हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल, सवा सौ साल से कृष्ण जन्म की बधाइयां गाता आ रहा है एक मुस्लिम परिवार
By भाषा | Published: August 25, 2019 05:27 PM2019-08-25T17:27:19+5:302019-08-25T17:27:19+5:30
Janmashtami 2019: जन्माष्टमी के मौके पर यह परिवार हर साल मथुरा पहुंचता है और पिछले करीब 100 सालों से हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक एकता की अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। यह मुस्लिम परिवार आठ पीढ़ियों से लगातार बधाइयां गाता आ रहा है।
कृष्ण भक्ति में लीन एक मुस्लिम परिवार, ब्रज में हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक एकता की अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर गोकुल में होने वाले नन्दोत्सव में यह परिवार आठ पीढ़ियों से लगातार बधाइयां गाता आ रहा है। आज इस परिवार के वंशजों - अकील, अनीश, अबरार, आमिर, गोलू आदि ने गोकुल के नन्दभवन में नन्दोत्सव के आयोजन के दौरान सुबह से दोपहर तक लगातार बधाइयां गा-बजाकर वहां पहुंचे देश-विदेश के श्रद्धालुओं को अपनी श्रद्धा व भक्ति से अभिभूत कर दिया।
वर्तमान में मास्टर खुदाबक्श बाबूलाल शहनाई पार्टी के रूप में लोकप्रिय होतीखान के परिवार के वंशजों के इस परिवार के सदस्य जन्माष्टमी के महापर्व के अगले दिन तड़के से ही गोकुल में बधाई गायन के लिए पहुंच जाते हैं। ये लोग गोकुल के मंदिरों में शहनाई वादन कर कृष्ण भक्तों को खूब रिझाते हैं और धूम मचाते हैं।
यमुनापार के रामनगर निवासी खुदाबक्श के नाती अकील व अनीश ने बताया, ‘एक वक्त था जब उनके दादा खुदाबक्श के परदादा होतीखान भी एक आम शहनाईवादक के समान बच्चों के जन्म समारोह, शादी-विवाह आदि खुशियों पर और किसी के गुजर जाने पर गम के मौकों पर भी लोगों के यहां शहनाई वादन किया करते थे। लेकिन एक बार उन्हें कान्हा के नन्दोत्सव कार्यक्रम में शहनाई वादन का मौका क्या मिला, उन्होंने इसे अपने लिए नियति का वरदान मान लिया और जब तक जीवित रहे उन्होंने यह क्रम कभी नहीं तोड़ा।'
मरने से पूर्व होतीखान ने अपने पुत्रों को भी यही शिक्षा दी कि वे कभी-भी, कहीं भी गा-बजा लें, किंतु इस मौके पर यहां आना न भूलें। वे जीवन के अंतिम समय तक गोकुल के नन्द किला भवन, नन्द भवन, राजा ठाकुर व नन्द चैक आदि मंदिरों में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर बधाई गायन करते रहे। अपने वंशजों से भी इस परम्परा को जीवित रखने का वचन लिया। इसके बाद उनके वंशजों ने भी इस वचन का शत-प्रतिशत पालन किया।
इसके लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन से वे अपने बीस-बाइस सदस्यीय अपने दल को एक हफ्ते पहले से श्रीकृष्ण के पद, भजन व गीतों पर रियाज कराते हैं और नन्दोत्सव के अवसर पर बिना किसी पूर्व सूचना के तड़के पांच बजे पूरी टीम व साजो सामान के साथ गोकुल पहुंच जाते हैं। गोकुल पहुंच कर पारम्परिक वाद्ययंत्र नगाड़ा, ढोलक, मजीरा, शहनाई, खड़ताल, मटका व नौहबत बजाते हैं और श्रीकृष्ण जन्म की बधाइयां गाते हैं। ऐसे में जो कुछ भी भक्तजन भेंट स्वरूप उन्हें देते हैं, वही पारितोषिक के रूप में प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेते हैं। मंदिर प्रशासन अथवा किसी और से कोई मांग नहीं करते।
उन्होंने बताया, 'अपने दादा की सीख पर चलते हुए ही वे लोग गोकुल के अलावा गौड़ीय सम्प्रदाय के मंदिरों, वृन्दावन में रंगजी मंदिर के आयोजनों, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के कार्यक्रमों, राधाष्टमी पर उनके मूल गांव रावल के कार्यक्रमों में भी भजन आदि भक्ति संगीत गाते व बजाते हैं। इससे उन्हें अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है।'