अगर गुरु नानक ना करते ये एक भूल, तो कैसे भरता आज करोड़ों लोगों का पेट, पढ़ें एक सच्ची कहानी
By गुलनीत कौर | Published: November 23, 2018 10:39 AM2018-11-23T10:39:18+5:302018-11-23T10:39:18+5:30
गुरु नानक उस समय महज 10 से 12 वर्ष के रहे होंगे। पिता महता कालू ने उन्हें बुलाया और कहा कि ये लो 20 रूपये। तुम बाजार जाओ, इन 20 रूपये से एक कारोबार शुरू करो लेकिन इसके बाद जो नानक ने किया उसपर पिता को बेहद गुस्सा आया।
कार्तिक महीने की पूर्णिमा को राय भोए की तलवंडी गांव (तत्कालीन पाकिस्तान) में रहने वाले महता कालू और तृप्ता जी के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। जन्म के समय इस बच्चे के चेहरे पर सूरज की चमक जितना तेज और मुख पर भीनी-सी मुस्कराहट थी। दोनों के लिए यह पुत्र किसी भी साधारण बच्चे जैसा था लेकिन कौन जानता था कि महता कालू का यह पुत्र भविष्य में सिख धर्म का संस्थापक बनेगा एक दुनिया में एकेश्वरवाद का सन्देश पहुंचाएगा।
''सतिगुरु नानक प्रगटिया, मिट्टी धुंध जग चानन होआ'', गुरु नानक देव से जुड़ी गुरुबाणी की यह पंक्ति कहती है कि गुरु नानक के जन्म से यह सृष्टि भी धन्य हो गई थी। उसे मालूम हो गया था कि संसार में जाती, धर्म और रंग-रूप के नाम पर बंटे मनुष्य को बांधने वाले महापुरुष ने अवतार धारण कर लिया है।
गुरु नानक बचपन से ही अंधविश्वास के खिलाफ थे। वे उंच-नीच से परे थे। वे सभी धर्म, जाति के लोगों को एक सामान मानते थे। अमीर-गरीब में कभी अंतर नहीं किया और लोगों को भी समझाया कि हर मनुष्य एक सामान ही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उन्होंने कच्ची उम्र में ही दिया, जो आगे चलकर सभी के लिए मिसाल बना। आइए आपको एक कहानी सुनाते हैं:
गुरु नानक उस समय महज 10 से 12 वर्ष के रहे होंगे। पिता महता कालू ने उन्हें बुलाया और कहा कि ये लो 20 रूपये। तुम बाजार जाओ, इन 20 रूपये से एक कारोबार शुरू करो और शाम ढलने तक घर लौटते समय मुनाफ़ा कमाकर ही आना।
नानक ने पिता से पैसे लिए और बाजार की ओर रवाना हो गए। बाजार से गुजरते हुए नानक की नजर एक भूखे भिखारी पर पड़ी। वह भूख से बिलख रहा था। नानक ने अपने हाथ की मुट्ठी में बंद पैसे देखे और दूसरी बार उस भिखारी की ओर देखा। इसके बाद नानक आगे चल दिए।
कुछ देर बाद नानक हाथ में खाने की खूब सारी चीजें लिए हुए उस भिखारी के पास पहुंचे। उसे भरपेट खाना खिलाया और जाने अनजाने में ही 'लंगर' की प्रथा आरम्भ की। भिखारी लो लंगर खिलाने के बाद खाली हाथ नानक घर की ओर लौट गए।
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पिता महता कालू का क्रोध
जब वे घर पहुंचे तो महता कालू उनपर बेहद क्रोधित हुए। ना तो नानक के पास कारोबार से किया हुआ कोई मुनाफ़ा था और ना ही वे 20 रूपये थे जो पिता महता कालू ने उन्हें दिए थे।
गुस्से में महता कालू ने उनसे पूछा कि मैनें तुम्हें जो पैसे दिए थे उसका तुमने क्या किया। तो विनम्रता से नानक ने कहा कि मैंने उन पैसों से भूखे भिखारियों का पेट भरा। यह सुनते ही महता कालू गुस्से से और भी लाला हो गए।
वे नानक पर चिल्लाए और कहा कि मैनें तुम्हें कारोबार करके मुनाफ़ा कमाने के लिए पैसे दिए थे और तुम उन्हें भिखारों पर खर्च करके आ गए। तब नानक ने जो जवाब दिया उसे सुन महता कालू पूरी तरह शांत हो गए। नानक ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा काम किसी जरूरतमंद की मदद करना और उस मदद से यदि उनका भला हो जाए तो इससे बड़ा मुनाफ़ा क्या हो सकता है।
गुरु नानक का लंगर
आज गुरु नानक की इस लंगर प्रथा का सभी सिख श्रद्धालु दिल से दिल से पालन करते हैं। सिख गुरुद्वारों में अमीर से लेकर गरीब, सभी एक लाइन में बैठकर गुरु नानक के गर का सेवन करते हैं। इतिहासिल गुरुद्वारों में चौबीसो घंटे लंगर चलता है। सिख मानते हैं कि वे आज भी गुरु नानक के उस 20 रूपये के निवेश का मुनाफ़ा ले रहे हैं और उस मुनाफे को दूसरे में भी बांट रहे हैं।