महाभारत: अर्जुन और भगवान शिव के बीच भी हुआ था युद्ध, जानिए आखिर क्या था कारण
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 6, 2019 09:54 AM2019-08-06T09:54:12+5:302019-08-06T09:54:12+5:30
अर्जुन जंगल में जब तपस्या कर रहे थे उसे दौरान एक जंगली सूअर उनकी ओर तेजी से बढ़ा। अर्जुन को इसका आभास हो गया और उन्होंने तुरंत अपना गांडीव उठाया और एक बाण उसकी ओर चला दिया।
महाभारत में जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध लगभग तय हो गया तो भगवान कृष्ण ने अर्जुन को इसके लिए तैयारी शुरू करने को कहा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सलाह दी वे इंद्र से दिव्यास्त्र हासिल करें। इसलिए अर्जुन ने इंद्र को प्रसन्न कर उनके सामने दिव्यास्त्र पाने की चाह रखी। इसे सुन इंद्र ने अर्जुन से कहा कि उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त करने से पहले जरूरी है कि वह भगवान शिव को प्रसन्न करें।
अर्जुन ने यह बात मानी और शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या शुरू की। अर्जुन के काफी कठिन तपस्या के बाद शिवजी ने अर्जुन को पाशुपतास्त्र देने का फैसला किया। इससे पहले शिवजी ने अर्जुन की परीक्षा लेनी चाही।
महाभारत: भगवान शिव और अर्जुन में हुआ युद्ध
अर्जुन जंगल में जब तपस्या कर रहे थे उसे दौरान एक जंगली सूअर उनकी ओर तेजी से बढ़ा। अर्जुन को इसका आभास हो गया और उन्होंने तुरंत अपना गांडीव उठाया और एक बाण उसकी ओर चला दिया। ठीक उसी समय एक दूसरा बाण भी उस जंगली सूअर को लगा जिसे एक वनवासी ने अपना शिकार समझकर चलाया था।
अर्जुन यह देख हैरान रह गये कि जब उन्होंने एक बाण चलाया है तो दूसरा बाण कहां से आया। अर्जुन यह देख अपमानित और क्रोधित भी महसूस करने लगे कि उनके लक्ष्य को भला किसी और ने क्यों निशाना बनाया। उसी समय वह वनवासी अपने शिकार पर हक जताने के लिए वहां पहुंच गया। अर्जुन नहीं जानते थे वनवासी भेष में शिवजी हैं इसलिए उनका विवाद उनसे शुरू गया। वाद-विवाद इतना बढ़ गया कि युद्ध की नौबत आ गई।
अर्जुन ने अपनी शक्ति के अनुसार वनवासी पर बाणों की वर्षा शुरू कर दी लेकिन वनवासी को वे थोड़ भी नुकसान नहीं पहुंच सके। हालांकि, वनवासी के प्रहार से अर्जुन खुद जरूर अचेत हो गये। थोड़ी देर बाद जब अर्जुन दोबारा होश में आये तो उन्होंने शिव की पूजा कर एक बार फिर युद्ध करने की इच्छा प्रकट की। शिव रूपी वनवासी इस बात को मान गये।
महाभारत: शिव की पूजा के दौरान अर्जुन को समझ आया पूरा माजरा
अर्जुन ने वहीं, मिट्टी का एक शिवलिंग बनाया और फूल आदि तोड़ पूजा शुरू कर दी। अर्जुन ने देखा कि वे जो भी फूल शिवलिंग पर चढ़ा रहे हैं वह वनवासी के पैर के पास जाकर गिर रहा है। अर्जुन ने जब माला डाली तो वह भी उन्हे वनवासी के गले में दिखाई दी। यह देख अर्जुन पूरी बात समझ गये और क्षमा मांगी। शिवजी भी अर्जुन के पराक्रम से खुश हुए और उन्हे पाशुपतास्त्र दिया। शिवजी से पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के बाद अर्जुन देवराज के इंद्र के पास गए और उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त किए।