देश के इस मंदिर में भगवान नहीं बल्कि मोटरसाइकिल की होती है पूजा, जानें इसके पीछे की अजीबो-गरीब वजह

By मेघना वर्मा | Published: November 17, 2019 09:58 AM2019-11-17T09:58:49+5:302019-11-17T09:58:49+5:30

आज हम आपको एक ऐसी ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां किसी भगवान नहीं बल्कि मोटरसाइकिल की पूजा की जाती है। राजस्थान के जोधपुर में स्थित इस मंदिर की अनोखी मान्यता है और अनोखी परंपरा।

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देश के इस मंदिर में भगवान नहीं बल्कि मोटरसाइकिल की होती है पूजा, जानें इसके पीछे की अजीबो-गरीब वजह

Highlightsराजस्थान के जोधपुर में है मोटरसाइकिल वाला ये मंदिर।इस मंदिर में मार्गशीष शुक्ला अष्टमी का मेला लगता है। लोग मन्नते मांगते है और जो भी यहां से गुजरता है यहां रूककर जरूर जाता है।

भारत देश सभ्यता और संस्कृतियों वाला देश है। यहां लोग जितना खुद पर विश्वास रखते हैं उतना ही भगवान पर भी विश्वास रखते हैं। तभी तो देश के हर एक गली-मुहल्ले में आपको मंदिर-मस्जिद दिखाई दे जाएंगे। जहां माथा टेककर लोग अपने मन का सारा दुख-हाल कह डालते हैं। मगर क्या आप जानते हैं देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां भगवान नहीं बल्कि मोटरसाइकिल(बुलेट) की पूजा होती है। 

जी हां आज हम आपको एक ऐसी ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां किसी भगवान नहीं बल्कि मोटरसाइकिल की पूजा की जाती है। राजस्थान के जोधपुर में स्थित इस मंदिर की अनोखी मान्यता है और अनोखी परंपरा। जिसमें किसी भगवान को ना पूजकर बुलेट वाले बाबा की पूजा की जाती है। क्या है इसके पीछे की कहानी आप भी जरूर जानिए।

चोटिला गांव में स्थित है बाबा ओम बन्ना का मंदिर

यह मंदिर राजस्थान के जोधपुर में स्थित है। जोधपुर-पाली हाईवे नंबर 65 पर स्थित जोधपुर से 45 किलोमीटर और पाली जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर चोटिला गांव के पास है बुलेट वाले बाबा ओम बन्ना का स्थान। ये मंदिर सिर्फ राजस्थान में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में मशहूर हो चला है। ओम बन्ना का जन्म राजस्थान में के चोटिला गांव में 5 मार्च, 1965 में ठाकुर जोगसिंह राठौड़ के घर हुआ। 

ओम बन्ना के पिता चोटिला के सरपंच थे और वे उनकी इकलौती संतान होने के कारण घर में सभी के लाडले थे। जिस समय लोगों के पास साइकिल भी नहीं हुआ करती थी, उस समय ओम बन्ना के पास रॉयल एनफील्ड बुलेट मोटर साइकिल हुआ करती थी जो ओम बन्ना को बहुत अधिक प्रिय थी।

स्थानीय लोगों की मानें बताया जाता है बताया जाता है कि 2 दिसम्बर, 1988 को ओम बन्ना अपनी बुलेट से अपने ससुराल बगड़ी सांडेराव से अपने गांव चोटिला लौट रहे थे। चोटिला के पास ही रात के समय उनकी बुलेट का संतुलन खराब हो गया। बुलेट एक पेड़ से टकराई जिसमें बन्ना की जान चली गई। 

पुलिस जब मौके पर पहुंची तो बन्ना की बाइक अपने कब्जे में ले लिया। सुबह बुलेट मोटर साइकल थाने से गायब मिली। जब खोजा गया तो बुलेट दुर्घटना स्थल पर मिली। थानेदार ने इस बार बुलेट को फिर कब्जे में लिया और सारा पेट्रोल निकलवाकर चेन से बंधवा कर थाने में रखवा दिया। मगर अगली सुबह फिर से बुलेट थाने से नदारद थी। 

इस बार जब छान-बीन की गई तो बुलेट फिर से वहीं मिली जहां बन्ने का एक्सीडेंट हुआ था। इस घटना को जानकर पिता जोगसिंह ने बेटे की आत्मा की इच्छा समझकर दुर्घटना स्थल पर एक चबूतरा बनवाया और बुलेट मोटर साइकिल को वहीं खड़ी करवा दिया और ओम बन्ना का मंदिर बनवा दिया। बस तभी से ये लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन गया। अब इस मंदिर पर बाबा ओम बन्ना के जन्मतिथि और पुण्यतिथि दोनों दिन मार्गशीष शुक्ला अष्टमी का मेला लगता है। लोग मन्नते मांगते है और जो भी यहां से गुजरता है यहां रूककर जरूर जाता है।

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