Holika Dahan 2019: यूपी के इस गांव में 10 हजार वर्ष पहले भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी होलिका
By गुलनीत कौर | Published: March 19, 2019 11:58 AM2019-03-19T11:58:24+5:302019-03-19T11:58:24+5:30
होलिका फाहन से जुड़े इस गांव में होली आने से महीना पहले से ही जश्न का माहौल बन जाता है। शुरुआत में लोग कीचड़ से होली खेलते हैं और होली आने तक रंगों का इस्तेमाल करते हैं।
हजारों वर्ष पहले राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद, जो कि भगवान विष्णु का परम भक्त था, उसे मारने की कोशिश की। पौराणिक कथा के अनुसार होलिका, जिसे यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि में बैठने के बावजूद भी वह जलेगी नहीं, उसने प्रहलाद को अपनी गोद में लिया और जलती आग में बैठ गई। राजा को यह विश्वास था कि होलिका बच जाएगी और प्रहलाद जलकर भस्म हो जाएगा, किन्तु विष्णु ने यहां अपने भक्त की लाज रखी।
भगवान विष्णु के आशीर्वाद से प्रहलाद बच गया और अग्नि की ज्वाला से होलिका जलकर भस्म हो गई। तब से होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में मनाया जाता है। इस वर्ष 21 मार्च को होली खेली जाएगी और एक रात पहले 20 मार्च को पूरे विधि विधान से होलिका का दहन किया जाएगा।
होली के अवसर पर देशभर में तैयारियां चल रही हैं। उत्तर भारत से लेकर पड़ोसी देश नेपाल में भी होली को धूमधाम से मनाया जाता है। मगर उत्तर भारत की एक जगह और है जिसका इतिहास सीधे तौर पर होली से जुड़ा है। यह वह स्थान है जहां होलिका दहन हुआ था। यह जगह उत्तर प्रदेश के झांसी में है।
झांसी से 80 किलोमीटर की दूरी पर 'एरच' नाम का एक कस्बा है। यहां एक पहाड़ी है जहां के बारे में कहा जाता है कि इसी पहाड़ी पर होलिका जलती अग्नि में भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठी थी। यह पहाड़ी एरच कस्बे के ढिकोली गांव में स्थित है।
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एक महीना खेलते हैं होली
एरच कस्बे और इस गांव में होली आने से महीना पहले ही जश्न का माहौल बन जाता है। शुरुआत में लोग कीचड़ से होली खेलते हैं और होली आने तक रंगों का इस्तेमाल करते हैं। यहां ढिकोली गांव की पहाड़ी पर बड़ा मंदिर भी बना है। इस मंदिर में गोद में लिए प्रहलाद के साथ होलिका की मूर्ति भी स्थापित है।
होलिका के अलावा इस प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह की मूर्ति भी स्थापित है। भगवान नरसिंह ने ही प्रकट होकर प्रहलाद की रक्षा की थी दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था। होलिका दहन के मौके पर मंदिर में शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इसके बाद होलिका दहन किया जाता है।
10 हजार वर्ष पुराना मंदिर
होलिका दहन को समर्पित इस मंदिर के बारे में इतिहासकार कई तथ्य देते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मंदिर ( जो कि प्राचीन समय में राजा हिरण्यकश्यप का किला था) की ईंटों को देखने के बाद यह मालूम होता है कि ये ईंटें तकरीबन 10 हजार वर्ष पुराणी हैं। इन ईंटों से निकलने वाला कार्बन इसके हजारों वर्ष पहले बनाए जाने का संकेत देता है।
दुष्ट राजा के नाम पर गांव का नाम
झांसी के करीब स्थित एरच कस्बे का नाम दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप के नाम पर ही रखा गया है। राजा हिरण्यकश्यप को एरिक्कच के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से कस्बे का नाम एरच रखा गया। इतना ही नहीं, ढिकोली गांव का नाम भी पौराणिक कथा को आधार मानते हुए रखा गया है। कहते हैं कि गांव के पास बहने वाली नदी में ही राजा ने प्रहलाद को ढकेलने की कोशिश की थी, जिसके बाद गांव का नाम ढिकोली रखा गया।