कुंभ 2019: हिंदू धर्म के लिए अखाड़े क्यों जरूरी हैं?
By आदित्य द्विवेदी | Published: February 13, 2019 07:57 AM2019-02-13T07:57:53+5:302019-02-13T07:57:53+5:30
अखाड़े बनाने का उद्देश्य क्या था? 21वीं सदी के युवा के लिए अखाड़ों की जरूरत क्यों है? पढ़िए प्रयागराज कुंभ से लोकमत न्यूज की ये खास रिपोर्ट...
प्रयागराज कुंभ में अखाड़ों का शाही स्नान चल रहा है। चांदी के हौदों पर सवार महामंडलेश्वरों का रथ शाही स्नान मार्ग से संगम की तरफ आगे बढ़ रहा है। झूमते गेरुआधारी संन्यासियों और राख लपेटे नागाओं की टोली है। डमरू-चिमटे के साथ हर-हर महादेव और जय श्री राम का जयघोष है। शाही स्नान मार्ग के दोनों तरफ बल्लियों से बैरिकेडिंग की गई है। अखाड़ों की शाही सवारी का दर्शन पाने को श्रद्धालु बेचैन हैं। मार्ग के दोनों तरफ भीड़ का दबाव इतना अधिक है कि रह-रहकर चीख-पुकार भी मच जाती है। पुण्य की आस लिए संगम आए श्रद्धालुओं को लगता है कि अगर अखाड़े के बाबाओं की एक नजर पड़ गई तो उनका कल्याण हो जाएगा। मेरे मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हिंदू धर्म में अखाड़े बनाने का उद्देश्य क्या रहा होगा? 21वीं सदी के युवा के लिए अखाड़ों की जरूरत क्यों है?
माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। ये अखाड़े हैं- निर्मोही अनी अखाड़ा, निर्वाणी अनी अखाड़ा, दिगंबर अनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा, पंचअग्नि अखाड़ा, तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा, तपोनिधि आनंद अखाड़ा, पंयाचती अखाड़ा महानिर्वाणी, आठल अखाड़ा, बड़ा उदासीन अखाड़ा, नया उदासीन अखाड़ा और निर्मल अखाड़ा।
जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पायलट बाबा बताते हैं, 'पहले हम गुलाम थे। तब मुगल शासन था। मुगल हिंदुओं के मंदिर तोड़ते थे। देवी-देवताओं का अपमान करते थे। तब हिंदुओं को एकत्रित करने और इनका प्रतिवाद करने के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई। अखाड़ों के नागा साधु एक तरह से योद्धा होते थे।'
लेकिन 21वीं सदी में इन अखाड़ों की क्या प्रासंगिकता है? अब तो हम गुलाम भी नहीं हैं! इस प्रतिवाद का जवाब देते हुए पायलट बाबा कहते हैं, 'अब हम एक विकासशील राष्ट्र हैं। लोकतंत्र आ गया है। अब जितना विकास करेंगे धर्म उतना पीछे छूटता जाएगा। अखाड़ा एक परंपरा है। संस्कृति है। अगर अखाड़ा नहीं होते तो हम साधु महात्मा नहीं होते। हम भी भोगी हो जाते। फ्री सेक्स हो जाता। इससे बचाए रखने के लिए हिंदू धर्म में अभी भी अखाड़े प्रासंगिक बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे।'
महामंडलेश्वर चेतना माता अखाड़ों की उपयोगिता पर विचार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि अखाड़ा एक कम्युनिटी की तरह होता है जिससे बहुत सारे लोग जुड़ते हैं। हमारे धर्म में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं होती, खाने की व्यवस्था नहीं होती। अखाड़ा ऐसे लोगों के जीवन यापन की व्यवस्था करता है जिससे वो बिना किसी चिंता के धार्मिक कार्यों में लग सकें। अखाड़ों से हजारों-लाखों लोग जुड़े होते हैं, उनकी सहायता करता है।
महामंडलेश्वर शैलेशानंद का कहना है कि हमारे देवी-देवताओं को अधकचरे ज्ञान के साथ बेचा जा रहा है। योग के चार आसन जानकर कोई भी बाबा हिंदू धर्मानुयायियों को मूर्ख बना रहा है। सनातन धर्म की अवधारणा विचित्र रूप में पेश की जा रही है। ऐसे में अखाड़ों की जिम्मेदारी और प्रासंगिकता बढ़ जाती है।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि करते हैं कि अखाड़ों का काम देश-विदेश में सनानत धर्म का प्रचार करना और भटके हुए लोगों को मानवता की सही राह दिखाना है।