महामृत्युंजय मंत्र के जप का होता है विशेष महत्व, डर जाते हैं यमराज टल जाती है मौत भी!

By गुणातीत ओझा | Published: September 5, 2020 03:18 PM2020-09-05T15:18:47+5:302020-09-05T15:18:47+5:30

देवादिदेव महादेव की आराधना से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। उनको मुक्तिदाता और वरदान के देव माना जाता है। भोलेनाथ के वेदमंत्रों का जाप करने से तकलिफों का नाश होता है और समृद्धि मिलती है।

mahaamrtyunjay mantr ke jap ka hota hai vishesh mahatv dar jaate hain yamaraaj tal jaatee hai maut bhee | महामृत्युंजय मंत्र के जप का होता है विशेष महत्व, डर जाते हैं यमराज टल जाती है मौत भी!

जानें महामृत्युंजय मंत्र का महत्व।

Highlightsदेवादिदेव महादेव की आराधना से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।भोलेनाथ के वेदमंत्रों का जाप करने से तकलिफों का नाश होता है और समृद्धि मिलती है।

Mahamritunjay Mantra: देवादिदेव महादेव की आराधना से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। उनको मुक्तिदाता और वरदान के देव माना जाता है। भोलेनाथ के वेदमंत्रों का जाप करने से तकलिफों का नाश होता है और समृद्धि मिलती है। ऐसा ही एक शास्त्रोक्त मंत्र महामृत्युंजय मंत्र का है, जिसके जपने मात्र से मानव को सुख-समृद्धि, धन-दौलत और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

ऋषि मर्कण्डु के पुत्र थे मार्कण्डेय ऋषि

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि  अब एक सवाल हमारे जेहन में आता है कि आखिर यह अमोघ शक्तियों वाला यह मंत्र आया कहां से? इसकी उत्पत्ति किसने की और इसके पीछे की वजह क्या थी। पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि को अमरत्न का वरदान प्राप्त है। मार्कण्डेय ऋषि का नाम आठ अमर लोगों में शामिल है। मार्कण्डेय ऋषि के पिता का नाम ऋषि मर्कण्डु था। शास्त्रोक्त कथा के अनुसार मर्कण्डु ऋषि को जब लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने अपना पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव जब ऋषि दंपत्ति की तपस्या से प्रसन्न होकर जब प्रगट हुए तो उन्होंने ऋषि मर्कण्डु से पूछा कि हे ऋषि तुम गुणहीन दीर्घायु पुत्र चाहते हैं या 16 वर्षीय गुणवानअल्पायु पुत्र। तब मर्कण्डु ऋषि ने दूसरा विकल्प चुना और महादेव से गुणवान अल्पायु पुत्र को मांगा।

यमराज स्वयं आए थे मार्कण्डेय ऋषि के प्राण लेने

मार्कण्डेय जैसे ही बड़ा हुआ उसको अपने अल्पायु होने के संबंध में पता चला। उम्र के बढ़ने के साथ मार्कण्डेय की शिव भक्ति भी बढ़ने लगी। उनको अपनी मौत के संबंध में पता था लेकिन वो इसको लेकर विचलित नहीं थे। 16 साल का होने पर मार्कण्डेय को अपनी मृत्यु का रहस्य अपनी माता के द्वारा पता चला। जिस दिन उनकी मौत का दिन निश्चित था उस दिन भी वह चिंतामुक्त होकर शिव आराधना में लीन थे। शिवपूजा करते समय उनको सप्तऋषियों की सहायता से ब्रह्मदेव से उनको महामृत्युंजय मंत्र ' ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम्, ऊर्वारुकमिव बन्धनात, मृत्योर्मुक्षियमामृतात्।।' की दीक्षा मिली। इस मंत्र ने मार्कण्डेय के लिए अमोघ कवच का काम किया और जब यमदूत उनको लेने के लिए आए तो शिव आराधना में लीन मार्कण्डेय को ले जाने में असफल रहे। इसके बाद यमराज स्वयं धरती पर मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए आए।

शिव ने पराजित किया यमराज को

यमराज ने मौत का फंदा ऋषि मार्कण्डेय की गर्दन में डालने की कोशिश की, लेकिन वह फंदा शिवलिंग पर चला गया। वहां पर शिव स्वयं उपस्थित थे। वह यमराज की इस हरकत से नाराज हो गए और अपने रौद्र रूप में यमराज के सम्मुख आ गए। महादेव और यमराज के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें यमराज को पराजय का सामना करना पड़ा। भोलेनाथ ने यमराज को इस शर्त पर क्षमा किया कि उनका भक्त ऋषि मार्कण्डेय अमर रहेगा। इसके बाद शिव का एक नाम कालांतक हो गया। कालांतक का अर्थ है काल यानी मौत का अंत करने वाला।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि यदि कुंडली में ग्रह दोष है या ग्रहों से संबंधित कोई ऐसी पीड़ा है जिसका निवारण मुश्किल लग रहा है जैसे ग्रह गोचर, ग्रहों के नीच, शत्रु राशि या किसी पाप ग्रह से पीड़ित होने पर इस मंत्र का जाप फायदेमंद है। गंभीर रोग हो और मृत्युतुल्य कष्ट होने की दशा में महामृत्युंजय मंत्र संजीवनी बूटी जैसा काम करता है। जमीन संबंधी विवाद में इस मंत्र का जाप करने से फायदा मिलता है। किसी महामारी के फैलने की दशा में यह मंत्र कवच की भांति कार्य करता है। राजकाज संबंधी मामले के बिगड़ने और धन-हानि होने की दशा में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से दिक्कत दूर होती है। मेलापक में नाड़ीदोष और षडाष्टक की तकलीफ से भी इस मंत्र से लाभ होता है। धर्म-कर्म में मन न लगने पर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। किसी भी तरह के कलह-क्लेश में महामृत्युंजय मंत्र रामबाण औषधि के समान है।

महामृत्युंजय मंत्र जाप में रखें ये सावधानियां

महामृत्युंजय मंत्र जाप करते समय विशेष सावधानियां जरूरी है। इन नियमों का पालन कर आप महामृत्युंजय मंत्र जाप का पूरा लाभ उठा सकते हैं और किसी भी तरह के अनिष्ट की आशंका भी समाप्त हो जाती है।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूरी स्वच्छता और समर्पित भाव से करना चाहिए। मंत्र जाप से पहले संकल्प लेना चाहिए। मंत्र जाप में मंत्र के उच्चारण की शुद्धता आवश्यक है। मंत्र जप से पहले मंत्रों की एक निश्चित संख्या का निर्धारण कर लेना चाहिए। जितने मंत्रों का संकल्प लिया है उतनी संख्या पूर्ण होना चाहिए। मंत्र जान मानसिक यानी मन ही मन में या बहुत धीमे स्वर में करना श्रेष्ठ रहेगा। जप के समय दीपक जलता रहना चाहिए।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना अति उत्तम रहेगा। जपमाला को गौमुखी में रखकर जाप करना चाहिए जिससे किसी की नजर उसके ऊपर न पड़े। जप के समय शिवलिंग, शिव प्रतिमा, शिवजी की तस्वीर या महामृत्युंजय यंत्र सम्मुख होना चाहिए। जप करते समय कुश के आसन पर बैठना चाहिए। जपकाल में दूध मिले जल से शिवाभिषेक करते रहना चाहिए। जपकाल में पूर्व दिशा की और मुख होना चाहिए। जप का स्थान और समय निश्चित होना चाहिए। जप जितने दिनों तक चलता है उन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सात्विक आहार को ग्रहण करना चाहिए। किसी की भी बुराई से बचना चाहिए।

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