Sabarimala Temple Case: इस मस्जिद की परिक्रमा बिना अधूरा है सबरीमाला मंदिर का दर्शन, पढ़िए क्यों निभाई जाती है ये दिलचस्प परंपरा
By मेघना वर्मा | Published: November 14, 2019 10:02 AM2019-11-14T10:02:31+5:302019-11-14T11:44:36+5:30
सबरीमाला मंदिर में मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन एक ज्योति नजर आती है। जिसे देखने के लिए लोग भारी संख्या में यहां इकट्ठा होते हैं। यहां के लोगों की आस्था है कि इस ज्योत को कोई और नहीं बल्कि खुद भगवान के द्वारा जलाया जाता है।
केरल की सबरीमाला मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के दर्शन को लेकर जहां एक ओर विवाह चल रहा है तो वहीं दूसरी तरफ लोग इससे जुड़ी कुछ विशेष बातों से अभी भी अवगत नहीं है। स्वामी अयप्पा के इस मंदिर की परंपरा सदियों से एक जैसी चली आ रही है और इसी परंपरा का हिस्सा ये भी है कि सबरीमाला मंदिर में दर्शन से पहले श्रद्धालुओं को यहां मौजूद मस्जिद के दर्शन करने पड़ते हैं। आइए आपको बताते हैं क्या है ये परंपरा।
दरअसल स्वामी अयप्पा के इस मंदिर में जाने से पहले सभी भक्तों या श्रद्धालुओं को यहां से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित एक मस्जिद के दर्शन करना पड़ता है। ये मस्जिद इरुमलै इलाके में स्थित है जहां श्रद्धालुओं को रुकना पड़ता है। यि इस यात्रा का कड़ा नियम है जिसे भक्तों को मानना जरूरी है। इस मस्जिद का नाम वावर मस्जिद है।
पेश करता है सदभाव की अनूठी मिसाल
दरअसल यहां आए श्रद्धालु भगवान अयप्पा के साथ स्वामी वावर के भी जयकारे लगाते हैं। यहां भक्तों को मस्जिद की परिक्रमा करनी पड़ती है। यहां होती हुई नमाज के बीच ही लोगों को पूजा-अर्चना करनी पड़ती है। जिससे समभाव की एक अनूठी मिसाल कहा जा सकता है। बताया जाता है कि मंदिर और मस्जिद की ये परंपरा 500 साल से भी ज्यादा पुरानी है। श्रद्दालुओं को इसके बाद प्रसाद में विभूति और काली मिर्च दी जाती है। कहते हैं इस मस्जिद की परीक्रमा किए बिना शबरीमाला मंदिर का दर्शन अधूरा होता है।
मकर संक्रांति पर लगता है मेला
हर साल जनवरी 14 यानी मकर संक्रांति वाले दिन मकर विलक्कू और 15 नवंबर को मंडलम उत्सव मनाया जाता है। इस मेले में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। स्वामी अयप्पा के इस मंदिर में सिर्फ काले या नीले रंग के वस्त्र में ही प्रवेश कर सकते हैं।
जलता है चमत्कारिक दीया
सबरीमाला मंदिर में मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन एक ज्योति नजर आती है। जिसे देखने के लिए लोग भारी संख्या में यहां इकट्ठा होते हैं। यहां के लोगों की आस्था है कि इस ज्योत को कोई और नहीं बल्कि खुद भगवान के द्वारा जलाया जाता है। इसे देखने के लिए लोग ना सिर्फ कई दिनों पहले से यहां आते हैं बल्कि घंटों लाइन में लगकर इसे देखते हैं।
कौन है भगवान अयप्पा
पुरानी कथाओं की मानें तो भगवान अयप्पा को भगवान शिव और माता मोहिनी का पुत्र मानते हैं। मोहिनी भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप मानी जाती हैं। जिन्होंने समुद्र मंथन के दौरान दानवों का ध्यान भटकाने के लिए अवतार लिया था। शिव और विष्णु से उत्पन्न होने के कारण भगवान अयप्पा को हरिहरपुत्र भी करते हैं।