मकर संक्रांति पर क्यों बनती है खिचड़ी और तिल के पकवान, जानें पौराणिक कथा
By गुलनीत कौर | Published: January 9, 2019 07:52 AM2019-01-09T07:52:02+5:302019-01-09T07:52:02+5:30
मकर संक्रांति पर देश के हर कोने में अलग अलग तरीके से खिचड़ी और तिल के व्यंजन पकाए जाते हैं। इन्हें मकर संक्रांति के दिन बनाया जाता है और भगवान को भोग लगाने के बाद अगले दिन सूर्य उदय के पश्चात ही ग्रहण किया जाता है।
भगवान विष्णु एवं सूर्य देव को समर्पित पर्व मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान एवं पूजा-पाठ का खास महत्व है। इसदिन सूर्य का धनु राशि से निकालकर मकर राशि में प्रवेश होता है। इसी कारण से इस पर्व को 'मकर संक्रांति' के नाम से जाना जाता है। इस साल 14 जनवरी की रारी सूर्य का राशि परिवर्तन हो रहा है जिसके चलते 15 जनवरी को सूर्य उदय के बाद से ही यह त्योहार मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति की विभिन्न परंपराओं में स्नान, दान का विशेष महत्व है, किन्तु इसके अलावा इसदिन पारंपरिक खिचड़ी और तिल के उपयोग से पकवान बनाने की भी मान्यता है। देश के हर कोने में अलग अलग तरीके से खिचड़ी और तिल के व्यंजन पकाए जाते हैं। इन्हें मकर संक्रांति के दिन बनाया जाता है और भगवान को भोग लगाने के बाद अगले दिन सूर्य उदय के पश्चात ही ग्रहण किया जाता है।
किन्तु मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी क्यों बनाई जाती है? इसदिन तिल के प्रयोग से तरह तरह के पकवान क्यों तैयार किए जाते हैं? इसके पीछे का कारण क्या है? आइए इनके पीछे छिपी पौराणिक कहानियों के बारे में जानते हैं।
मकर संक्रांति पर तिल के पकवान क्यों बनते हैं?
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार शनि देव का हमेशा से ही अपने पिता सूर्य देव से वैर था। एक दिन सूर्य देव ने शनि और उसकी माता छाया को अपनी पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद भाव करते हुए देख लिया। इससे नाराज होकर उन्होंने अपने जीवन से छाया और शनि को निकालने का कठोर फैसला लिया। इससे नाराज होकर शनि और छाया ने सूर्य को कुष्ठ रोग हो जाने का शाप दिया और वहां से चले गए।
पिता को कुष्ठ रोग से परेशान होते देख यमराज ने तपस्या की। आखिरकार सूर्य देव कुष्ठ रोग से मुक्त हुए। किन्तु उनके मन में अभी भी शनी देव को लेकर क्रोध था। क्रोधित अवस्था में ही वे शनि देव के घर (कुंभ राशि में) गए और उसे जलाकर काला कर दिया। इसके बाद शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ा।
अपनी सौतेली मां और शनी देव को दुख में देखकर यमराज ने उनकी मदद की। सूर्य देव को दोबारा उनसे मिलने भेजा। इस बार जब सूर्य देव वहां पहुंचें तो शनि देव ने 'काले तिल' से उनकी पूजा की। चूंकि घर में सब कुछ जल चुका था, इसलिए शनि देव के पास केवल तिल ही थे। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि देव को वरदान दिया और कहा कि तुम्हारे दूसरे घर 'मकर' में आने पर तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा। इसी कारण से मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की तिल से पूजा की जाती है और अगले दिन तिल का सेवन किया जाता है।
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मकर संक्रांति पर क्यों बनाते हैं खिचड़ी?
एक कहानी के अनुसार कहा जाता है कि खिचड़ी का आविष्कार पहली बार भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाली बाबा गोरखनाथ ने किया था। जब खिलजी ने आक्रमण किया था तब नाथ योगियों के पास युद्ध के बाद खाना बनाने का समय नहीं बचता था। इस परेशानी को देखते हुए बारा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ एक ही बर्तन में पकाने की सलाह दे।
इससे जो व्यंजन तैयार हुआ वह झट से बन भी गया और स्वादिष्ट भी लगा। इसे खाने में भी कम समय लगा और इससे शरीर में ऊर्जा भी बनी रहती थी। बारा गोरखनाथ ने स्वयं इस पकवान का नाम खिचड़ी रखा। कहा जाता है कि वह मकर संक्रांति का ही समय था जिसके बाद से आजतक इसदिन खिचड़ी बनाने की परंपरा को निभाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दौरान खिचड़ी का मेला लगता है।