शिरडी के साईं बाबा ने आज ही के दिन त्यागा था अपना शरीर, पढ़ें उनके चमत्कार की कहानियां
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 15, 2019 07:05 AM2019-10-15T07:05:59+5:302019-10-15T07:05:59+5:30
ये कहना बिल्कुल गलत होगा कि साईं बाब का कोई धर्म था। तभी को उन्होंने कहा था कि सबका मालिक। फिल्मों और कहानियों के माध्यम से साईं बाबा के कई चमत्कार से रूबरू हो चुके है।
सबका मालिक एक यानी साईं बाबा जिन्हें एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर के रूप में जाना जाता था। आज (15 अक्टूबर) ही के दिन शिरडी के साईं बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया था। बताया जाता है कि शिरडी के साईं बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को अपना शरीर त्याग दिया था। इनकी कई कहानियां प्रचलित है जिसे टेलीविजन में इनकी कहानियां को नाट्य रूपातंरण में प्रसारित किया जा चुका है। कई फिल्में बन चुकी है। साईं बाबा का न कोई धर्म था। साईं को हर धर्म में मान्यता प्राप्त है। हर धर्म के लोग इनके प्रति आस्था रखते थे।
ये कहना बिल्कुल गलत होगा कि साईं बाब का कोई धर्म था। तभी को उन्होंने कहा था कि सबका मालिक। फिल्मों और कहानियों के माध्यम से साईं बाबा के कई चमत्कार से रूबरू हो चुके है। आइए जानते हैं इनकी चमत्कार की कुछ कहानियां...
पहली काहानी
मान्यतााओ के मुताबिक सांईं बाबा रोजना मस्जिद में दीया जलाते थे। इसके लिए वे बनियों से तेल मांगने जाते थे। लेकिन एक दिन बनियों ने बाबा से कह दिया कि बाबा हमारे पास तेल नहीं है। तब बाबा वहां से चुपचाप चले गए और मस्जिद जाकर उन्होंने दीये में तेल की जगह पानी डाला और दीया जल पड़ा और यह बात चारों तरफ फैल गई। तब वहां के बनिये उनके सामने आए और उनसे मांफी मांगी तो बाबा ने उन्हें माफ कर दिया और उनसे कहा कि 'अब कभी झूठ मत बोलना।'
दूसरी कहानी
एक बार की बात है, एक बार बाबा का भक्त बहुत दूर से अपनी पत्नी को लेकर बाबा के दर्शन के लिए आया और जब वह जाने लगा तो जोरों से बारिश होने लगी। तब उनका भक्त परेशान होने लगा तब बाबा ने उनकी परेशानी को देखकर कहा, हे अल्लाह! बारिश को रोक दो, मेरे बच्चों को घर जाना है और तत्काल ही बारिश रुक गई।
तीसरी कहानी
एक बार गांव के एक व्यक्ति की एक बेटी अचानक खेलते हुए वहां के कुएं में गिर गई। लोगों को लगा कि वह डूब रही है। सब वहां दौड़कर गए और देखा कि वह हवा में लटकी हुई है और कोई अदृश्य शक्ति उसे पकड़े हुए है। वे और कोई नहीं बाबा ही थे, क्योंकि वह बच्ची कहती थी कि मैं बाबा की बहन हूं। अब लोगों को कोई और स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी।
चौथी कहानी
म्हालसापति के यहां जब पुत्र हुआ तो वे उसे बाबा के पास लेकर आए और उसका नामकरण करने के लिए कहने लगे। बाबा ने उस पुत्र को देखकर म्हालसापति से कहा कि इसके साथ अधिक आसक्ति मत रखो। सिर्फ 25 वर्ष तक ही इसका ध्यान रखो, इतना ही बहुत है। ये बात म्हालसापति को तब समझ आई, जब उनके पुत्र का 25 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। 1922 में भगत म्हालसापति का देहांत हो गया।
पांचवीं कहानी
एक दिन बाबा ने 3 दिन के लिए अपने शरीर को छोड़ने से पहले म्हालसापति से कहा कि यदि मैं 3 दिन में वापस लौटूं नहीं तो मेरे शरीर को अमुक जगह पर दफना देना। 3 दिन तक तुम्हें मेरे शरीर की रक्षा करना होगी। धीरे-धीरे बाबा की सांस बंद हो गई और शरीर की हलचल भी बंद हो गई। सभी लोगों में खबर फैल गई कि बाबा का देहांत हो गया है। डॉक्टर ने भी जांच करके मान लिया कि बाबा शांत हो गए हैं।
लेकिन म्हालसापति ने सभी को बाबा से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि 3 दिन तक इनके शरीर की रक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। गांव में इसको लेकर विवाद हो गया लेकिन म्हालसापति ने बाबा के सिर को अपनी गोद में रखकर 3 दिन तक जागरण किया। किसी को बाबा के पावन शरीर को हाथ भी नहीं लगाने दिया। 3 दिन बाद जब बाबा ने वापस शरीर धारण किया, तो जैसे चमत्कार हो गया। चारों ओर हर्ष व्याप्त हो गया।