Kalashtami 2019: आज है कालाष्टमी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

By मेघना वर्मा | Published: November 19, 2019 07:28 AM2019-11-19T07:28:25+5:302019-11-19T07:28:25+5:30

कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव की जयंती के रूप में मनाते हैं। इस दिन भक्त कालभैरव के लिए पूजा करते हैं। माना जाता है कि भैरव से भगवान शिव से ही प्रकट हुए थे।

Kalashtami 2019: today is Kalashtami and kal bhairav jayanti, know the shubh muhurat and significance | Kalashtami 2019: आज है कालाष्टमी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Kalashtami 2019: आज है कालाष्टमी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Highlightsभैरव बाबा को भगवान शिव का ही रूप बताए जाते हैं।भैरव जयंती के दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है।

हिन्दू धर्म में कालभैरव का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। काल भैरव को भगवान शिव का रूप बताया जाता है। कालभैरव की पूजा करने के लिए हर महीने कालाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल कालाष्टमी का ये व्रत 19 नवंबर को पड़ रहा है। कहा जाता है कि जिन पर कालभैरव प्रसन्न हो गए उन्हें जीवन में कोई कष्ट नहीं होता। 

कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव की जयंती के रूप में मनाते हैं। इस दिन भक्त कालभैरव के लिए पूजा करते हैं। माना जाता है कि भैरव से भगवान शिव से ही प्रकट हुए थे। भैरव बाबा को भगवान शिव का ही रूप बताए जाते हैं। भैरव जयंती के दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है।

इस दिन भक्त कालभैरव के लिए पूजा करते हैं। माना जाता है कि भैरव स भगवान शिव से ही प्रकट हुए थे। भैरव बाबा को भगवान शिव का ही रूप बताए जाते हैं। भैरव जयंती के दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है।

कालाष्टमी का महत्व

माना जाता है कि भैरव जी की पूजा से भूत, पिशाच एंव काल हमेशा दूर रहते हैं। मान्यता है कि अगर सच्चे मन से भैरव बाबा की पूजा की जाए तो उनके सभी कष्टों का नाश होता है। साथ ही लोगों के रुके हुए काम भी बन जाते हैं। आप भी कालाष्टमी का व्रत पूरे विधि-विधान से कर सकते हैं। 

कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त

कालाष्टमी तिथि - 19 नवंबर 
कालाष्टमी प्रारंभ - 3:35 PM 
कालाष्टमी समाप्त - 1:41 PM (20 नवंबर)

कालाष्टमी की पूजा विधि

1. कालाष्टमी के दिन रात में पूजा करना शुभ होता है।
2. भैरव बाबा की पूजा करने से पहले उन्हें जल अर्पित करना चाहिए।
3. इसके बाद साफ जगह पर बैठकर भैरव कथा का पाठ करना चाहिए।
4. बाद में भगवान-शिव और माता पार्वती की पूजा करना चाहिए।

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