Dahi Handi 2019: दही हांडी उत्सव कब है? इसे क्यों मनाते हैं और कैसे शुरू हुई ये परंपरा, जानिए सबकुछ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 19, 2019 09:30 AM2019-08-19T09:30:33+5:302019-08-19T09:30:33+5:30
Dahi Handi 2019: दही हांडी का उत्सव हर साल जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्र मास की अष्टमी तिथि में आधी रात को हुआ था। इसी की खुशी में अगले दिन दही हांडी की परंपरा है।
Dahi Handi 2019:जन्माष्टमी के त्योहार के साथ दही हांडी की परंपरा का भी हिंदू मान्यताओं में बहुत महत्व है। भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले कृष्ण के जन्म की खुशियों के तौर पर हस साल जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है जबकि दही हांडी उन्हीं की बाल लीलाओं को समर्पित एक उत्सव है। दही हांडी को महाराष्ट्र और गुजरात में सबसे धूमधाम से मनाया जाता रहा है। वैसे, बदलते समय के साथ अब यह देश और विदेश के अन्य क्षेत्रों में भी मशहूर हो गया है। जन्माष्टमी इस बार 23 अगस्त या कुछ जगहों पर 24 अगस्त को देश भर में मनाया जाएगा।
Dahi Handi 2019: दही हांडी कब है?
दही हांडी का उत्सव हर साल जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है। ऐसे में इस बार यह 24 या 25 अगस्त को मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्र मास की अष्टमी तिथि में आधी रात को हुआ था। इसी की खुशी में अगले दिन दही हांडी की परंपरा है। इसमें कई लड़के एक के ऊपर एक चढ़ कर 'ह्यूमन पिरामिड' जैसी श्रृंखला बनाते हैं और ऊंचाई तक पहुंचते हैं। इसके बाद सबसे ऊपर खड़ा लड़का वहां ऊंचाई पर टंगे मिटी के बर्तन को तोड़ता है जिसमें मक्खन या दही रखी हुई होती है।
Dahi Handi 2019: दही हांडी का इतिहास
भगवान श्रीकृष्ण दरअसल देवकी और वासुदेव की संतान थे जो कंस के अत्याचार के कारण वर्षों तक जेल में बंद रहे। पौराणिक कथाओं के अनुसार कंस की हत्या देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान से होनी थी। कंस इस बात को जानता था और इसलिए देवकी की जो भी संतान होती वह उसे मार डालता। जब आठवीं संतान कृष्ण का जन्म हुआ वासुदेव दैवीय शक्तियों की मदद से उन्हें यशोदा और नंदजी के यहां वृंदावन ले जाने में कामयाब रहे।
श्रीकृष्ण की बाल लीला की कहानी यहीं से शुरू होती है। उन्हें माखन खान काफी पसंद था और वे नंद गांव में घर-घर जाकर कभी दोस्तों की मदद से किसी का माखन चुरा लेते तो कभी कोई और शररात करते। इसलिए उन्हें 'माखन चोर' भी कहते हैं। कृष्ण से माखन और दही बचाने के लिए गांव के लोग मटकी को काफी ऊंचाई पर टांग देते। छोटे कृष्ण की चतुराई हालांकि यहां भी सब पर भारी पड़ती थी। वे अपने मित्रों के ऊपर चढ़ कर मटकी में रखा माखन चुरा लेते। कृष्ण की इन्हीं बाल लीलाओं को याद करते हुए दही हांडी की परंपरा शुरू हुई।