मुहर्रम के दिन तलवार और खंजर से अपने शरीर को जख्मी कर क्यों रोते हैं शिया मुस्लिम?

By उस्मान | Published: September 19, 2018 02:36 PM2018-09-19T14:36:48+5:302018-09-19T15:09:42+5:30

इस्लामिक कैलेंडर के इस पहले महीने को पूरी शिद्दत के साथ मनाया जाता है। शिया मुस्लिम अपना खून बहाकर मातम मनाते हैं, सुन्नी मुस्लिम नमाज-रोज के साथ इबादत करते हैं।

Muharram/Ashura 2018 Importance & Significance of Muharram | मुहर्रम के दिन तलवार और खंजर से अपने शरीर को जख्मी कर क्यों रोते हैं शिया मुस्लिम?

मुहर्रम के दिन तलवार और खंजर से अपने शरीर को जख्मी कर क्यों रोते हैं शिया मुस्लिम?

इस्लाम धर्म में चार पवित्र महीने होते हैं, उनमें से एक मुहर्रम का होता है। मुहर्रम शब्द में से हरम का मतलब होता है किसी चीज पर पाबंदी और ये मुस्लिम समाज में बहुत महत्व रखता है। मुहर्रम की तारीख हर साल बदलती रहती है। इस्लाम धर्म में शहादत के त्योहार मुहर्रम का बहुत अधिक महत्त्व है। इस्लामिक कैलेंडर के इस पहले महीने को पूरी शिद्दत के साथ मनाया जाता है। शिया मुस्लिम अपना खून बहाकर मातम मनाते हैं, सुन्नी मुस्लिम नमाज-रोज के साथ इबादत करते हैं। इस साल यानी 2018 में मुहर्रम 21 सितंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस महीने के पहले दस दिनों तक पैगंबर मुहम्मद के वारिस (नवासे) इमाम हुसैन की तकलीफों का शोक मनाया जाता है। हालांकि बाद में इसे जंग में दी जाने वाली शहादत के जश्न के रूप में मनाया जाता है। उनकी शहादत को ताजिया सजाकर लोग अपनी खुशी जाहिर करते हैं। मुहर्रम महीने के शुरूआती दस दिनों को आशुरा कहा जाता है।

आशूरा क्या है?  
आशूरा के दिनों को 'यौमे आशूरा' भी कहा जाता है। इन दिनों का सभी मुसलमानों खासकर शिया मुस्लिमों के लिए इसकी खास अहमियत है। यह दिन मुहर्रम की दसवीं तारीख है। आशूरा करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। 

मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? 
मुहर्रम को मनाने का इतिहास काफी दर्दनाक है लेकिन इसे बहादुरी के तौर पर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि सन् 61 हिजरी के दौरान कर्बला (जो अब इराक में है) यजीद इस्लाम का बादशाह बनना चाहता था। इसके लिए उसने आवाम में खौफ फैलाना शुरू कर दिया और लोगों को गुलाम बनाने लगा। लेकिन इमाम हुसैन और उनके भाईयों ने उसके आगे घुटने नहीं टेके और जंग में जमकर उससे मुकाबला किया। बताया जाता है कि इमाम हुसैन अपने बीवी बच्चों को हिफाजत देने के लिए मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे, तभी यजीद की सेना ने उन पर हमला किया। इमाम हुसैन को मिलाकर उनके साथियों की संख्या केवल 72 थी जबकि यजीद की सेना में हजारों सैनिक थे। लेकिन इमाम हुसैन और उनके साथियों ने डटकर उनका मुकाबला किया। यह जंग कई दिनों तक चली और भूखे-प्यासे लड़ रहे इमाम के साथी एक-एक कर कुर्बान हो गए। हालांकि इमाम हुसैन आखिरी तक अकेले लड़ते रहे और मुहर्रम के दसवें दिन जब वो नमाज अदा कर रहे थे, तब दुश्मनों से उन्हें मार दिया। पूरे हौसलों के साथ लड़ने वाले इमाम मरकर भी जीत के हकदार हुए और शहीद कहलाए। जबकि जीतकर भी ये लड़ाई यजीद के लिए एक बड़ी हार थी। उस दिन से आज तक मुहर्रम के महीने को शहादत के रूप में याद किया जाता है। 

मुहर्रम में लोग खुद को जख्मी क्यों करते हैं? 
शिया मुस्लिम अपनी हर खुशी का त्याग कर पूरे सवा दो महीने तक शोक और मातम मनाते हैं। हुसैन पर हुए ज़ुल्म को याद करके रोते हैं। ऐसा करने वाले सिर्फ मर्द ही नहीं होते, बल्कि बच्चे, बूढ़े और औरतें भी हैं। यजीद ने इस युद्ध में बचे औरतों और बच्चों को कैदी बनाकर जेल में डलवा दिया था। मुस्लिम मानते हैं कि यजीद ने अपनी सत्ता को कायम करने के लिए हुसैन पर ज़ुल्म किए। इन्हीं की याद में शिया मुस्लिम मातम करते हैं और रोते हैं। इस दिन मातमी जुलूस निकालकर वो दुनिया के सामने उन ज़ुल्मों को रखना चाहते हैं जो इमाम हुसैन और उनके परिवार पर हुए। खुद को जख्मी करके दिखाना चाहते हैं कि ये जख्म कुछ भी नहीं हैं जो यजीद ने इमाम हुसैन को दिए।

मुहर्रम का पैगाम
लड़ाई और जंग कुर्बानी मांगते हैं। लड़ाई का अंत हमेशा तकलीफदेह होता। इसलिए यह शहदाद का त्यौहार का अमन और शांति का पैगाम देता है। साथ ही मुहर्रम यह संदेश भी देता है कि धर्म और सत्य के लिए घुटने नहीं टेकने चाहिए।  

ताजिया क्या है और मुहर्रम में इसका क्या महत्त्व है? 
आपने देखा होगा कि मुहर्रम वाले दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बड़े-बड़े ताजिये बनाकर झांकी निकालते हैं। आपको बता दें कि ताजिया बांस की लकड़ी से तैयार किये जाते हैं और उन्हें विभिन्न चीजों से सजाया जाता है। दरअसल इसमें इमाम हुसैन की कब्र बनाई जाती है और मुस्लिम शान से उसे दफनाने जाते हैं। इसमें मातम भी मनाया जाता है और फक्र के साथ शहीदों को याद भी किया जाता है। 

Web Title: Muharram/Ashura 2018 Importance & Significance of Muharram

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