नर्मदा जयंती: अगस्त्य, भृगु जैसे ऋषियों को इस नदी ने बनाया सफल तपस्वी, जानें शंकर की पुत्री नर्मदा से जुड़ी 10 रोचक बातें
By गुलनीत कौर | Published: February 12, 2019 01:08 PM2019-02-12T13:08:03+5:302019-02-12T13:29:29+5:30
नर्मदा एक ऐसी पवित्र नदी है जिसके किनारे बैठ बड़े बड़े ऋषि-मुनियों ने तपस्या करके सफलता प्राप्त की। ऋषि अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कंडेय, शांडिल्य, कपिल आदि नाम इसमें शामिल हैं
हिन्दू धर्म शास्त्रों में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तथ सप्तमी और नर्मदा जयंती मनाई जाती है। दोनों की ही विशेष महत्व है। इस वर्ष 12 फरवरी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। धर्म शास्त्रों में सभी नदियों की तरह, नर्मदा का भी अपना महत्व है। आइए जानते हैं नर्मदा नदी से जुड़े रोचक तथ्य।
1) पौराणिक कथाओं के अनुसार नर्मदा भगवान शंकर की पुत्री हैं। मान्यता है कि इस नदी के हर कंकर में शंकर बसते हैं। इसमें स्नान करने वाला शिव की कृपा पाता है
2) पुराणों में दर्ज कथा के अनुसार के बार तांडव करते हुए शिव के शरीर से बेहिसाब पसीना बहाने लगा। इस पसीने से एक बालिका का जन्म हुआ जिसे आगे चलाकर धर्म शास्त्रों में नर्मदा के नाम से जाना गया
3) बालिका के जन्म पर शिव ने उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। शिव ने उसे लोक कल्याण के लिए हमेशा ही बहते रहने को कहा। साथ ही यह वरदान दिया कि जो कोई भी तेरे जल से स्नान करेगा उसे कभी सर्प का विष मार नहीं सकेगा
4) नर्मदा एक ऐसी पवित्र नदी है जिसके किनारे बैठ बड़े बड़े ऋषि-मुनियों ने तपस्या करके सफलता प्राप्त की। ऋषि अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कंडेय, शांडिल्य, कपिल आदि नाम इसमें शामिल हैं
5) आचार्य चाणक्य ने भी इसी पवित्र नदी के पास सिद्धि पाई थी। मान्यता है कि इसी पवित्र नदी के आसपास कई सारे तीर्थ स्थल हैं जिनकी गिनती करना भी मुश्किल है
6) एक पौराणिक कथा के अनुसार लंकापति रावण भी नर्मदा नदी के तट पर आया था। किन्तु वह वहां युद्ध के मकसद से आया था। इसके पीछे एक पौराणिक कथा बेहद प्रचलित है। कहते हैं कि सहस्त्रबाहु अर्जुन नामक एक राजा को युद्ध में हारने के लिए रावण यहां आया था
7) रावण को पता चला कि राजा अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी के पास जलक्रीडा में मग्न है तो उसने तट से ऊंचाई पर बैठकर शिव तपस्या करने का विचार बनाया ताकि वह युद्ध में जीतने के लिए तैयार हो सके
8) मगर राजा, जिसकी हजारों भुजाएं थीं, उसने अपनी भुजाओं से जल का प्रवाह बढ़ा दिया और वह बाढ़ के रूप में उस ऊंचाई तक पहुंच गया जहां रावण शिव तपस्या में लीन था। बाढ़ के जल से तपस्या भंग हो गई
9) क्रोध में आकर रावण ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ जिसमें रावण की हार हुई। राजा ने रावण को बंधी बना लिया
10) कहते हैं कि रावण के दादा पितामह पुलस्त्य के आग्रह पर ही राजा ने रावण को बंधन से छोड़ा था। बाद में राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन और रावण में दोस्ती भी हो गई