से वश में कर लेती थी।
उसने जब साधुओं के पूजा और तप किये जाने की खबर सुनी तो उसने उनकी तपस्या को भंग करने की सोची। इन्हीं उम्मीदों को लेकर वह साधुओं के पास जा पंहुची। लेकिन यह क्या ऋषियों के तपोबल के आगे उसका रूप सौंदर्य फिका पड़ गया।
इतना ही नहीं उसके मन में धार्मिक विचार उत्पन्न होने लगे। उसे अपनी सोच पर पश्चाताप होने लगा। वह ऋषियों के चरणों में गिर गई और अपने पापों के प्रायश्चित का उपाय पूछने लगी तब ऋषियों ने उसे काशी में रहकर सोलह सोमवार व्रत करने का सुझाव दिया। उसने ऋषियों के बताये विधि के अनुसार 16 सोमवार व्रत किये और शिवलोक में अपना स्थान सुनिश्चित किया।