जया एकादशी पर बुधवार को बनेंगे ये 4 शुभ योग, इस विधि से पाएं लाभ, जानें महत्व और संपूर्ण पूजा विधि
By रुस्तम राणा | Published: January 31, 2023 02:55 PM2023-01-31T14:55:47+5:302023-01-31T15:02:29+5:30
हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि जो कोई जातक जया एकादशी व्रत को सच्चे मन और विधि-विधान से करता है उसे जीवन में सुख-शांति, धन-वैभव की प्राप्ति होती है।
Jaya Ekadashi 2023 Date: जया एकादशी 1 फरवरी, बुधवार के को है। धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक एकादशी की तरह इस एकादशी व्रत का भी बड़ा महत्व है। शास्त्रों में भगवान विष्णु को समर्पित जया एकादशी व्रत को दिव्य फलदायी व्रत माना गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि जो कोई जातक जया एकादशी व्रत को सच्चे मन और विधि-विधान से करता है उसे जीवन में सुख-शांति, धन-वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
जया एकादशी 2023 पर बन रहे हैं शुभ योग
इस बार जया एकादशी पर ग्रह-नक्षत्रों का शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन चार शुभ योग बन रहे हैं जो बेहद ही फलदायी माने जाते हैं। इस दिन इंद्र योग और अमृत योग का संयोग एकादशी व्रत के दिन रहेगा। गुरु मीन राशि में होने के कारण हंस नाम का महापुरुष योग का निर्माण होगा। इसके अलावा इसी दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है।
जया एकादशी 2023 व्रत शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ - 31 जनवरी, मंगलवार को दोपहर 12:08 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त - 1 फरवरी, बुधवार को दोपहर 02:16 बजे तक
व्रत पारण मुहूर्त - 2 फरवरी, गुरुवार को सुबह 6:56 बजे से 9:07 बजे तक
जया एकादशी 2023 पूजा विधि
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जगें और स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें।
एकादशी व्रत का संकल्प लें।
चौकी पर लाल कपड़ा डाल कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
फूल आदि से पूजा स्थल को सजाएं और तुलसी जी को जल चढ़ाएं।
भगवान विष्णु के सामने घी के दीये जलाएं और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
इसके बाद उनकी आरती उतारें।
शाम के समय भी भगवान विष्णु की पूजा करें और फिर आरती उतारें।
पूजा के अगले दिन ब्रह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिण आदि देने के बाद पारण करें।
जया एकादशी का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को जया एकादशी के पुण्य के बारे में बताया था, जिसके अनुसार, इंद्रलोक की अप्सरा को श्राप के कारण पिशाच योनि में जन्म लेना पड़ा, उससे मुक्ति के लिए उसने जया एकादशी व्रत किया। भगवान विष्णु की कृपा से वह पिशाच योनि से मुक्त हो गई और फिर से उसे इंद्रलोक में स्थान प्राप्त हो गया। हर एकादशी की तरह जया एकादशी में भी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा कहा गया है कि इस व्रत को करने वाले को अग्निष्टोम यज्ञ के बराबर फल मिलता है। पाप का अंत होता है और घर-परिवार में समृद्धि आती है।