कुंडली में है मंगल दोष तो जान लें ये उपाय, शीघ्र छुटकारा मिल जाता है

By गुणातीत ओझा | Published: September 14, 2020 06:43 PM2020-09-14T18:43:16+5:302020-09-14T18:43:16+5:30

मंगल ग्रह से आमतौर पर लोग डरते है लेकिन जिसका नाम ही मंगल हो वह अमंगल कैसे कर सकता है। यह ग्रह मंगल देव है लेकिन अशुभ नहीं है। जन्म कुण्डली में हर ग्रह शुभ और अशुभ फल देते हैं।

If there is Mars defect in the horoscope then know this remedy get rid of it soon | कुंडली में है मंगल दोष तो जान लें ये उपाय, शीघ्र छुटकारा मिल जाता है

जानें मंगल दोष मिटाने के उपाय।

मंगल ग्रह से आमतौर पर लोग डरते है लेकिन जिसका नाम ही मंगल हो वह अमंगल कैसे कर सकता है। यह ग्रह मंगल देव है लेकिन अशुभ नहीं है। जन्म कुण्डली में हर ग्रह शुभ और अशुभ फल देते हैं। ऐसे ही मंगल ग्रह भी दोनों तरह के फल देते है। यह ग्रह सदैव सभी के लिए कौतुहल यानि चर्चा का विषय रहा हैं। 

मंगल दोष खत्म करने के उपाय

महाकाल के पास है, मंगलनाथ का मंदिर। उज्जैन नगरी शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। महाकाल का मंदिर उज्जैन में है और मंगलनाथ का मंदिर भी है। पूरे भारत से लोग आकर मंगलनाथ की पूजा आराधना करते हैं, लेकिन जिनकी कुण्डली में मंगली दोष होता है वह लोग मंगल दोष की शांति हेतु यहाँ पर आते है। यहां पर पूजा अर्चना करने से मंगल दोष से शीघ्र छुटकारा मिल जाता है। यहां से कोई निराश नहीं गया है। यह मंदिर मंगलेश्वर भगवान या मंगलनाथ के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मंगलनाथ मंदिर के ठीक शीर्ष के ऊँपर ही आकाश में मंगल ग्रह स्थित है। मतस्य पुराण व स्कंद पुराण सहित अन्य ग्रंथों में मंगलदेव के बारे में विस्तार से वर्णन है। उज्जैन में ही मंगलदेव की उत्पत्ति हुई थी और जहां पर मंगलनाथ का मंदिर है नही उनका जन्म स्थान है। यह मंदिर दैवीय गुणों से भरपूर है।
 
मंगलदेव की जन्म कथा

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि भगवान शिव की एक बार अंधकासुर नामक दैत्य ने उपासना की। शिव जी ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहा। अंधकासुर ने वरदान मांगा कि मेरे रक्त की बूंदे जहां पर भी गिरे वहीं पर मैं फिर से जन्म लेता रहूं। शिवजी ने वरदान दे दिया। इस वरदान को पाकर दैत्य अंधकासुर ने चारों ओर तबाही फैला दी। शिवजी के इसी वरदान स्वरूप उसे कोई हरा नहीं सकता। इस दैत्य के अत्याचार से परेशान जनता ने शिव आराधना की और कहा कि आप इस संकट से छुटकारा दिलाएं। तब शिवजी और दैत्य अंधकासुर के मध्य घनघोर भीषण युद्ध हुआ। भगवान शिवजी जितनी बार अपने त्रिशूल से अंधकासुर को मारते और उसका रक्त धरती पर गिरते ही वह पुनः जीवित हो जाता।

इस प्रकार युद्ध लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूंदें धरती पर गिरी, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पति हुई। शिवजी के त्रिशूल के वार से घायल अंधकासुर का सारा रक्त इस नए मंगल ग्रह में मिल गया और धरती लाल हो गई। अंधकासुर का अन्त हुआ। शिवजी ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्राह्मड में फेंक दिया। यही कारण है कि मंगलदोष की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में दर्शन और पूजा अर्चना के लिए लोग आते है। इस मंदिर में मंगल देव यानि शिव स्वरूप हैं।

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