Navratri 2020: बिना सिर वाली छिन्नमस्तिका देवी के बारे में जानते हैं आप? पढ़ें चौंकाने वाली कथा
By गुणातीत ओझा | Published: October 20, 2020 11:37 AM2020-10-20T11:37:00+5:302020-10-20T12:29:55+5:30
छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है। यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है। इसे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है।
Navratri 2020, Rajrappa Mandir, Shakti peeth, Chhinnamasta: आज नवरात्रि का चौथा दिन है। नवरात्र में मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। मां दुर्गा से जुड़ी ऐसी अनंत कथाएं हैं जिनके बारे में आप जानकर हतप्रभ हो जाएंगे। इस क्रम में आज आपको बताते हैं झारखंड के रजरप्पा में विराजमान बिना सिर वाली देवी के बारे में। रजरप्पा में छिन्नमस्तिका मंदिर शक्तिपीठों में से एक है। यहां हर नवरात्र पर आस्था का सैलाब देखने को मिलता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां छिन्नमस्तिका जिस भक्त पर आशीर्वाद बनाती है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। बता दें कि असम स्थित मां कामाख्या मंदिर को सबसे बड़ा शक्तिपीठ कहा जाता है। मां छिन्नमस्तिका मंदिर को दुनिया की दूसरी शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है।
मां काली की भव्य प्रतिमा
छिन्नमस्तिका मंदिर में देवी के काली अवतार की भव्य प्रतिमा स्थापित है। सिर कटा हुआ, दाएं हाथ में तलवार, बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर.. देवी के इस स्वरूप को देखते ही उनके क्रोध का आभास हो जाता है। वहीं, शिलाखंड में मां की तीन नेत्र हैं, बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिका सर्प की माला व मुंडमाल भी पहने हुए हैं। बिखरे और खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं। मां छिन्नमस्तिका के अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं।
मां छिन्नमस्तिका की पौराणिक कथा
मां छिन्नमस्तिका के कटे सिर के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं। स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा, लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं। सहेलियों के विनम्र आग्रह के बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं। सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने उन दोनों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।
छिन्नमस्तिका माता का बीज मंत्र
ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा
दुश्मनों से परेशान हैं तो करें मां छिन्नमस्तिका की साधना
मां छिन्नमस्तिका के बारे में यह मान्यता भी है कि वे भक्तों को दुश्मनों से निजात दिलाती हैं। देवी छिन्नमस्तिका आपको राहुकृत पीड़ा से मुक्ति दिला सकती हैं। दोनों के ही सिर कटे हुए हैं, लेकिन फर्क यह है कि दोनों के सिर कटने का कारण अलग-अलग है। राहु चोरी से अमृत पी रहे थे इसलिए उनका सिर कटा और देवी छिन्नमस्ता ने अपनी सहचरियों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर खुद काटा और उनकी भूख मिटाई।