जम्बूकेश्वरार मंदिर में जमीन के नीच से निकला सोना, गजब है इसका इतिहास, नहीं होता यहां कोई विवाह
By विनीत कुमार | Published: February 27, 2020 12:38 PM2020-02-27T12:38:04+5:302020-02-27T12:54:57+5:30
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली स्थित जम्बूकेश्वरार मंदिर का इतिहास करीब 1800 साल पुराना है। इसका निर्माण चोल राजवंश के कोकेंगानन ने करवाया था।
भारत के प्राचीन मंदिर को लेकर कई तरह की बातें कही जाती रही हैं। खासकर इनकी स्थापत्य कला, बनावट और इन मंदिरों में खजाने को लेकर कई तरह की चर्चा होती हैं। खजानों को लेकर दक्षिण भारत के मंदिर हमेशा ही चर्चा में रहे हैं। ऐसा ही एक जम्बूकेश्वरार मंदिर भी है जो अभी चर्चा में है।
दरअसल, यहां साफ-सफाई और मंदिर परिसर में कुछ मजदूरों द्वारा की जा रही खुदाई के दौरान बुधवार को एक मटका बाहर आया जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ है। मंदिर कर्मचारियों द्वारा गिनती में ये बात सामने आई कि मटके में 505 सोने के सिक्के हैं और इनका कुल वजन करीब 1.716 किलो है।
इन्हें फिलहाल पुलिस को सौंप दिया गया है। बताया जा रहा है कि इन सिक्कों की कीमत आज के हिसाब से 70 से 75 लाख हो सकती है।
तमिलनाडु का अद्भुत जम्बूकेश्वरार मंदिर
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली स्थित इस मंदिर का इतिहास करीब 1800 साल पुराना है। इसका निर्माण चोल राजवंश के कोकेंगानन ने करवाया था। यह भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित मंदिर है और इसकी गिनती दक्षिण भारत के बड़े मंदिरों में की जाती है।
इस मंदिर में भगवान शिव के जल तत्व रूप के दर्शन होते हैं। एक तरह से ये मंदिर पृथ्वी के पांच तत्वों में से एक जल तत्व का प्रतीक है। इस मंदिर में शिव-पार्वती सहित दूसरे विवाह नहीं कराये जाते हैं। कहते हैं कि यहां भगवान शिव ने देवी पार्वती को उपदेश दिया था जिस कारण यहां गुरु और शिष्या का सम्बन्ध है।
जम्बूकेश्वरार मंदिर की खासियत
इस मंदिर में मूर्तियों को एक साथ स्थापित नहीं कर एक-दूसरे के विपरीत स्थापित किया गया है। ऐसे मंदिरों को उपदेशा स्थलम कहा गया है। इस मंदिर में चूकी माता पार्वती एक शिष्या और शिव एक गुरु के रूप में मौजूद हैं, इसलिए यहां थिरु कल्याणम यानी विवाह संस्कार नहीं कराये जाते हैं। इस मंदिर में शिव के अलावा विष्णु और ब्रह्मा के भी मंदिर हैं।