क्यों मनाते हैं लोहड़ी? आग में क्यों डालते हैं गुड़-तिल, जानें
By गुलनीत कौर | Published: January 13, 2019 07:58 AM2019-01-13T07:58:48+5:302019-01-13T07:58:48+5:30
लोहड़ी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इसदिन पंजाब में पतंगबाजी करने का भी चलन है। लोहड़ी की शाम को भंगड़े और गिद्दे से खूब रौनक लगाई जाती है। लोहड़ी की कहानी पर एक गाना भी प्रचलित है:
लोहड़ी उत्तर भारत का त्यौहार है। यह वह समय है जब उत्तर भारत में मकर संक्रांति तो दक्षिण में पोंगल मनाया जाता है। पंजाब और उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में इस दौरान लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। यह हर्ष और उल्ल्हास का पर्व है जो ज्यादातर पंजाबी समुदाय ही मनाता है। इस साल 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व मनाया जा रहा है।
लोहड़ी पर लोग पारंपरिक पहनावा पहनकर तैयार हो जाते हैं। लोहड़ी की पवित्र अग्नि जलाते हैं, उसके आसपास फेरे लगाते हैं, उसमें तिल, गुड़ डालते हैं और अपने जीवन की सभी परेशानियों को उस अग्नि में जल जाने की प्रार्थना करते हैं।
लोहड़ी का इतिहास
आइए आपको लोहड़ी का इतिहास बताते हैं। एक लोक प्रचलित कहानी के अनुसार सुंदरी और मुंदरी नाम की दो बहनें हुआ करती थीं। बचपन में अनाथ हो जाने के कारण लाचार बहनें अपने चाचा के पास आ गईं। रहने के लिए छत और खाने के लिए दो रोटी की भूखी इन बहनों के चाचा को इनपर तरस ना आया।
जालिम चाचा ने लालच में आकर दोनों को एक जमींदार के यहां बेचने की सोची। उस समय उस क्षेत्र में दुल्ला भट्टी नाम का एक डाकू था। जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता था। किसी नी दुल्ला भट्टी को जालिम चाचा की करतूत बताई।
खबर मिलते ही दुल्ला भट्टी ने चाचा के चंगुल से दोनों लड़कियों को छुड़ाया। दोनों को दुल्ला भट्टी ने अपने यहां शरण दी। उनका लालन पोषण किया। जब लड़कियां बड़ी हो गईं तो उसने दो अच्छे वर ढूंढ कर उनकी शादी करने का सोचा।
शादी बहुत जल्दी-जल्दी में की गई। दुल्ला भट्टी ने आग जलाई और उसी आग के आसपास फेरे लेते हुए दोनों लड़कियों की शादी कर दी गई। कहते हैं दूल्हा भट्टी के पास दोनों बहनों को देने के लिए कुछ नहीं था इसलिए उसने दोनों की झोली में गुड़ डाला और उन्हें विदा कर दिया।
इसी कहानी को आधार मानते हुए आज लोहड़ी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इसदिन पंजाब में पतंगबाजी करने का भी चलन है। लोहड़ी की शाम को भंगड़े और गिद्दे से खूब रौनक लगाई जाती है। लोहड़ी की कहानी पर एक गाना भी प्रचलित है:
सुंदर मुंदरिये होय ! तेरा कौन विचारा होय !
दुल्ला भट्टी वाला होय ! दुल्ले धी व्याही होय !
सेर शक्कर पाई होय ! कुड़ी दा लाल पटाका होय !
कुड़ी दा सालू पाटा होय ! सालू कौन समेटे होय !
चाचे चूरी कुटें होय ! जमींदारा लुट्टी होय !
ज़मींदार सधाए होय ! बड़े भोले आये होय !
एक भोला रह गया होय ! सिपाही पकड़ ले गया होय !
सिपाही ने मरी ईट होय ! सानू दे दे लोहरी ते तेरी जीवे जोड़ी !
भावें रो ते भावें पिट!”