पुरी में ‘सुना बेशा’ अनुष्ठान के प्रत्यक्षदर्शी बने लाखों श्रद्धालु, जानिए क्या है ये परंपरा जिसमें इस्तेमाल हुआ 200 किलो से ज्यादा सोना
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 14, 2019 10:24 AM2019-07-14T10:24:46+5:302019-07-14T10:24:46+5:30
मंदिर की परंपरा के अनुसार देवी-देवताओं को साल में पांच बार सोने से सजाया जाता है। ऐसे चार समारोह मंदिर के अंदर होते हैं जबकि केवल ‘सुना बेशा’ अनुष्ठान 12वीं सदी से मंदिर के बाहर होता है।
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के ‘सुना बेशा’ (सोने की पोशाक) अनुष्ठान के लाखों श्रद्धालु शनिवार को गवाह बने। इसी अनुष्ठान के साथ ही कड़ी सुरक्षा के बीच नौ दिवसीय लंबी वार्षिक रथयात्रा का समापन हुआ। परंपरा के अनुसार देवी एवं देवताओं की रथ यात्रा की वापसी के बाद वाले दिन सोने के आभूषणों से भगवान श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को सजाया जाता है।
इस दौरान भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर के सिंह द्वार के सामने अपने-अपने रथ में आसीन रहते हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजीटीए) के विशेष अधिकारी भास्कर मिश्रा ने कहा, 'देवी-देवताओं को करीब 208 किलोग्राम सोने के आभूषणों से सजाया गया'
मंदिर की परंपरा के अनुसार देवी-देवताओं को साल में पांच बार सोने से सजाया जाता है। ऐसे चार समारोह मंदिर के अंदर होते हैं जबकि केवल ‘सुना बेशा’ अनुष्ठान 12वीं सदी से मंदिर के बाहर होता है।
भगवान को सजाने में लगता है दो घंटे से ज्यादा का समय
सबसे पहले 200 किलोग्राम से ज्यादा सोने के आभूषण को मंदिर के कोषागार से कड़ी सुरक्षा के बीच रथ के पास लाया जाता है। इसके बाद इन आभूषणों से भगवान को पहनाया जाता है। इसमें दो घंटे से ज्यादा का समय लगता है। इनमें हार और कान मे पहने जाने वाले आभूषण सहित कई तरह के नायाब आभूषण होते हैं। साल 1978 की सूचि के अनुसार मंदिर के पास सोने के 378 आभूषण हैं। इसके अलावा चांदी के भी 251 आभूषण हैं जिनका कुल वजन 14 क्विंटल है। इसके अलावा मंदिर के पास हीरे और दूसरे रत्नों से बने आभूषण भी मौजूद हैं।
परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ सोमवार (15 जुलाई) को माता महालक्ष्मी को रसगुल्ला भेंट करेंगे। मान्यता है कि महालक्ष्मी इस यात्रा में खुद को अकेले छोड़ जाने से श्रीजगन्नाथ जी से नाराज हो जाती हैं और इसलिए भगवान उन्हें मनाने की कोशिश करते हैं।
(पीटीआई इनपुट के साथ)