निर्जला एकादशी पर करें तुलसी की पूजा, यहां जानें तुलसी पूजन की विधि
By मेघना वर्मा | Published: May 30, 2020 09:36 AM2020-05-30T09:36:58+5:302020-05-30T09:36:58+5:30
निर्जला एकादशी पर तुलसी का पूजन भी जरूर होता है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 2 जून को पड़ रहा है।
एकादशी व्रत को हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। एकादशी पर तुलसी पूजन भी सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। वहीं भगवान विष्णु को भी तुलसी प्रिय होती है। इसलिए निर्जला एकादशी पर तुलसी का पूजन भी जरूर होता है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 2 जून को पड़ रहा है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं।
मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत ऐसा है जिसे करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं। हलांकि दिन भर प्यासे रहने वाला ये व्रत बहुत कठिन होता है। माना जाता है कि साल भर की सभी एकादशियों का फल केवल एक दिन के इस एकादशी व्रत को करने से मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने किया था। इसलिए इसे भीम एकादशी भी कहते हैं।
इस व्रत को हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं। सभी एकादशी में भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है लेकिन निर्जला एकादशी करने से सभी एकादशियों का फल साधक को मिलता है।
तुलसी की महत्ता हमारे पुरानी परंपराओं में बताई गई है। प्राचीन काल से ही लोग घर के आगंन में तुलसी की पूजा करते थे। राजा हो या रंक हर मनुष्य तुलसी की पूजा करता आया है। हर एकादशी पर लोग तुलसी की पूजा विधि विधान से करते हैं।
होती हैं लक्ष्मी का रूप
शास्त्रों में तुलसी को पूजनीय और लक्ष्मी का रूप माना जाता है। कहा ये भी जाता है कि हर घर में तुलसी का पौधा होना अनिवार्य है। बताया जाता है कि जिस घर में भी तुलसी का पौधा हो वहां देवी-देवताओं का वास होता है। विज्ञान की दृष्टी से भी तुलसी के पौधे शरीर के लिए बेहद जरूरी होते हैं। तुलसी का पौधा शरीर के लिए लाभकारी तत्व रिलीज करता है।
तुलसी पूजा की विधि
1. तुलसी की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नानादि कार्य कर लें।
2. इसके बाद आंगन में रखे तुलसी के पौधे पर साफ जल या गंगाजल चढ़ाएं।
3. घी का दीपक, हल्दी और सिंदूर से तुलसी को चढ़ाएं।
4. "महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी , आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।" का जाप करें।
5. शालिग्राम और वृंदादेवी का स्मरण कर तुलसी जी का जयकारा लगाएं।
6. इसके बाद लगाए गए भोग को प्रसाद के रूप में सबको दें।